जब नहीं है ईमान तो क्यों रखते हो ईमान

मनीष शर्मा
एक दूधिया यानी दूध वाले का एक हलवाई से विवाद हो गया। मामला हाकिम के सामने पहुँचा। वह बड़ा ही भ्रष्ट था। हलवाई को यह बात मालूम थी। इसलिए वह एक कीमती पगड़ी और मिठाई लेकर तड़के ही हाकिम के घर पहुँच गया। यह बात रात होते-होते दूधिया के कानों तक पहुँच गई। उसने उसी समय अपनी एक भैंस खोली और हाकिम के घर चल दिया।

अंधेरे के कारण कोई उसे देख नहीं पाया। हाकिम भी भैंस को देखकर खुश हो गया। यह पगड़ी की तुलना में अधिक कीमती और उपयोगी थी। मुकदमे के फैसले का दिन आया। फैसला दूधिया के हक में हुआ। इससे हलवाई भौंचक्का रह गया, क्योंकि उसे फैसला अपने हक में होने का यकीन था। उसने अपनी पगड़ी उतारकर हाकिम की ओर इशारा करते हुए फरियाद की- हुजूर! मेरी पगड़ी की थोड़ी तो लाज रख लेते। उसके सरेआम इशारे से सकपकाकर हाकिम बोला- जनाब, अब क्या करें! पगड़ी तो भैंस खा गई। हलवाई को बात नहीं समझ आई, लेकिन दूधिया जरूर मुस्करा दिया।

साथियो, अब बेपेंदी के लौटे पर विश्वास करोगे तो ऐसा ही होगा ना। आप ही बताएँ कि एक भ्रष्ट आदमी बेपेंदी का लौटा नहीं तो क्या होता है। उसको तो माल से मतलब है। उसका झुकाव तो उस ओर ही होगा जहाँ से ज्यादा माल मिले। तब आप सामने वाले को इस बात के लिए दोषी ठहराएँ कि उसका ईमान नहीं है तो यह आपकी नासमझी है। क्योंकि उसका ईमान ही होता तो वह ईमानदार नहीं होता? वह तो भ्रष्ट है ना। इसलिए कह सकते हैं कि भ्रष्ट आदमी पर यकीन नहीं करना चाहिए। लेकिन इसके बाद भी लोग जानते-बूझते ऐसे लोगों पर ईमान रख लेते हैं और बाद में पछताकर अपनी झुँझलाहट निकालते हैं, जबकि इससे सामने वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता। पड़ता होता तो वह ऐसे काम ही क्यों करता।
भैंस के पगड़ी खाने वाला यह फलसफा राजनीति, व्यवसाय के साथ ही जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में भी लागू होता है, जहाँ कोई बात बनते-बनते इसलिए नहीं बन पाती या कोई समझौता होते-होते इसलिए रह जाता है क्योंकि वहाँ भी कोई दूधिया किसी हलवाई पर भारी पड़ जाता है।


वैसे इस तरह के मामलों में वह भी कम दोषी नहीं होता जो सामने वाले को उसके गलत आचरण के लिए दोषी ठहराता है, उसे गालियाँ देता है, क्योंकि वह भी कौन-सा ईमान वाला काम कर रहा होता है। भ्रष्ट आदमी तभी तो बनता है जब कोई उसे ऐसा बनाता है। जब किसी व्यक्ति को अपना कोई काम निकलवाना होता है और वह सही तरीके से होना संभव नहीं होता तब वह घूस का सहारा लेकर किसी भी तरीके से सामने वाले से अपना काम करवाना चाहता है। ऐसा काम करवाने वाला भी तो उतना ही भ्रष्ट हुआ ना।

अब हलवाई ने अपने फायदे के लिए हकीम को पगड़ी या टोपी पहनाने की कोशिश की और बाद में उसे पता चला कि दरअसल टोपी तो वह खुद पहन चुका है। अब वो कर भी क्या सकता था। जब खुद गलत कर रहा था तो हकीम को कैसे गलत ठहराता। इसलिए हम तो यही कहेंगे कि गलत काम करना ही क्यों।

गलत काम के गलत परिणाम आज नहीं तो कल आपके सामने आएँगे ही, आते ही हैं। यदि आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है तो आज यह बात आपको समझ में आ गई होगी कि आखिर आपकी पगड़ी गई कहाँ? अरे भाई, आपकी पगड़ी को भी कोई तगड़ी-सी भैंस चर गई होगी।

दूसरी ओर यदि आपने अब तक किसी को पगड़ी नहीं दी है और देने के लिए लेकर बैठे हैं तो हम आपसे आग्रह करेंगे कि आप अपना विचार बदल लें क्योंकि पगड़ी देने के चक्कर में एक दिन आपकी ही पगड़ी उतर सकती है। इसलिए यदि हमेशा पगड़ी पहनकर यानी इज्जत के साथ रहना चाहते हो तो सही तरीके से काम करें और दूसरों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करें।

वैसे भैंस के पगड़ी खाने वाला यह फलसफा राजनीति, व्यवसाय के साथ ही जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में भी लागू होता है, जहाँ कोई बात बनते-बनते इसलिए नहीं बन पाती या कोई समझौता होते-होते इसलिए रह जाता है क्योंकि वहाँ भी कोई दूधिया किसी हलवाई पर भारी पड़ जाता है। ऐसे में बात घूस की भले ही न हो, लेकिन कोई न कोई स्वार्थ अवश्य आड़े आ जाता है, जिसके चलते लोग जबान देकर भी पलट जाते हैं। ऐसे बेपेंदी के लोटे तात्कालिक रूप से भले ही यह सोच लें कि वे फायदे में रहे, लेकिन वास्तव में उन्हें होता नुकसान ही है, क्योंकि वे अपनी विश्वसनीयता जो खो देते हैं।

और अंत में, दीपावली मनाने के लिए उस हाकिम जैसे बहुत से लोग पगड़ी और भैंस के इंतजार में ताक लगाए बैठे हैं। हमें उम्मीद है कि अब आप अपना दिवाला निकालकर उनके लिए दिवाली मनाने का इंतजाम नहीं करेंगे।
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