चीन में फिर 'बुद्धम शरणम गच्छामि'

चीन में विशाल भारतीय बौद्ध मंदिर

Webdunia
- आलोक मेहत ा
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लाल चीन में अब धर्म से परहेज नहीं रहा। इसीलिए चीन भारत के साथ शांति और सह-अस्तित्व के साथ पुनः गौतम बुद्ध के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों की भावना के अनुरूप ऐतिहासिक-सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित बना नया रूप देने में सहयोग दे रहा है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने मध्य चीन के हेनान प्रांत की 'येलो रिवर' किनारे बसे लुओयांग में साँची शैली के भव्य स्तूप तथा गौतम बुद्ध की सारनाथ जैसी ज्ञान देती मुद्रा वाली मूर्ति के साथ बने विशाल भारतीय मंदिर का उद्घाटन किया।

इसी स्थान पर लगभग 2 हजार साल पहले भारत से दो बौद्ध भिक्षु एक सफेद घोड़े के साथ बुद्ध की मूर्ति और उनके ज्ञान की पुस्तकें लेकर आए थे। इसके बाद यहीं व्हाइट हॉर्स बौद्ध मंदिर बना हुआ था। पाँच साल पहले चीन सरकार ने इसी मंदिर क्षेत्र के पास लगभग 6 हजार वर्गमीटर जमीन नया मंदिर बनाने के लिए दी। दूसरी तरफ भारत सरकार ने यहाँ प्राचीन साँची-सारनाथ की वास्तुकला के साथ भव्य मंदिर बनाने के लिए वित्तीय, विशेषज्ञ तथा पत्थरों तक का इंतजाम किया।

श्रीमती पाटिल ने उद्घाटन के साथ विश्वास व्यक्त किया कि 'शांति तथा सह-अस्तित्व की प्रतीक ऐसी साझेदारी से भारत और चीन के संबंध अधिक मजबूत होंगे। वहीं दोनों देशों की जनता सांस्कृतिक-सामाजिक दृष्टि से ऐतिहासिक संबंधों को नया रूप देगी।

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समारोह में हेनान प्रांत के गवर्नर गुओ गेंगमाओ, कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीतिक सलाहकार परिषद (राज्यसभा की तरह) की उपाध्यक्ष, पार्टी और सरकार के स्थानीय नेता, अधिकारी उपस्थित थे।

नए-पुराने मंदिर के धर्मगुरु लामाओं ने फूलों से राष्ट्रपति का अभिनंदन किया तथा श्रीमती पाटिल तथा देवीसिंह शेखावत ने दोनों क्षेत्रों में प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर पूजा अर्चना की। पूरे परिसर में बौद्ध प्रार्थनाओं का पाठ गूँजता रहा।

ज्ञात हो कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान इस क्षेत्र में मंदिर बनाने की स्वीकृति मिली थी। फिर सत्ता परिवर्तन के बावजूद चीन और भारत सरकार ने काम आगे बढ़ाया। एक उच्च स्तरीय सलाहकार परिषद के मार्गदर्शन में वास्तु-शिल्प कला से जुड़े दिल्ली के एक प्रतिष्ठित ग्रुप के अक्षय जैन तथा राका चक्रवर्ती ने इस स्तूप तथा मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न किया।

बुद्ध की धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में चुनार की एक ही शिला से यह विशाल मूर्ति बनाई गई। इसी तरह साँची के स्तूप की तरह स्तूप बनाने के लिए भी राजस्थान तथा दक्षिण भारत से बड़ी मात्रा में पत्थरों को आयात करना एक अद्भुत प्रयास है।

बीजिंग तथा लुओयांग में कई चीनी अधिकारियों, भारतीय राजनयिकों तथा स्थानीय लोगों से बात करने पर यह सुखद आश्चर्य हुआ कि चीन में धार्मिक उपासना स्थलों पर अधिक लोग जाने लगे हैं। धर्म से कटे हुए समझे जाने वाले कम्युनिस्ट नेता स्वयं धार्मिक आस्था रखने लगे हैं। आर्थिक उदारवाद के साथ यह सांस्कृतिक उदारवाद के लक्षण हैं।

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