उच्च शिक्षा की कई टेढ़ी-मेढ़ी डगर

अनुपम कुमार

Webdunia
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राजधानी के उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रमुख दिल्ली विश्वविद्यालय के सामने 2012 में कई चुनौतियां हैं। प्रशासन ने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी है।

सेमेस्टर चलाने की चुनौती
विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर दूसरे साल सेमेस्टर का एक और चरण लागू होगा। साइंस के छात्र जहां अपने तीसरे साल में पांचवें सेमेस्टर में पहुंचेगें वहीं कॉमर्स और आर्ट्स के छात्र दूसरे साल के तीसरे सेमेस्टर में। प्रशासन के सामने सिलेबस तैयार करने और फिर कॉलेजों में इसे सही ढंग से चलाने की मुख्य चुनौती है। अध्ययन सामग्री की परेशानी दूर करनी होगी।

पढ़ाने वालों की बहाली
कॉलेजों में पिछले एक साल से स्थायी नियुक्ति बंद है। प्रशासन नियुक्ति प्रक्रिया में संशोधन के नाम पर कॉलेजों को चयन समिति का पैनल नहीं भेज रहा है। कॉलेजों में अब तदर्थ और अतिथियों शिक्षकों की भरमार हो गई है। कुछ कुछ अव्यवस्था का आलम भी। 2012 में शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति कब शुरू होगी और इसके लिए बेहतर सिस्टम बनाने की चुनौती प्रशासन के सामने है। नियुक्ति में चल रहा भाई भतीजावाद और प्रोफेसरों के संगठित गिरोह पर लगाम लगाकर नियुक्ति कराने का काम करने में कितनी सफलता हाथ लगती है यह देखा जाना बाकी है।

समय पर रिजल्ट निकालना
सेमेस्टर लागू होने के बाद इसे सफल बनाने के लिए समय पर रिजल्ट निकालने का काम भी इस साल बखूबी करना होगा। सीमित संसाधनों के दम पर यह काम करने की चुनौती परीक्षा विभाग और प्रशासन दोनों के सामने है। रेगुलर और स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग के छात्र रिजल्ट में लेटलतीफी से अक्सर परेशान रहते हैं। हालांकि प्रशासन ने इसके लिए एक टीम बना दी है। मई जून में परीक्षा लेकर एक माह बाद कॉलेज खुलने तक रिजल्ट भी निकालना होगा।

दाखिला प्रक्रिया बेहतर बनानी है
स्नातक में करीब 54 हजार सीटों पर दाखिला प्रक्रिया को बेहतर बनाने की कवायद एक बार फिर जोरों पर है। प्रशासन ने 16 प्राचार्यों की एक उच्च स्तरीय कमेटी बना दी है। दाखिला फार्म भरने और सही तरीके से कट ऑफ निकालने के काम को तरह तरह के झंझटों से मुक्त करने का काम भी सामने है। दाखिले में अलग अलग क्राइटेरिया को खत्म करने की कोशिश चल रही है।

नए कॉलेज नहीं खुलेंगे
दिल्ली विश्वविद्यालय में मौजूदा सीटों पर ही दो लाख छात्रों को दाखिले के लिए जद्दोजहद करनी होगी। यहां सरकार अब नए कॉलेज नहीं खोलने जा रही है। विश्वविद्यालय प्रशासन के पास भी अब इतनी क्षमता नहीं रह गई है और कॉलेजों को अपने साथ लेकर चल सके। अधिकारियों के मुताबिक 80 कॉलेज को साथ लेकर चलना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है।

संसाधन की माथापच्ची
कॉलेजों में ओबीसी कोटा लागू होने के बाद पढ़ाई के लिए क्लास रूम, लैब और लाइब्रेरी की भी जरूरत आ गई है। बढ़ी हुई संख्या को देखते हुए कुछ ही कॉलेज हैं जो अपने यहां संसाधन तैयार कर पाए हैं। ज्यादातर कॉलेजों में छात्रों को पढ़ाने के लिए न तो क्लास रूम हैं न ही लैब। इस साल नए छात्रों को संसाधन मुहैया कराने का काम भी एक ब़ड़ी चुनौती है। रहने के लिए छात्रावास की भी जरूरत है। प्रशासन 1500 सीट का राजीव गांधी गर्ल्स हॉस्टल बना रहा है । यह इस साल शुरू हो जाएगा। लड़कों की यह समस्या इस साल दूर नहीं होगी क्योंकि और नए हॉस्टल फिलहाल नहीं बन रहे हैं। इसके अलावा कई और तरह की चुनौती भी प्रशासन के सामने है जिससे 2012 में जूझना होगा।

इस साल कौन सी चुनौती सामने है?
मुख्य रूप से तीन तरह की चुनौती है। पहला सेमेस्टर को सही तरीके से लागू करने, दूसरा कॉलेजों से तालमेल बनाने और इसके साथ ही दाखिले की प्रक्रिया में सुधार लाने का काम भी है। दाखिला प्रक्रिया छात्र व शिक्षक की सहूलियत के हिसाब से हो। पारदर्शी हो इस पर जोर दिया जाएगा। कमेटी के जरिए यह काम किया जा रहा है।

संसाधन की समस्या को लेकर क्या योजना है?
कैंपस में मैथेमेटिकल साइंस, एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक और केमिस्ट्री के लिए नया भवन बनाया जा रहा है। बॉटनी विभाग में भी यह काम किया जा रहा है। छात्राओं के लिए राजीव गांधी गर्ल्स हॉस्टल इस साल शुरू हो जाएगा। अधिकारियों की नियुक्ति कर दी गई है।

शिक्षकों की नियुक्ति कब शुरू होगी?
नियुक्ति प्रक्रिया को निष्पक्ष और बेहतर बनाने की दिशा में काम चल रहा है। इसको लेकर बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट आने पर उसे अमल में लाया जाएगा। दो तीन माह के अंदर यह काम पूरा हो जाएगा। इसके बाद नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होगी। इस पर लोगों का विश्वास जगे ऐसी कोशिश की जाएगी।

नई योजना क्या है?
उनके लिए मार्च में यूथ फेस्ट कराया जा रहा है। इसमें सभी कॉलेजों के छात्रों को विश्वविद्यालय के प्रति आकर्षित किया जाएगा। उनके हुनर की परख भी की जाएगी। सरकार गणित वर्ष मना रही है । प्रख्यात गणितज्ञ रामानुजन पर कई लेक्चर और कार्यक्रम होंगे।

जामिया में मुस्लिम कोटा लागू करने का काम
इस साल जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलने के बाद मुस्लिम छात्रों के लिए कोटा लागू करने का काम भी पूरा क करना होगा। इसे किस रूप में लागू किया जाए ताकि संस्थान का शैक्षिक चरित्र नहीं बदले यह चुनौती प्रशासन के सामने है। यहां कोर्स को नया रूप देने और शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार लाने की कवायद भी चल रही है। आने वाले साल में उम्मीदें हैं।

जेएनयू में छात्रसंघ की बहाली
जेएनयू में पिछले तीन साल से छात्रसंघ नहीं है। इससाल छात्र संघ चुनाव कराना और पहले जैसे तेवर को बरकरार रखने की चुनौती मुख्य है। लिंग्दोह समिति की सिफारिशों में से कुछ शर्तों में से छूट दे दी गई है। इसके बाद प्रशासन की निगरानी में होने वाले चुनाव किस तरह के होंगे या नया नेता कैसा होगा यह इस साल तय होगा।

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