कुंठा पालने से दूर नहीं होगा अज्ञान का अंधकार

मनीष शर्मा
औरंगजेब द्वारा दरबार में दिए जाने वाले हर आदेश व फैसले को दीवान वलीराम तुरंत लिखकर उस पर उनके हस्ताक्षर करवा लेते थे ताकि कहीं कोई चूक न हो। वे अपने काम से काम रखते और किसी भी तरह की चापलूसी में नहीं पड़ते थे।

एक बार वे रोज की तरह दरबार में पहुँचे और बादशाह को सलाम करके खड़े हो गए। दरबार का उसूल था कि बादशाह जब तक बैठने का इशारा न करे, कोई नहीं बैठता था। उस दिन बादशाह ने वलीराम को बैठने का इशारा नहीं किया। वे बहुत देर तक अपने आपको अपमानित महसूस करते हुए खड़े रहे। इस बीचवे सोचते रहे कि अपना काम ईमानदारी से करने के बाद भी मैं ऐसे क्यों खड़ा रहूँ?

जब काफी समय गुजर गया तो वे बिना कुछ कहे दरबार से निकल गए। घर पहुँचने के बाद उन्होंने सारे शहर में मुनादी करवाकर अपनी सारी संपत्ति दान कर दी। इसके बाद वे यमुना के किनारे रेत पर दोनों पैर फैलाकर लेट गए। इस बीच औरंगजेब को उनके दरबार से चले जाने की बात पता चली। इस पर उसने सैनिकों से कहा- जाकर वलीराम से कहो कि बादशाह उससे नाराज हैं।

वह तुरंत दरबार में हाजिर हो। सैनिक ढूँढते-ढाँढते वलीराम के पास पहुँचे और उन्हें बादशाह का आदेश सुनाया जिसे उन्होंने मानने से मना कर दिया। यह जानने के बाद औरंगजेब कुछ सोचकर वलीराम के पास जा पहुँचा और बोला- वलीराम, ये पाँव कब से फैलाए।

वलीराम- हुजूर, जब से हाथ समेट लिए। जब तक मैं आपकी नौकरी में था, आप मेरी ओर देखते भी नहीं थे। आज मैं आजाद हूँ तो आप खुद चलकर मेरे पास आए हैं। यह सुनकर औरंगजेब निरुत्तर हो गया। वह जानता था कि जो सब कुछ छोड़कर आजाद हो चुका है, उसे अब किस बात का खौफ।

दोस्तो, कहते हैं व्यक्ति अपनी मजबूरियों और मर्जियों का गुलाम होता है। वर्ना कौन किसे गुलाम बना सकता है, बना पाया है। इसी कारण जैसे ही व्यक्ति की मजबूरी खत्म होती है, वह आजाद होने के लिए बेचैन होने लगता है और मौका मिलते ही एक झटके में सारे बंधन तोड़कर आजाद हो जाता है।

व्यक्ति की किसी न किसी मजबूरी का फायदा उठाकर ही अकसर उच्च पदस्थ लोग अपने अधीनस्थों से गुलामों जैसा व्यवहार करते हैं। जैसे कि उन्हें काम की आजादी न देना, उन्हें तरह-तरह से अपमानित करना। वे समझते हैं कि इससे सामने वाले परउनका रौब पड़ेगा और वह उन्हें बड़ा समझेगा। लेकिन दूसरों पर रौब ऐसे नहीं पड़ता बल्कि आपके विनम्र और शालीन व्यवहार से पड़ता है।

जब आप दूसरों को अपने बराबर समझेंगे, तभी तो वे आपको अपने से बड़ा मानेंगे। यदि गुलाम समझकर अति करेंगे तो एक दिन आपकी मुक्ति हो जाएगी यानी नौकरी से जाएँगे। इसलिए सबको अपना बनाकर चलें, तभी सभी आपके साथ चलेंगे। वर्ना वे मिलकर अपनी आजादी के लिए लड़ाई लड़ने लगेंगे, जैसी कि गुलाम भारत के लोगों ने लड़ी और 15 अगस्त के दिन देश को अँगरेजों की दासता से मुक्त करालिया।

दूसरी ओर, आजादी का मतलब है कि आप बेखौफ जिएँ, निश्चिंत होकर जिएँ। वलीराम ने कभी कुछ गलत नहीं किया तो वे अपमानित होकर कैसे काम कर सकते थे। डरते तो वे ही हैं, जो गलत करते हैं।

यही डर उन्हें गुलाम बना देता है, बंधन में बाँध देता है। जो इस बंधन से मुक्ति पा जाता है, फिर उसे कौन गुलाम बना सकता है, कौन उसके साथ गुलामों जैसा व्यवहार कर सकता है। इसलिए गलतियाँ करने से बचें, तभी आपकी आजादी हर तरह से सुरक्षित रहेगी।

और अंत में, आज 'स्वतंत्रता दिवस' है। इस अवसर पर प्रण करें कि आप खुद भी आजादी से रहेंगे, काम करेंगे और दूसरों को भी आजादी से रहने देंगे, काम करने देंगे। वैसे भी आजादी का मतलब केवल खुद की आजादी से नहीं होता।

पूरी तरह तो व्यक्ति तभी आजाद होता है, कहलाता है, जब वह दूसरों की आजादी का भी सम्मान करता है, उन्हें आजाद होने, रहने के मायने सिखाता-समझाता है। जब हम सभी ऐसा करेंगे, तभी हमारे देश का आजाद होना सार्थक होगा। इसलिए स्वतंत्र रहें और दूसरों को भी स्वतंत्र रहने दें। सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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