शेयर बाजार के निवेशकों को बचाएँ

Webdunia
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008 (17:10 IST)
चालू वित्त वर्ष में उछलने और डूबने का रिकार्ड बनाने वाले शेयर बाजार ने यह साबित कर दिया कि इसका कामकाज अभी भी पूरी तरह से पारदर्शी और भरोसेमंद नहीं बन पाया है। दुःख की बात यह है कि इस अँधेरगर्दी में पिसाता आम निवेशक ही है, जो बार-बार साबित हुआ है।

शेयर बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि शेयर बाजार की जान प्राइमरी मार्केट है और यही यदि भरोसेमंद नहीं रहेगा, तो सेकेंडरी मार्केट ज्यादा नहीं चल सकता। ताजा परिप्रेक्ष्य में देखते तो रिलायंस पॉवर के प्रीमियम पर सवाल उठाए गए।

ब्रोकरों का कहना है कि शेयर बाजार की प्रमुख घटक 'कंपनियों' पर इस वक्त डिविडेंट डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स 15 प्रश लगता है। इसे घटाकर 12.5 प्रश किया जाना चाहिए। ऐसा करने से अंततः निवेशकों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा और इस तरह उन्हें शेयर बाजार में आकर्षित किया जा सकेगा। इसके अलावा सरकार को होम लोन की ब्याज दर घटाना चाहिए।

बीके माहेश्वरी स्टॉक ब्रोकिंग फर्म के निदेशक भूपेंद्र माहेश्वरी का कहना है कि रुपए की मजबूती को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए।

अजीत जैन सिक्युरिटीज के निदेशक अजीत जैन का कहना है कि म्युचुअल फंडों की खरीदी को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। जैन के मुताबिक सेकेंडरी मार्केट में एक निवेशक को 32 तरह के टैक्स चुकाने होते हैं, जो हास्यास्पद है इन्हें कम किया जाना चाहिए।

चार्टर्ड अकाउंटेंट कैलाश जैन के मुताबिक कंपनियों पर से फ्रिंज बेनिफिट टैक्स समाप्त किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से विसंगतिपूर्ण है। कार्पोरेट टैक्स को भी सरल बनाया जाना चाहिए।

रिफंड, अलाटमेंट की समय सीमा तय हो :
अजीत जैन का कहना है कि शेयर अलाटमेंट और राशि के रिफंड की समय सीमा तय की जाना चाहिए। रिलायंस पावर के संदर्भ में यह बात अधिक प्रासंगिक होकर उभरी है। बीएसई और एनएसई में रिलायंस पावर की लिस्टिंग 11 फरवरी को हो गई। इसके बाद 15 दिन गुजर गए हैं, लेकिन कुछ निवेशक ऐसे हैं जिन्हें अभी तक न तो अलाटमेंट मिला है और न ही रिफंड जबकि कंपनी और इश्यू के रजिस्ट्रार दावा कर रहे है कि उन्हें दोनों ही कार्य सम्पन्न कर दिए हैं।

रिफंड इलेक्ट्रानिक-ट्रांसफर से हो : जैन का कहना है कि रिफंड को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। ताकि निवेशकों के पास उनका धन जल्द पहुँच सके। वर्तमान में कंपनियाँ डाक के जरिए रिफंड चैक भेज भेजती है। जिसमें 10 से 15 दिन तक लग जाता है।

निवेशकों का धन या तो कंपनी के पास या बैंक में पड़ा रहता है, जो निवेशकों के धन से अल्प समय में खेल कर सकते है। लिहाजा रिफंड के इलेक्ट्रानिक ट्रांसफर को अनिवार्य किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर कंपनियों पर जुर्माना लगाना चाहिए। ( नईदुनिया)

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