राजकुमार ने सारथी से पूछा कि यह कौन जा रहा है? उसने बताया कि यह संन्यासी है। इसने सबसे नाता तोड़कर भगवान से नाता जोड़ लिया है।
उस दिन सिद्धार्थ ने बगीचे की सैर की। वह राजमहल में लौटकर सोचने लगा, बुढ़ापा, बीमारी और मौत इन सबसे छुटकारा कैसे मिल सकता है?
दुखों से बचने का क्या उपाय है? मुझे क्या करना चाहिए? मैं भी उस आनंदमग्न संन्यासी की तरह क्यों न बनूं?'
इन्हीं दिनों सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया।
राजा शुद्धोदन को ज्यों ही पता लगा कि उनके पुत्र के पुत्र उत्पन्न हुआ है तो उन्होंने बहुत दान-पुण्य किया।
बालक का नाम रखा - राहुल।
कुछ दिन बात रात के समय सिद्धार्थ चुपचाप उठ खड़ा हुआ। द्वार पर जाकर उसने पहरेदार से पूछा, 'कौन है?'
पहरेदार ने कहा, 'मैं छंदक हूं।'
सिद्धार्थ ने कहा, एक घोड़ा तैयार करके लाओ।'
' जो आज्ञा।' कहकर छंदक चला गया।
सिद्धार्थ ने सोचा कि सदा के लिए राजमहल को छोड़ने से पहले एक बार बेटे का मुंह तो देख लूं। वे यशोधरा के पलंग के पास जा खड़े हुए।
शिशु को लिए यशोधरा सोई हुई थी। सिद्धार्थ ने सोचा कि अगर मैं यशोधरा के हाथ को हटाकर पुत्र का मुंह देखने का प्रयत्न करूंगा तो वह जाग जाएगी। इसलिए अभी पुत्र का मुंह नहीं देखूंगा। जब ज्ञानवान हो जाऊंगा, तब आकर देखूंगा।
छंदक एक सुंदर घोड़े की पीठ पर साज सजाकर लौट आया। इस घोड़े का नाम था कंथक।
सिद्धार्थ महल से उतरकर घोड़े पर सवार हुआ। यह घोड़ा एकदम सफेद था।
छंदक घोड़े के पीछे-पीछे चला। वे आधी रात के समय नगर से बाहर निकल गए।
वे रात ही रात में अपनी और अपने मामा की राजधानी को लांघ गए। फिर रामग्राम को पीछे छोड़ 'अनीमा' नदी के तट पर जा पहुंचे। नदी को पार कर रेतीले तट पर खड़े होकर सिद्धार्थ ने छंदक से कहा, 'छंदक! तू मेरे इन गहनों और इस घोड़े को लेकर वापस लौट जा। मैं तो अब संन्यासी बनूंगा।
छंदक ने कहा, मैं भी संन्यासी बनूंगा।'
सिद्धार्थ ने उसे संन्यासी बनने से रोका और वापस लौट जाने को कहा।
फिर सिद्धार्थ ने अपनी तलवार से अपने सिर के लंबे बालों को काट डाला।
संन्यासी के वेश में सिद्धार्थ ने राजगृह में प्रवेश किया। तत्पश्चात् वे भिक्षा मांगने नगर में निकले।
इस सुंदर युवक संन्यासी के नगर में आने की खबर राजा को मिली।