इन दिनों वैश्विक मंदी के दौर में जो रोजगार रिपोर्टें आ रही हैं, उनमें से अधिकांश रिपोर्टों में भारत में रोजगार एवं करियर की संतोषप्रद संभावनाएँ बताई जा रही हैं। रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि एक ओर जब दुनिया के अधिकांश विकसित देशों में लाखों की संख्या में नौकरियाँ समाप्त हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में कई क्षेत्रों में नौकरियाँ बढ़ रही हैं।
देश में खासतौर से वित्तीय, बैंकिंग, बीमा, दूरसंचार, रिटेल, एफएमसीजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स एवं बुनियादी ढाँचा उद्योगों में नौकरी बढ़ रही है। वर्ष 2009 में जॉब मार्केट में पसरे सन्नाटे को पीछे छोड़ते हुई करीब ढाई लाख प्रोफेशनल्स के लिए नई नौकरियाँ अनुमानित की गई हैं।
इनमें से ज्यादातर वित्तीय सेवा क्षेत्र से संबंधित हैं। नौकरियों का बाजार चालू वित्त वर्ष की दूसरी छःमाही में रफ्तार पकड़ लेगा। कुछ बीपीओ और हेल्थ केयर कंपनियाँ जैसे एसीएस और एसेंसिया भी आने वाले दिनों में हजारों प्रोफेशनल्स की भर्ती की तैयारी कर रही हैं। इंफोसिस मार्च 2009 तक 25 हजार लोगों की नई भर्ती करेगी। लार्सन एंड टुब्रो में दस हजार नई भर्तियाँ होंगी। नई नौकरियों के ऐसे कई अनुमान सामने आ रहे हैं। वहीं मैन्यूफैक्चरिंग और निर्माण आधारित क्षेत्र में 2009 में नौकरियों में भारी कटौती के कारण कुछ चिंताएँ भी दिखाई दे रही हैं।
यह उल्लेखनीय है कि भारत की नई पीढ़ी से मंदी की निराशाओं के बीच विकास की नई संभावनाएँ हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के पहले जो ओबामा भारत से आउटसोर्सिंग का विरोध करते दिखाई दे रहे थे, अब वे भारतीय आउटसोर्सिंग के लाभों को अनुभव कर रहे हैं।
दुनिया भारत को प्रतिभाओं का गढ़ मान रही है। हाल ही में ब्रिटेन में गृह मामलों की सर्वदलीय समिति के अध्यक्ष द्वारा दिया गया यह वक्तव्य महत्वपूर्ण है कि ब्रिटेन को ज्यादा कुशल भारतीयों की जरूरत है, क्योंकि वे मंदी के मुश्किल दौर से उबरने में मदद कर सकते हैं। अतएव ब्रिटेन में भारत से कुशल पेशेवरों को बड़ी संख्या में आने की अनुमति देनी ही होगी।
इसी तरह आने वाले वर्षों में जैसे-जैसे दुनिया में प्रतिभाशाली श्रम बल की जरूरत होगी वैसे-वैसे भारतीय युवा चमकते जाएँगे। सचमुच दुनिया में आबादी का स्वरूप इस तरह बदल गया है कि भारत की बढ़ी हुई आबादी मानव संसाधन के रूप में बदलकर हमारे लिए आर्थिक वरदान सिद्ध हो सकती है।
एक ताजा अध्ययन के मुताबिक भारत की श्रम शक्ति नई वैश्विक जरूरतों के मुताबिक तैयार हो जाए तो वह भविष्य में एक ऐसी पूँजी साबित होगी, जिसकी माँग दुनिया के हर देश में होगी। विकसित देशों और कई विकासशील देशों में वर्ष 2020 तक कामकाजी जनसंख्या की भारी कमी होगी, जबकि भारत में साढ़े चार करोड़ कामकाजी जनसंख्या अतिरिक्त होगी। ऐसे में वर्ष 2020 तक अमेरिका, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस सहित अनेक देशों में कार्यशील लोगों की कमी के कारण लाखों रोजगार के अवसर भारतीय युवाओं की मुट्ठी में होंगे।
इतना ही नहीं जैसे-जैसे भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की डगर पर आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे भारतीय युवाओं के करियर अवसर बढ़ेंगे। इस परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशालय की ग्लोबल ट्रेंड्स-2025 ए वर्ल्ड ट्रांसफार्म्ड रिपोर्ट में बहुध्रुवीय दुनिया में भारत और चीन की पहचान प्रमुख नई आर्थिक शक्तियों के तौर पर की गई है। हम आशा करें कि भारत की नई पीढ़ी अपनी प्रतिभा और अपने परिश्रम से चुनौतियों के बीच भी करियर की ऊँचाई पर बढ़ते हुए दिखाई देगी।