रुलाने वाला रावण, हँसाने वाले राम

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- मनीष शर्म ा
राम-रावण युद्ध समाप्त हो चुका था और अंततः बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। रावण मरणासन्न अवस्था में रणभूमि में पड़ा था। तभी राम ने लक्ष्मण से कहा- जाओ लक्ष्मण, रावण से राजनीति की शिक्षा लो। राम की बात सुनकर लक्ष्मण हैरान रह गए।

वे समझ नहीं पा रहे थे कि रावण जैसे दुराचारी से भी कुछ सीखा जा सकता है। लेकिन वे अपने बड़े भाई की बात टाल नहीं सकते थे, इसलिए रावण के पास पहुँचे और उससे शिक्षा देने का आग्रह किया। इस पर रावण बोला- मैं केवल पात्र व्यक्ति को ही शिक्षा देता हूँ। रावण द्वारा अपमानित होकर लक्ष्मण तिलमिलाते हुए लौट आए। उन्होंने राम को सारी घटना बताई।

उन्होंने लक्ष्मण से पूछा- रावण के पास जाकर तुम कहाँ बैठे थे? लक्ष्मण- उसके सिरहाने। राम- यही तो गलती कर दी। बिना विनम्र हुए ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। तुम एक बार फिर रावण के पास जाओ और इस बार उसके पैरों की ओर बैठकर शिक्षा की याचना करना। लक्ष्मण ने ऐसा ही किया। इस बार रावण ने लक्ष्मण को सहर्ष राजनीति के गुर बताए।
कहते हैं घृणा व्यक्ति के दुर्गुणों से करनी चाहिए, व्यक्ति से नहीं। यही राम ने किया। रावण भले ही उनका शत्रु था, लेकिन इसके बाद भी राम जानते थे वो कितना बड़ा ज्ञानी है, विद्वान है। वे उसकी क्षमताओं, योग्यताओं से परिचित थे।


दोस्तो, कहते हैं घृणा व्यक्ति के दुर्गुणों से करनी चाहिए, व्यक्ति से नहीं। यही राम ने किया। रावण भले ही उनका शत्रु था, लेकिन इसके बाद भी राम जानते थे वो कितना बड़ा ज्ञानी है, विद्वान है। वे उसकी क्षमताओं, योग्यताओं से परिचित थे। उन्हें पता था कि रावण के पास ऐसा बहुत कुछ है जो सीखा जा सकता है और सीखना भी चाहिए। इसलिए उन्होंने लक्ष्मण को भेजा। यदि हम सब भी राम की दृष्टि से लोगों को देखने, परखने लगें तो फिर बात ही क्या।

लेकिन हममें से अधिकतर लोगों के लिए वह व्यक्ति हर दृष्टि से अयोग्य हो जाता है जिससे हमारी पटरी नहीं बैठती। फिर भले ही वह कितना ही योग्य क्यों न हो और उसके व्यक्तित्व, व्यवहार या आचरण से बहुत कुछ सीखा जा सकता हो।

इसलिए बेहतर यही है कि यदि आपको सामने वाले से नफरत है, आपका उससे छत्तीस का आँकड़ा है, तो करें नफरत, लेकिन उसकी बुराइयों से, उससे नहीं। क्योंकि बुरा वो नहीं है, बुरी हैं उसकी आदतें, उसके विचार। यदि आप इस दृष्टि से देखेंगे तो आपको सामने वाले में अच्छाइयाँ भी नजर आएँगी और आप उससे भी कुछ सीख पाएँगे।

दूसरी ओर, कहते हैं रावण प्रकांड विद्वान था। लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि वह विद्वान होकर भी दुराचारी था। इसका मतलब है कि उसके सद्गुणों पर दुर्गुण हावी थे जिनकी वजह से वह रावण बन गया। रावण का शाब्दिक अर्थ होता है रुलाने वाला। और रावण यही करता था अर्थात दूसरों को रुलाता था।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर वो कौन-से दुर्गुण थे जिनकी वजह से वह दुराचारी बना। ये दुर्गुण थे- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, छल, हठ और आलस्य। ये दसों विकार रावण के अंदर थे और उसके दस मुखों में हर मुख एक विकार का प्रतीक था।

इन विकारों ने ही उसकी विद्वत्ता को कुंद कर दिया था। अब आप ही बताइए कि जब इनमें से एक ही विकार आदमी को रोने-रुलाने पर मजबूर कर देता है, तो रावण के अंदर तो ये दसों थे। इसी कारण रावण जिंदगी भर लोगों को रुलाता रहा और अंत में खुद भी खूब रोया।

इसके विपरीत राम में इन दुर्गुणों के स्थान पर सभी सद्गुण थे। इसीलिए वे राम थे अर्थात रमण करने वाले, जिनकी उपस्थिति लोगों को अच्छी लगे, आनंदित करे, उन्हें हँसाए। यानी जहाँ रावण रुलाने वाला है, वहीं राम हँसाने वाले हैं, सुख देने वाले हैं, शांति देने वाले हैं।

अपने सद्गुणों और संस्कारों की ताकत से राम ने रावण पर विजय हासिल की। इस ताकत से कोई भी, अपने बड़े से बड़े शत्रु पर, प्रतिद्वंद्वी पर विजय हासिल कर सकता है।

अंत में, आज विजयादशमी या दशहरा है। आज के दिन बुराई के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है। हम हर साल यह करते हैं, लेकिन रावण आज तक नहीं मरा। क्योंकि हम जहाँ एक ओर रावण का दहन करते हैं, वहीं दूसरी ओर उसके किसी न किसी दुर्गुण को वहन भी करते हैं।

अब यदि उसके दस विकारों में से कोई भी एक विकार आपके अंदर होगा तो रावण मरेगा कैसे? वह विकार तो आपको भी रुलाएगा, रुलाता भी होगा। इसलिए आज रावण दहन करते समय यह प्रण करें कि आप आज अपने दुर्गुणों का भी दहन करेंगे। तभी सही अर्थों में रावण दहन होगा। सभी को विजयादशमी की शुभकामनाएँ।
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