जग जगेगा तभी जब आप जाओगे जग!

मनीष शर्मा
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युद्ध में हर तरफ से मुँह की खा रहे रावण ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे कुंभकर्ण को जगाकर लाएँ। कुंभकर्ण को ब्रह्माजी का वरदान था कि वह लगातार छः माह सोने के बाद सिर्फ एक दिन के लिए जागेगा। दरअसल कुंभकर्ण ब्रह्मा से इंद्रासन माँगना चाहता था, लेकिन वर माँगते समय देवी सरस्वती ने उसकी जीभ को प्रभावित कर दिया और वह इंद्रासन की बजाय निंद्रासन बोल गया।

इधर रावण के सेवक ढोल-नगाड़े लेकर कुंभकर्ण के शयनकक्ष में पहुँचे और जोर-जोर से बजाना शुरू कर दिया। लेकिन कुंभकर्ण पर इसका कोई असर नहीं हुआ। जब उसे जगाने के सभी उपाय व्यर्थ चले गए, तब गरमा-गरम पकवान बनाकर शयनकक्ष में लाए गए। उनकी गंध से कुंभकर्ण उठ बैठा। भोजन के बाद जब वह रावण से मिलने पहुँचा तो रावण ने सारी बात बताकर उसे राम से युद्ध करने का आदेश दिया।

राम के बारे में सुनते ही कुंभकर्ण समझ गया कि निश्चित ही वे विष्णु के अवतार हैं, वरना रावण का मुकाबला तीनों लोकों में और कोई नहीं कर सकता था। उसने राम के बारे में बताकर रावण से युद्ध न करने का अनुरोध किया, लेकिन रावण नहीं माना। बाद में बड़े भाई के कहने पर कुंभकर्ण युद्धभूमि की ओर चल दिया।
गौर करने लायक है कि कुंभकर्ण जाग गया था तभी वह राम को पहचान पाया। परंतु रावण तो जागकर भी सोया हुआ था। अन्ततः उसका यही जागते हुए भी सोते रहना पूरे परिवार के विनाश का कारण बना।


दोस्तो, इसके बाद रणभूमि में क्या हुआ यह हम जानते ही हैं। यहाँ यह बात गौर करने लायक है कि कुंभकर्ण जाग गया था तभी वह राम को पहचान पाया। परंतु रावण तो जागकर भी सोया हुआ था। तभी न तो राम को वह खुद पहचान पाया और न ही किसी दूसरे के बताने पर उसने जानने की कोशिश की। अन्ततः उसका यही जागते हुए भी सोते रहना पूरे परिवार के विनाश का कारण बना।

ऐसी गलती केवल रावण ने ही नहीं की थी। हममें से भी बहुत से लोग भी करते हैं, जो कि जागते हुए भी सोते रहते हैं और इसका नुकसान भी उठाते हैं। हम बेकार में ही कुंभकर्ण को कोसते रहते हैं कि वह हमेशा सोता रहता था। दरअसल सोए हुए तो हम खुद ही हैं। वह तो फिर भी छः माह में एक बार जाग जाता था लेकिन हम तो जागकर भी वर्षों से सोए हुए हैं। इसलिए जागो!

अब सवाल उठता है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि आदमी जागते हुए भी सोता रहे? ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हम उठने और जागने में फर्क ही नहीं समझते। कहा गया है कि 'उत्तिष्ठित जागृत प्राप्यवरान्‌ निबोधत।' इस श्रुति से पता चलता है कि व्यक्ति पहले उठता है और फिर जागता है। यानी उठना एक प्रक्रिया है और जागना दूसरी। हममें से बहुत से लोग रोज सुबह उठ तो जाते हैं लेकिन जागते नहीं हैं। तभी हम बहुत कुछ गलत कर जाते हैं।

अब गलतियाँ तो सोया हुआ व्यक्ति ही कर सकता है, जागा हुआ नहीं। अकसर हमसे होने वाली गलतियाँ एबसेंट माइंडनेस का परिणाम होती हैं। यानी आपका मन काम के वक्त कहीं ओर विचरण कर रहा होता है। यह स्थिति भी तो नींद का ही एक रूप है। इसलिए जरूरी है कि हम न सिर्फ उठें बल्कि जागें भी। आपकी किस्मत भी तभी खुलेगी जब आप जो कर रहे हो उसे पूरे होशोहवास में अच्छे-बुरे परिणामों का आकलन करके कर रहे हों। इसके लिए जरूरी है जागृत रहना। इसलिए जागो!

और जागने के लिए आज से बेहतर दिन क्या होगा। आज देवउठनी एकादशी है। आज के दिन चार माह पूर्व सोए भगवान उठते हैं। इसलिए ईश्वर को जगाते समय आप खुद भी जागें। क्योंकि परमात्मा तो तभी जागेगा न जब आप खुद जागेंगे, आपकी आत्मा जागेगी। आखिर आत्मा का परमात्मा से सीधा संबंध जो है। इसलिए इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। प्रबोधन माने जागृत करना। इसलिए हम आज के दिन आपको जागृति का संदेश देना चाहते हैं। जिससे आप सही अर्थों में जागें तभी जग जागेगा, जग जागेगा तो फिर जगदीश भी जाग जाएँगे। इसलिए जागो!

और अंत में, आज के दिन आपसे आग्रह है कि आप भी आज किसी सोए को उठाएँ, उठे हुए को जगाएँ, जागे हुए को खड़ा करें और खड़े हुए को दौड़ाएँ। यदि आप यह करेंगे तभी आपका देवउठनी एकादशी मनाना सार्थक होगा। इसलिए जागो और जगाओ। अब जग भी जाओ भाई। वाह, क्या अँगड़ाई ली है।
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