खुदा के बच्चे, तू कब बड़ा हो गया!

मनीष शर्मा
पंडित जवाहरलाल नेहरू सन्‌ 1939 में एक बार बड़ौदा के दौरे पर थे। वे वहाँ रेहाना तैयबजी के घर पर ठहरे। रेहाना के साथ उनकी अम्माजान रहती थीं जो कि उन दिनों बेहद बीमार थीं। पंडितजी के आने से पूरे बड़ौदा शहर में खुशी का माहौल था। हर कोई उनसे मिलना, उन्हें सुनना चाहता था।

चीख-चीखकर पंडितजी का गला भी लगभग बैठ गया था। दिनभर की दौड़-धूप के बाद वे रात का भोजन खत्म करके उठे ही थे कि उन्हें फिर एक बैठक में जाना पड़ गया। रेहाना उनके जाते ही सो गईं, लेकिन अम्माजान जागती रहीं ताकि पंडितजी लौटें तो उन्हें तकलीफ न हो। इस बीच बैठे-बैठे उनकी आँख लग गई। सुबह हुई तो पता चला कि पंडितजी रात को बारह बजे ही घर आ चुके थे।

अम्माजान की नींद न टूट जाए, इसलिए उन्होंने जूते उतारकर हाथ में ले लिए और बच्चों की तरह दबे पाँव जीना चढ़कर कमरे में पहुँचे। बिना बत्ती जलाए अँधेरे में ही इस तरह सोने की तैयारी की कि बिल्ली भी मात खा जाए।

दोस्तो, आज बाल दिवस है यानी चाचा नेहरू का जन्मदिन। उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था और बच्चे भी उन्हें बहुत प्यार करते थे। नेहरूजी जब बच्चों के साथ रहते थे तो एकदम किसी बच्चे की तरह ही व्यवहार करते थे। इसकी वजह थी कि उन्होंने अपने अंदर के बच्चे को हमेशा जाग्रत रखा। इसी बच्चे ने उन्हें बड़ा बनाया, चाचा नेहरू बनाया, भारत का प्रधानमंत्री बनाया। नेहरूजी से हमें सीखना चाहिए कि हम कितने ही बड़े क्यों न हो जाएँ, हमें अपना बचपन खोना नहीं चाहिए।

यह बच्चा ही हमें सिखाता है कि बड़े कैसे बना जाता है। यहाँ बड़े से आशय अधिक उम्र का होने से नहीं है। बड़ा वह है जो बड़ा-छोटा नहीं जानता, जो ऊँच-नीच नहीं मानता, जो जात-पात नहीं पहचानता, जो अमीरी-गरीबी नहीं देखता, जिसके लिए सभी दोस्त हैं, दुश्मन कोई भी नहीं। यह गुण बच्चों में होता है।

उनके लिए सभी बराबर होते हैं। यदि यही गुण बड़ों में देखने को मिलता है तो हम उसे बड़प्पन कहते हैं। यानी जो गुण बच्चों में बचपना कहलाता है, वही बड़ों में हो तो वह बड़प्पन बन जाता है। और जिसमें बड़प्पन है वह बड़ा हुआ कि नहीं। तो कह सकते हैं कि यदि आप बड़ा बनना चाहते हैं तो बच्चे बन जाओ।

वैसे बच्चे बनने के बहुत से फायदे हैं। बच्चा बनकर रहने से आप हमेशा जमीन से जुड़कर रह सकते हैं यानी सफलता या ऊँचाइयाँ भी आपके सिर चढ़कर नहीं बोलतीं। आप अपनी कामयाबी पर उड़ने नहीं लगते।

जब आप ऐसा करते हो तो आप सभी के अजीज बने रहते हो और बिना किसी रुकावट के और आगे बढ़ते जाते हो। बच्चे हमें सिखाते हैं कि सीखा कैसे जाता है। किसी भी नई बात को पकड़कर आत्मसात करने की जो क्षमता किसी बच्चे के अंदर होती है, वह किसी बड़े के अंदर नहीं होती। बच्चे को जो कुछ सिखाया जाता है या वह जो कुछ देख-सुनकर सीखता है, उसमें वह मीनमेख नहीं निकालता।

उसे सीखने में शर्म भी नहीं आती। जबकि बड़े किसी भी नई बात पर अगर-मगर शुरू कर देते हैं। यानी जो बात दिमाग में उतरनी थी, वह उतरने के बजाय उतराने लगती है यानी अगर-मगर की भँवर में फँसकर कहीं फिंका जाती है। इसलिए यदि आप समय की दौड़ में बने रहने के लिए नई-नई बातें सीखना चाहते हैं तो आप बच्चे बनकर सीखें। ऐसे ही बच्चे बनकर रहने से आप सामने वालों से वे काम भी आसानी से करा सकते हैं जो आप उससे बड़े बनकर नहीं करा पाते। कहावत भी है कि बेटा बनकर खा सकते हो, बाप बनकर नहीं।

अब सवाल यह उठता है कि बच्चा बना कैसे जाए? अरे भाई, बड़ा ही आसान काम है। आपको सबके सामने वैसे ही रहना है, जैसे आप अपने माता-पिता या पालकों के सामने रहते हैं, भले ही आपकी उम्र कितनी भी क्यों न हो या हो जाए। और यदि बात ऊपर वाले की, खुदा की करें तो उसके आगे तो सभी बच्चे हैं। फिर चाहे वह किसी भी रूप में कितना ही बड़ा क्यों न हो। तो अंकल, आज आप बच्चा बनकर ही मना रहे हैं न बाल दिवस। अरे नाराज न हों, मैं तो आपके सामने बच्चा ही हूँ न।

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