अन्याय का प्रतिकार करोगे तो होगा तिलक

मनीष शर्मा
रत्नागिरि की मराठी शाला के प्रधानाचार्य गंगाधर पंत का बेटा बाल परीक्षा में हल करने के लिए कठिन सवाल ही चुनता था, क्योंकि उसे नंबरों से ज्यादा चिंता ज्ञान हासिल करने की रहती थी। सीखने के इसी गुण के कारण बाल को संस्कृत के कठिन से कठिन श्लोक भी कंठस्थ थे।
 
एक बार जब वह अपनी कक्षा में बैठकर पढ़ाई कर रहा था, तब उसके सहपाठियों ने कक्षा में ही मूँगफली खाना शुरू कर दिया। उन्होंने बाल को भी बुलाया, लेकिन उसे कक्षा में अनुशासनहीनता पसंद नहीं थी। उसने सहपाठियों को ऐसा करने से मना किया, लेकिन वे नहीं माने। जल्द ही पूरा कक्ष छिलकों से भर गया। जब शिक्षक वहाँ आए तो कचरा देखकर उन्हें गुस्सा आ गया।
 
उन्होंने सभी छात्रों को डाँटते हुए कक्ष की सफाई करने को कहा। बाल को छोड़कर सभी छात्र सफाई में जुट गए। जब शिक्षक ने बाल से भी सफाई करने को कहा तो वह बोला- मैं सफाई नहीं करूँगा, क्योंकि यह गंदगी मैंने नहीं फैलाई है।
 
मैं कक्षा में सिर्फ पढ़ाई करने आता हूँ, इसे गंदा करने नहीं। इसलिए मैं सजा क्यों भुगतूँ? बाल के इनकार से शिक्षक चिढ़ गए। वे हाथ में बेंत लेकर बोले- शिक्षक को उल्टा जवाब देता है। ठहर, मैं तुझे अभी मजा चखाता हूँ। इससे पहले कि शिक्षक उस तक पहुँचते, बाल अपना बस्ता उठाकर बोला- मैंने न तो कुछ गलत किया है और न ही कुछ गलत कहा है।
 
मैं न सजा भुगतूँगा और न ही अन्याय के आगे झुकूँगा। ऐसा कहकर वह कक्षा से निकल गया और शिक्षक देखते रह गए। यही बाल आगे चलकर लोकमान्य बाल गगंगार तिलक के नाम से विख्यात हुआ।
 
दोस्तो, कहते हैं कि कायर ही अन्याय के आगे झुकते हैं। जब आपने कुछ गलत किया ही नहीं है, तो आपको उसका विरोध करना चाहिए।
 
यदि आप विरोध करना नहीं जानते, तो सीखें, क्योंकि गलती न होने पर भी यदि आप चुप्पी साधे रहेंगे, तो लगेगा कि आप भी उस दोष, अपराध या अनुशासनहीनता में सहभागी थे, जिसके लिए आपको जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इस तरह दोषी न होकर भी आप दोषियों की फेहरिस्त में शामिल हो जाते हैं।

इसलिए यदि निर्दोष हैं तो अपने पर लगने वाले आरोपों का जोरदार तरीके से प्रतिकार करें। तब सच्चाई जानने वाले दूसरे लोग भी आपका साथ देंगे और जीतने पर आपको सिर-आँखों पर बैठाएँगे, तिलक करेंगे।
 
वैसे भी आज दोषी भी गला फाड़-फाड़कर लोगों के मन में प्रथम दृष्टया निर्दोष होने की गलतफहमी पैदा कर देता है, बाद में भले ही उसका भेद खुल जाए। तो ऐसे में निर्दोष को तो अपना पक्ष रखते हुए अन्याय का पूरी शिद्दत से सामना करते हुए अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करना ही चाहिए। तिलक भी ऐसा ही करते थे, तभी तो उन्होंने विदेशी हुकूमत के सामने आवाज उठाई- 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।'
 
दूसरी ओर, यदि आप आसान सवालों को ही हल करने में लगे रहेंगे, तो कभी कठिन सवालों को हल नहीं कर पाएँगे। देखा गया है कि जो लोग कठिन सवालों को हल करने से बचते रहे, उनसे डरते रहे, वे जीवन के कठिन दौर में टूट गए, असफलता की गर्त में चले गए।
 
वैसे भी कठिन काम करने में जो मजा है, वह आसान काम करने में कहाँ। इसलिए कभी भी कठिन सवालों से न बचें, उन्हें हल करें। तभी तो आप कुछ नया सीख पाएँगे, वरना आसान सवालों के हल तो आप जानते ही हैं। उन्हें हल करने से क्या हासिल होगा। नए सवालों से मिलने वाली सीख ही आपको जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार करेगी। इससे आपका लक जागेगा और आपको सफलता का तिलक लगेगा।
 
और अंत में, आज तिलक जयंती है। उन्होंने हमें सिखाया कि जो स्थान पढ़ने के लिए है, वहाँ सिर्फ पढ़ा ही जाए तो अच्छा है। सरस्वती के मंदिर को गंदा करोगे तो आपको सरस्वती का आशीर्वाद मिलेगा कैसे?
 
इसलिए अपने पढ़ने के स्थान को हमेशा साफ-सुथरा रखें। फिर चाहे वह स्थान घर में हो या अध्ययनशाला में। इससे आपके मन में साफ-सुथरे विचार उत्पन्न होते हैं और आपका मन भी पढ़ाई में अच्छी तरह से लगता है। अरे भई, गलत होकर भी चढ़ाई कर रहे हो। यह तो वही बात हुई कि एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी।

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