कॉर्पोरेट कल्चर में हमदर्द बने बॉस

16 अक्टूबर : बॉस डे पर विशेष

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दफ्तरों में कड़क और खडूस शख्स के तौर पर मशहूर बॉस की छवि अब बदलने लगी है और अब वह कर्मचारियों से दोस्ताना संबंधों का महत्व समझने लगे हैं यही वजह है कि पहले की तरह छोटी-छोटी बातों पर नाराज होने के बजाय, वह कर्मचारियों की बातें सुनते हैं तथा हालात के अनुरूप समाधान भी निकालते हैं।

विशेषज्ञों की राय में, बॉस के इस बदलाव का कारण हालात हैं। वह कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा तो आज पहले से कहीं ज्यादा है लेकिन अब इस बात को महत्व दिया जाता है कि कर्मचारियों के साथ अच्छा व्यवहार उन्हें अधिक काम करने के लिए प्रेरित करता है।

एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मुख्य कार्याधिकारी के पद पर काम करने के बाद हाल ही में सेवानिवृत्त हुए जी के गोयल कहते हैं ‘बॉस जब तक कर्मचारियों के करीब नहीं आएगा, उसका सफल होना मुश्किल होता है।

कर्मचारियों की समस्याओं को सुनना, उन्हें दूर करना, गल्तियों पर उन्हें फटकारने के बजाय समझाना, दूसरों पर दोषारोपण करने से बचना, स्वयं को अहंकार से दूर रखना.. इन बातों पर अमल करने के बाद एक बॉस अपने कर्मचारियों का आउटपुट बढ़ा सकता है। यही वजह है कि बॉस का रवैया अब बदल रहा है।’

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एक निजी ट्रैवल एजेंसी में कार्यरत महेश सलानी कहते हैं ‘बॉस से हमारी भी अपेक्षाएँ होती हैं। इसलिए उन्हें चाहिए कि वह अपने पद की गरिमा के अनुरूप काम करें और सबके हित में फैसले करें। उनका फैसला न केवल कंपनी के हित में बल्कि कर्मचारियों के हित में भी होना चाहिए।’

इस संबंध में गोयल आगे कहते हैं ‘लगभग सभी दफ्तरों में ऐसे लोग होते हैं, जो अपने सहयोगियों की शिकायत करने में पीछे नहीं रहते। बॉस को यह बातें बखूबी समझ में आती हैं। उसे चाहिए कि ऐसे लोगों की बातें सुनकर उन्हें बढ़ावा न दे और उन्हें यह अहसास कराए कि उन्हें दूसरों के लिए मुँह खोलने से पहले अपना काम देखना चाहिए।’

कुछ पश्चिमी देशों में 16 अक्टूबर को बॉस डे मनाया जाता है। भारत में ऐसे दिन का चलन नहीं है लेकिन बॉस के महत्व से कोई इंकार नहीं कर सकता। सलानी कहते हैं ‘बॉस को चाहिए कि वह अपने महत्व, योग्यता और पद का सही उपयोग करते हुए सभी कर्मचारियों को साथ ले कर चलने की कोशिश करे। ऐसा न होने पर कर्मचारियों में पक्षपात की भावना आती है।’

गोयल ने कहा ‘अपने अनुभव के आधार पर मैं कहूँगा कि काम न करने की प्रवृत्ति लोगों में बढ़ रही है और ऐसे लोगों को काम करने वालों से ईर्ष्या होने लगती है। यह ईर्ष्या कई तरह से जाहिर हो जाती है।

बॉस अपने कौशल से ऐसे लोगों पर लगाम कस सकता है ताकि काम करने वाले कर्मचारियों के लिए समस्याएँ न हों, उनका मनोबल न गिरे और काम न करने वालों के हौसले बुलंद न हों। वैसे भी, बॉस आखिर बॉस होता है।’ (भाषा)

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