अशिमा ने विदेश छोड़ सिविल क्षेत्र अपनाया

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नई दिल्ली की पच्चीस वर्षीय अशिमा जैन आईएएस अधिकारी बनकर शुरुआत में शायद उतना वेतन और आराम न पा सके जितना कि उसे अमेरिकन एक्सप्रेस की अंतरराष्ट्रीय नौकरी में मिल रहा है, फिर भी आईएएस का रूतबा ही कुछ ऐसा है कि अशिमा ने 6 लाख रुपए की नौकरी और देश-विदेश घूमने के अवसर को छोड़कर सिविल सेवा के क्षेत्र को अपनाया है।

भारतीय सिविल सेवा परीक्षा 2007 की महिला प्रत्याशियों में सबसे अव्वल रहने वाली अशिमा इस समय आराम फरमा रही हैं ताकि उन पर जब आईएएस का दायित्व आए तो वे पूरे जोर-शोर से समाज की सेवा में जुट जाएँ।

करोल बाग की जिस लेन में अशिमा रहती हैं वहाँ के बच्चे-बच्चे जानते थे कि उनकी अशिमा दीदी कुछ खास तैयारी कर रही हैं, इसलिए वे पिछले डेढ़ साल से उनके घर के आसपास खेलकर हल्ला तक नहीं मचाते थे। लेकिन पिछले दिनों जब भारतीय सिविल सेवा 2007 की परीक्षा का परिणाम आया तो वही इलाका हंगामे में डूब गया।
  नई दिल्ली की पच्चीस वर्षीय अशिमा जैन अमेरिकन एक्सप्रेस की अंतरराष्ट्रीय 6 लाख रुपए की नौकरी और देश-विदेश घूमने के अवसर को छोड़कर सिविल सेवा के क्षेत्र को अपनाया है।      


मजे की बात तो यह है कि जिस दिन यूपीएससी ने भारतीय सिविल सेवा के परिणाम घोषित किए, अशिमा ने अपना रिजल्ट देखा तक नहीं। उनके परिवार ने जब अशिमा का नाम टीवी स्क्रीन पर फ्लेश होते देखा तब उन्हें लगा कि अशिमा का आईएएस बनने का बचपन का सपना पूरा हो रहा है।

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की गोल्ड मेडलिस्ट अशिमा एक साल से अमेरिकन एक्सप्रेस में बिजनेस एनॉलिस्ट के रूप में 6 लाख रुपए वार्षिक वेतन पर काम कर रही हैं तथा अपने काम के सिलसिले में अब तक जापान, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में रह चुकी हैं। वहाँ उन्हें अच्छे वेतन के साथ भरपूर आराम मिल रहा था, लेकिन ये सब उनके बचपन के सपने के बीच में बाधक नहीं बन पाया और उन्होंने पहले ही प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा की मेरिट लिस्ट में सातवाँ स्थान पाया। इस परीक्षा में शामिल महिला प्रत्याशियों में वे पहले क्रम पर रहीं।

नई दिल्ली के राजपत्रित अधिकारी एनके जैन की इस बिटिया ने श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद 2005 में स्कूल ऑव इकोनॉमिक्स से स्नातकोत्तर पढ़ाई में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। पढ़ाई के अलावा वे दस साल तक बकायदा शास्त्रीय संगीत भी सीखती रही हैं। सिविल सेवा की तैयारी में अशिमा ने सुबह साढ़े 4 बजे से रात 11 बजे तक 15-15 घंटे की पढ़ाई की थी।

इस दौरान वे बाहरी दुनिया से कट गई थीं। न तो वे कहीं बाहर जाती थीं और न ही किसी से मिलती ही थीं। यहाँ तक कि ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली उसकी दादी को कभी पहली मंजिल पर पढ़ने वाली अपनी पोती से बातें करनी होती थी तो वे भी फोन का सहारा लेती थीं। परीक्षा के दो सप्ताह पहले उसका तनाव इतना बढ़ गया था कि उनका खाना तक छूट गया था। इस दौरान वे तरल आहार ही लेती रहीं। जहाँ तक अशिमा की सफलता का सवाल है, वे इसका श्रेय अपने परिवार, शिक्षकों और अपने आईएएस कोचिंग इंस्टीट्यूट को देती हैं।

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