विश्वासघात यानी आत्मघात

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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गुरु हरगोविंदसिंहजी को अपने साथी पाइंदे खाँ पर खुद से ज्यादा भरोसा था। उनके बाकी साथी मौका मिलने पर उन्हें इस बात के लिए चेताते भी थे, लेकिन गुरुजी उनकी एक न सुनते, क्योंकि युद्ध के मैदान में मुगलों के छक्के छुड़ाने में पाइंदे खाँ की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।

बार-बार की जीत और गुरु के अत्यधिक भरोसे के कारण पाइंदे खाँ का सिर घूम गया। वह सार्वजनिक रूप से अपने बारे में बढ़-चढ़कर बातें करने लगा और सारी सफलताओं का श्र ेय वह अपने आपको देने लगा। कई बार उसने गुरु के भरोसे को भी तोड़ा, लेकिन उन्होंने हर बार अनदेखी कर दी। एक बार उसकी अक्षम्य गुस्ताखी पर गुरु ने घोषणा की कि पाइंदे खाँ को दरबार से निकाल दिया जाए।

इस पर वह गुरु को चुनौती देते हुए बोला- मैं जहाँपनाह से तुम्हारी शिकायत करके तुम्हें सजा दिलाऊँगा। वैसे भी मेरे जाने के बाद तुम्हारी सेना मुगल सेना के सामने टिक नहीं पाएगी।

इसके बाद बौखलाया पाइंदे खाँ सीधे दिल्ली पहुँचा और गुरु के विरुद्ध शाहजहाँ के कान भर दिए। जल्द ही काले खाँ के नेतृत्व में मुगल सेना गुरु को सबक सिखाने के लिए पहुँच गई।

जलंधर में मुगल व सिख सेना का मुकाबला हुआ। संख्या में कम होने के बाद भी सिखों ने मुगलों के हौसले पस्त कर दिए। इस बीच पाइंदे खाँ गुरु की ओर लपका और उनसे बोला- अब भी माफी माँग लो वर्ना धूल में मिला दिए जाओगे। गुरु- तू बातें न बना, वार कर।

इस पर उसने गुरु पर वार किया, लेकिन चूक जाने के कारण जमीन पर जा गिरा। गुरु उससे बोले- अपनी गलती मान ले। मैं तेरा पुराना रुतबा लौटा दूँगा। लेकिन वह गुरु पर तलवार लेकर दौड़ा। गुरु को न चाहते हुए भी उसका वध करना पड़ा।

दोस्तो, पता नहीं क्यों लोग छोटे-मोटे लालच में पड़कर उसी व्यक्ति को धोखा देने को तैयार हो जाते हैं, जो उन पर अपने आप से ज्यादा भरोसा करता है। वे यह नहीं सोचते कि एक सच्चे व्यक्ति के भरोसे को तोड़कर वे कुछ हासिल नहीं कर पाएँगे।

वे जिस लालच में पड़कर धोखेबाजी कर रहे हैं, एक दिन वही लालच उन्हें ले डूबेगा। साथ ही जब वे उस व्यक्ति को धोखा दे सकते हैं, जिसके वे अतिविश्वसनीय थे, तो उन्हें अपनी ओर मिलाने वाला व्यक्ति तो उनसे पहले ही सतर्क रहेगा और उन्हें कभी उतने नजदीक नहीं आने देगा जो नजदीकी उन्हें पहले व्यक्ति के साथ हासिल थी।

इस तरह देखा जाए तो निष्कर्ष यह निकलता है कि विश्वासघात का नतीजा यदि सबसे ज्यादा किसी को भुगतना पड़ता है तो स्वयं विश्वासघाती को, जैसा कि पाइंदे खाँ ने भुगता। यानी विश्वासघात अंततः आत्मघात ही साबित होता है। इसलिए कभी किसी के साथ विश्वासघात नहीं करें। और यदि कर चुके हैं, तो इस गलती को अभी भी सुधारा जा सकता है।

आप एक बार उस व्यक्ति से सच्चे मन से क्षमा माँग कर तो देखें। वह निश्चित ही आपको क्षमा कर देगा, क्योंकि खोट उसके नहीं, आपके मन में पैदा हुई थी। वह तो अब भी आपको एक मौका दे सकता है। कोशिश करके तो देखें।

दूसरी ओर, कोई भी सफलता एक बेहतर टीम वर्क का नतीजा होती है। लेकिन उस सफलता की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों को इस बात का अहंकार हो जाता है कि यह सब उनकी वजह से हुआ है, उनकी योजनाओं का नतीजा है। लेकिन केवल योजना से कुछ नहीं होता।

आपका बॉस आपको मोटीवेट करने के लिए इसका श्रेय आपको दे रहा है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप बहक जाएँ और बाकी सभी को तुच्छ समझने लगें। इस अहं का परिणाम भी पाइंदे खाँ जैसा ही होता है। एक दिन आपको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। और जब आपके बिना भी काम चलता है तो आपकी समझ में आ जाता है कि आप कितने गलत थे।

और अंत में, आज गुरु हरगोविंदसिंहजी की जयंती है। इस अवसर पर प्रण करें कि चाहे जो बनेंगे, लेकिन पाइंदे खाँ कभी नहीं बनेंगे यानी प्रशंसा से अपना संतुलन नहीं खोएँगे। साथ ही उसकी तरह विश्वासघात भी नहीं करेंगे। तब आप सभी के चहेते बनकर आगे बढ़ते जाएँगे। अरे भई, किसी का भरोसा तोड़कर आने वाले पर आसानी से भरोसा नहीं किया जाता।
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