अंतरआत्मा की आवाज पर निर्णय लें

Webdunia
शनिवार, 28 जून 2008 (11:04 IST)
- विशाल मिश्रा

निर्णय लेने की कला एक ऐसी कला है जिसके बलबूते पर शायद आपको अर्श से फर्श पर जाने में ज्यादा वक्त न लगे। चीज लगती छोटी सी है लेकिन है बहुत अहम। कहना बड़ा आसान होता है। ऐसा था तो ऐसा कर देते, वैसा था तो वैसा कर देते। लेकिन निर्णय लेने वाला ही समझता है उस समय आने वाली कठिनाइयों को। एक बार केवल कल्पना कर देखें कि आप उस व्यक्ति की जगह होते तो क्या करते। वे सारे जुमले स्वत: ही समाप्त हो जाएँगे जिन्हें आप आसान मानकर हवा में उड़ा रहे थे।

छात्र जीवन से ही आपका पाला पड़ना शुरू हो जाता है इस बला से। हाईस्कूल पास किया नहीं कि सबजेक्ट कौन सा लें। क्या पढ़ें, किस दिशा में बढ़ें? निश्चित रूप से आपके दोस्त, परिजन इसमें आपकी मदद करेंगे लेकिन साथ ही अपनी इच्छा को कहीं न कहीं परोक्ष रूप से थोपना चाहते हैं।

सोचें, विचार करें फिर निर्णय लें कि आपको क्या पढ़ना है। अपने आपको कहाँ पाते हैं। क्या न्याय कर पाएँगे अपने निर्णय के साथ। आगे बढ़ेंगे तो नौकरी-पेशा जीवन में आएँगे। फिर वही निर्णय! किस विभाग में काम पसंद करते हैं। अधीनस्थ कहाँ पसंद करते हैं। बॉस क्या चाहते हैं। आदि बातें होती हैं सही निर्णय लेंगे सही समय पर तो बहुत अच्छा अन्यथा समय निकल जाने पर खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।

जजों के ही निर्णय हम देखें। लगभग समान केस में ही जरा-जरा से फर्क होने पर परिस्थितियों के अनुसार फैसला सुनाना‍ कितना दुष्कर। न्यायाधीश ने क्या सोचा, किस दृष्टिकोण से मामले को देखा और फिर अपना निर्णय सुनाया। कहीं न कहीं अपने निर्णय पर तटस्थ रहें। कुछ अन्य लोग क्या कह रहे हैं उसी को देखते हुए या आपको लगता है अधिकतर लोग क्या कर रहे हैं, किस तरफ जा रहे हैं, के आधार पर निर्णय लेना गलत कहा जाएगा।

जरूरी नहीं कि आप हर बार जो निर्णय लें सही ही हो। कई बार गलत भी हो सकता है। उसे आगे भी ध्यान रखें। महात्मा गाँधी ने भी कहा है कि गलतियाँ कभी हो भी जाती हैं। कोई बात नहीं 100 गलतियाँ करो लेकिन उन्हें दोहराओ मत। क्योंकि फिर वह गलती नहीं मूर्खता कही जाएगी।

व्यावहारिक जीवन में अनेक बार निर्णय लेना पड़ते हैं। आप बीमार हैं या बीवी-बच्चों का इलाज करवाना है। ‍कौन से डॉक्टर से इलाज करवाएँ, किस अस्पताल में जाएँ आदि। आप इसके लिए संगी-साथियों की मदद जरूर लें, हो सकता है अपने निर्णय में जिस नकारात्मक बिंदु पर आप विचार नहीं कर पा रहे हों, उसकी वे आपको याद दिला दें।

शादी करना है। विकल्प चार हैं। माता-पिता अलग लड़की या लड़के का कह रहे हैं। भाई-बहन अलग, आपका मन अलग। चार से तो शादी कर नहीं सकते। ऐसी जगह काम आएगी आपकी कला। जिससे बाद में आपको पछताना भी नहीं पड़ेगा। अपने निर्णय के पीछे तर्कों का होना बहुत मायने रखता है। उन्हें सही ढंग से रखें।

यह एक ऐसी चीज है जिसे कोई सफल व्यक्ति भी आपको सिखाएगा नहीं। सफल व्यक्ति क्या करते हैं। इस पर ध्यान रखें न कि वे जो कहते हैं उस पर। बात समझने की है। कोई भी अपनी सफलता का राज आपको क्यों बताने लगा?

निर्णय लेने की कला आने के बाद आप देखेंगे कि शायद आपके पास अपने अधीनस्थ या मित्र से भले ही कम डिग्री होगी। आप उससे कम पढ़े-लिखे होंगे। लेकिन आपकी पूछ-परख ज्यादा होगी। इसके‍ लिए आपको कोई बड़ी-बड़ी किताबें पढ़ने या कोर्स करने की भी आवश्यकता नहीं है। ये छोटी-छोटी आदतें आपके भीतर शेविंग कराते समय या किसी होटल पर चाय पीते समय लोग बात कर रहे हों या अन्य काम करते हुए भी विकसित हो सकती हैं। जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया। हर स्तर पर हर आदमी को कुछ न कुछ निर्णय लेने ही पड़ते हैं।

जरूरी नहीं कि आपके निर्णय को हर बार तवज्जो दी जाए। ऐसे में ‍निराश होने की भी जरूरत नहीं। फिर देखिए कैसे घर, दफ्तर और मित्रों के बीच आपकी पूछपरख बढ़ जाती है। अंत में इतना ही कहूँगा कि अपनी अंतरआत्मा की आवाज सुनकर निर्णय लें किसी के बहकावे में आकर नहीं।

सोच तेरी है फैसला तेरा
जब अमल का सवाल आए तो
पीछे मुड़-मुड़ के देखना कैसा

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