काजीजी दुबले क्यों सारे शहर के अंदेशे से

मनीष शर्मा
एक राजा का राज्य बढ़ने के साथ उसके चेहरे पर तनाव की रेखाएँ भी बढ़ती गईं, क्योंकि उसके मन में यह डर घर कर गया था कि कहीं मेरा कोई मंत्री छल करके राजपाट न हथिया ले। इसी चिंता में वह घुला जा रहा था। उसने सभी से मिलना-जुलना बंद कर दिया और वह प्रजा से कटने लगा।

इस बीच उसके राज्य में एक संत पधारे। राजा उनसे मिलने उनकी कुटिया पर पहुँचा और अपनी व्यथा कही। तब संत बोले- राजन, इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे। आइए, पहले मैं आपको अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाता हूँ। इसके बाद संत ने चूल्हे में आग जलाकर भोजन बनाया और दोनों ने खाया। तनावग्रस्त राजा ठीक से भोजन भी नहीं कर पाया।

भोजन के बाद उसने संत से अपनी समस्या का हल पूछा। इस पर संत ने चूल्हे से एक जलती लकड़ी निकाली और घास-फूस से बनी अपनी कुटिया पर उछाल दी। कुटिया धू-धू कर जलने लगी। राजा बोला- अरे, ये आपने क्या किया। संत- राजन, ये है आपकी समस्या का हल। जिस आग से स्वादिष्ट भोजन बनाया जा सकता है, वही हमारा सब कुछ जलाकर राख कर सकती है।
  एक राजा का राज्य बढ़ने के साथ उसके चेहरे पर तनाव की रेखाएँ भी बढ़ती गईं, क्योंकि उसके मन में यह डर घर कर गया था कि कहीं मेरा कोई मंत्री छल करके राजपाट न हथिया ले। इसी चिंता में वह घुला जा रहा था। उसने सभी से मिलना-जुलना बंद कर दिया।      


इसी तरह संसार में एक ही चीज से दोनों काम हो सकते हैं। यह हमारे ऊपर है कि हम उससे कैसे काम लेते हैं। इसलिए बेहतर है आप बेकार की चिंता छोड़कर अपने साथियों पर विश्वास करें। उन पर शंका करने की बजाय उन्हें प्यार दें। वे कभी आपको धोखा नहीं देंगे। राजा उनकी बात समझ गया और उसने संत की सलाह के अनुसार व्यवहार करना शुरू कर दिया। जल्द ही वह तनावमुक्त हो गया।

दोस्तो, कहावत है कि काजीजी दुबले क्यों, सारे शहर के अंदेशे से। व्यक्ति बेकार की चिंताएँ, अंदेशे, शंकाएँ पालकर दुबला होता रहता है। ऐसी चिंताएँ, जो निराधार, अस्तित्वहीन होती हैं। लेकिन किसी-किसी की आदत होती है कि बिना बात की चिंता करने की, तनाव पालने की।

यदि कोई चिंता न हो तो वह भी इनके लिए चिंता का विषय बन जाता है, क्योंकि इन्हें उसमें भी अंदेशा होने लगता है कि कहीं यह तूफान के पहले की शांति तो नहीं। और इस तरह वे बैठे-ठाले की चिंता में डूब जाते हैं।

यदि आपको भी बेकार की चिंता पालने की आदत है तो इस आदत से जितनी जल्दी हो सके निजात पा लें, वर्ना यह आपको कहीं का नहीं छोड़ेगी। इससे न सिर्फ आप खुद परेशान होते हैं बल्कि दूसरों को भी परेशान करते हैं।

चिंता होती ही ऐसी चीज है जो मन ही मन आदमी को जलाती रहती है। आपको पता ही नहीं चलता कि ये तनाव आपको अंदर से घुन की तरह खोखला कर रहे हैं। इसलिए कभी चिंता न करें, क्योंकि चिंता चिता के समान होती है। यह आपके चित्त को ही चिता बनाकर निर्जीव की बजाय जीव सहित जला डालती है। चिंताग्रस्त व्यक्ति तनावों से घिरकर तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है।

याद रखें कि जिस चीज या बात को लेकर आप चिंतित हैं, यदि उसका इलाज है तो चिंता क्यों पालना। और यदि उसका इलाज नहीं है तो भी चिंता क्यों पालना। क्योंकि जब इलाज है ही नहीं तो निश्चिंत रहें। जो होना है, होकर रहेगा। आप तो आगे की सोचें। चिंता से मुक्ति पाकर आप पाएँगे कि आप बेकार ही चिंता कर रहे थे।

दूसरी ओर, अपने विश्वासपात्र पर शक करने वाले अपने लिए ही तनाव खड़े करते हैं। इससे सामने वाले को भी कष्ट होता है और वह आपसे कटने लगता है। इस तरह आप अपने भरोसेमंद का भरोसा तोड़कर उसे अपने से दूर कर लेते हैं। कई बार सामने वाला आहत होकर विश्वासघात तक पर उतर जाता है।

इस प्रकार आप अपने मन में उठी बेकार की बात से उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर देते हैं जो वह सोच भी नहीं सकता था। इसी को कहते हैं ' आ बैल मुझे मार।' इसलिए देरी न करें। तनाव को भगाएँ, वर्ना वह आपको भगा-भगाकर मारेगा।

और अंत में, आज 'स्ट्रेस अवेयरनेस डे' है। इस अवसर पर हम स्ट्रेस या जोर देकर कहना चाहेंगे कि आज से ही आप अपने स्ट्रेस या तनाव के कारणों को पहचानकर उनसे मुक्ति पाने की दिशा में आगे बढ़ें ताकि आपकी प्रोडक्टिविटी बढ़ सके। इससे आपके वे काम भी बन जाएँगे, जिन्हें लेकर आप तनाव में थे। भई वाह, तुमने तो चिंता की चिता सजा दी। अब तुम्हें काहे की चिंता।
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