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बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
WD
मोक्ष तक पहुँचने के तीन सरलतम मार्ग हैं। पहला आष्टांग योग, दूसरा जिन त्रिरत्न और तीसरा आष्टांगिक मार्ग। हम यहाँ आष्टांगिक मार्ग के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। बौद्ध धर्म मानता है कि यदि आप अभ्यास और जाग्रति के प्रति समर्पित नहीं हैं तो कहीं भी पहुँच नहीं सकते हैं।

आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है। बुद्ध ने इस दुःख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को 'मध्यमा प्रतिपद' या मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है। अर्थात जीवन में संतुलन ही मध्यम मार्ग पर चलना है।

क्या है आष्टांगिक मार्ग?
1. सम्यक दृष्टि : इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।
2. सम्यक संकल्प : जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है। यदि दुःख से छुटकारा पाना हो तो दृढ़ निश्चय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।
3. सम्यक वाक : जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता होना आवश्यक है। यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
4. सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि होना जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।
5. सम्यक आजीव : यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।
6. सम्यक व्यायाम : ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
7. सम्यक स्मृति : चित्त में एकाग्रता का भाव आता है शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से। एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।
8. सम्यक समाधि : उपरोक्त सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।

क्यों आवश्यक आष्टांगिक मार्ग?
बौद्ध इसे 'काल चक्र' कहते हैं। अर्थात समय का चक्र। समय और कर्म का अटूट संबंध है। कर्म का चक्र समय के साथ सदा घूमता रहता है। आज आपका जो व्यवहार है वह बीते कल से निकला हुआ है। कुछ लोग हैं जिनके साथ हर वक्त बुरा होता रहता है तो इसके पीछे कार्य-कारण की अनंत श्रृंखला है। दुःख या रोग और सुख या सेहत सभी हमारे पिछले विचार और कर्म का परिणाम हैं।

पुनर्जन्म का कारण पिछला जन्म है। पिछले जन्म के कर्म चक्र पर आधारित यह जन्म है। बौद्ध धर्म के इस कर्म चक्र का संबंध वैसा नहीं है जैसा कि माना जाता है कि हमारा भाग्य पिछले जन्म के कर्मों पर आधारित है या जैसी कि आम धारणा है पिछले जन्मों के पाप के कारण यह भुगतना पड़ रहा है। नहीं, कर्म चक्र का अर्थ प्रवृत्तियों की पुनरावृत्ति से और घटनाओं के दोहराव से है। बुरे घटनाक्रम से जीवन को धीरे-धीरे अच्छे घटनाक्रम के चक्र पर ले जाना होगा।

समाधि प्राप्त करना हो या जीवन में सिर्फ सुख ही प्राप्त करना हो तो कर्म के इस चक्र को समझना आवश्यक है। मान लो किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो उस अपराध की पुनरावृत्ति का वही समय होगा। आपके जीवन में जो दुःख जिस समय घटित हुआ है तो जानें उस समय को कि कहीं ठीक उसी समय वैसी ही परिस्थितियाँ तो निर्मित नहीं हो रही हैं? मन व शरीर हमेशा बाहरी घटनाओं से प्रतिक्रिया करते हैं इसे समझें। क्या इससे अशुभ की उत्पत्ति हो रही है या की शुभ की? बौद्ध धर्म कहता है कि हम सिर्फ मुक्ति का मार्ग बता सकते हैं। उस पर चलना या नहीं चलना आपकी मर्जी है। यह भी जान लें कि चलकर ही मंजिल पाई जाती है।

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