एक उद्यमी की रेसि‍पी

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- वि‍जय चि‍तले

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कभी-कभी ऐसा होता है कि हम लायब्रेरी से बिना तरतीब याने 'एट रॅन्डम' कोई किताब सिर्फ इसलिए ले आते हैं कि उस किताब का शीर्षक हमें कुछ हटके लगता है। मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। मेरी नजर इडली, ऑर्किड आणि मी याने इडली ऑर्किड और मैं नामक मराठी किताब पर पड़ी और इस अजीब टाइटल ने मुझे उसकी तरफ खींच लिया। किताब के पन्नो को पलटने के पहले मैंने मन ही मन सोचा, इडली खाने का साउथ इंडियन पदार्थ और ऑर्किड याने विशेष प्रजाति के फूलों वाले पौधे। इन दोनों का क्या संबंध होगा?

मेरी उत्सुकता का समाधान किताब की प्रस्तावना पढ़ने से हो गया। इतना ही नहीं, एक उद्यमी शख्स की चुनौती भरी जिंदगी का दर्शन एक मनोरंजक आत्मकथा के रूप में देखने को मिला। विट्ठल व्यंकटेश कामत नामक शख्स ने होटल व्यवसाय में पदार्पण कर छोटे से सक्रिय इंडियन रेस्त्रराँ से शुरूआत कर अपने कामत रेस्त्रराँ की विशाल श्रृंखला कैसे स्थापित की। उन्होंने सारे भारत में अपनी मशहूर इडली को इंडियन राइस पुडिंग नाम से विशेष पहचान दी।

इतना ही नहीं, सारे एशिया में अपने 'ऑर्किड' नामक फाइव स्टार होटल को सर्वोत्तम पर्यावरणवादी होटल का सम्मान दिलाया। कामत ने इन सब घटनाओं की दिलचस्प दास्तान बड़ी विनम्रता से, स्पष्टवादिता से, ईमानदारी से ओर बड़े मनोरंजक तरीके से ऐसे बयान की है कि एक बार किताब हाथ में लें तो पाठक उसे खत्म किए बिना नीचे नहीं रख सकता। इस किताब के कई भाषाओं में संस्करण उपलब्ध हैं जैसे अँगरेजी गुजराती, तेलुगु आदि। अँगरेजी शीर्षक है- 'इडली ऑर्किड एंड विल पॉवर'।

किताब में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं, जिन्हें किसी भी उद्यमी को आत्मसात करना चाहिए। यदि हम उद्यमी नहीं हों तो भी हमारे जीवन में अनुसरण करने लायक बहुत मसाला इस छोटी सी किताब में है। चलिए देखते हैं हम इस ग्रंथ से क्या-क्या सीख सकते हैं।

1. उद्यमी वह होता है जो जोखिम उठाकर व्यवसाय करता है। सिर्फ पुरखों का धंधा, व्यापार आगे बढ़ाने वाला उद्यमी नहीं।

2. उद्यमी होने के लिए सात अहम बातों की जरूरत होती है। कुछ अलग कर दिखाने की जबरदस्त इच्छाशक्ति, चमकदार कल्पना, नएपन की चाह, कोई योग्य गुरु व मार्गदर्शक, ध्येय, आत्मविश्वास और भविष्य याने आगे क्या होने वाला है इसकी दृष्टि।

3. कामयाबी की चाबी तीन 'डी' में हैः डिटरमिनेशन, डेडिकेशन और एडसिप्लन याने दृढ़ निश्चय, लगन या समर्पण और अनुशासन।

4. व्यापार और ईमानदारी कभी एक साथ नहीं चल सकते यह एक अत्यंत गलत धारणा है।

5. आप किसी भी व्यवसाय में क्यों न हों, अपनी स्ट्रेंथ, वीकनेस, ऑपार्च्युनिटीज और थ्रेट्स जरूर पहचानें। याने आपकी ताकत क्या है, कहाँ आप कमजोर पड़ रहे हैं, आपको उन्नाति के क्या-क्या अवसर उपलब्ध हैं ओर कहाँ उसको चुनौती या डर है।

6. अपने ग्राहक के मनोविज्ञान को समझें। उसी से कामयाबी आती है।

7. अपने व्यवसाय में एक बार 'कंफर्ट जोन' में पहुँचने के बाद याने धंधा अच्छा खासा जम जाने के बाद लोग आराम फर्माने लगते हैं, यह गलत है।

8. सिर्फ मालिक मलाई खाए और अधीनस्थ भूखे रहें, यह व्यावसायिक और नैतिक दोनों ही दृष्टि से गलत है। मालिक के साथ-साथ सभी अधीनस्थों की भी प्रगति होना चाहिए।

तो यह है अति संक्षिप्त में इस उम्दा किताब का सार। असली मजा पूरी किताब पेज-टू-पेज पढ़ने में है क्योंकि जो भी सिद्धांत यहाँ प्रतिपादित किए गए हैं उन सबको अपने जीवन के असली अनुभवों से उदाहरणों से लेखक ने समर्थित किया है। साथ-साथ इंसान अपनी की हुई गलतियों से कटु अनुभव से भोलेपन में मिले धोखे से भी कितना सीख सकता है। इन सबका कहाँ रोचक वर्णन है।

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