भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो। ऊपर वाला तो हाथों में रेखाएँ देता है, जीवन की इस कर्मभूमि पर इनमें रंग तो हमें ही भरना पड़ता है। हाथों की लकीरें तो बदलती रहती हैं। इस प्रकार की बातें तो आपने बहुत सुनी और पढ़ी होंगी। लेकिन भाग्य भी अपना महत्व रखता है। यदि कोई भी चीज, वस्तु आप पाना चाहते हैं और वह आपके भाग्य में होगी तो ही मिलेगी अन्यथा दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं दिला सकती। ...और जो चीज आपके भाग्य में है, उसे दुनिया की कोई ताकत आपसे छीन नहीं सकती। आपको उससे वंचित नहीं कर सकती।
आप कर्म कर सकते हैं, जैसे किसी भी वस्तु को पाने के लिए आप साम, दाम, दंड, भेद कोई भी नीति चला चलें। लाख कोशिश कर लें। इसके बाद भी यदि आपको सफलता नहीं मिल रही तो मान लें यह आपके भाग्य में कम से कम अब तक को तो नहीं थी।
हो सकता है आगे के प्रयासों में आपको मिल भी जाए। कई बार आपने भी देखा होगा कि कोई विद्यार्थी 11वीं, 12वीं की परीक्षा में तो काफी अच्छे नंबरों से पास हो जाता है लेकिन आगे की प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में उसे सफलता नहीं मिल पाती या मिलती है तो भी कई प्रयासों के बाद।
यदि कोई भी चीज, वस्तु आप पाना चाहते हैं और वह आपके भाग्य में होगी तो ही मिलेगी अन्यथा दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं दिला सकती। ...और जो चीज आपके भाग्य में है, उसे दुनिया की कोई ताकत आपसे छीन नहीं सकती। आपको उससे वंचित नहीं कर सकती।
जबकि उसी जगह 11वीं, 12वीं की परीक्षाओं में कम अंक प्राप्त करने वाला विद्यार्थी पहले प्रयास में ही सफल हो जाता है। ...तो हमारे मुँह से एक ही बात निकलती है- यार क्या लक है उसका भी।
अर्थात् वही भाग्य वाली बात कि जिसके भाग्य में था सिलेक्शन उसका हो गया जबकि दूसरा रुक गया। व्यक्ति के हाथ में क्या है। कर्म कर सकता है, प्रयास कर सकता है। लेकिन यदि कोई भी चीज उसके प्रारब्ध में ही नहीं थी तो नहीं मिलेगी।
ऐसे लोगों से मैं कहना चाहूँगा कि ऐसे किसी क्षेत्र में कभी उनको सफलता नहीं मिल रही है तो किसी अन्य क्षेत्र में हाथ आजमाएँ। हो सकता है कोई दूसरी मंजिल आपका रास्ता देख रही हो।
कुछ हद तक ज्योतिष आदि की सलाह लेकर भी आप उनका निराकरण करने के बारे में विचार करें। यदि ज्योतिष आपको रत्न पहनने या कोई उपाय करने की सलाह दे्ते हैं, हो सकता है आपके भाग्य का द्वार उन उपायों से ही खुल जाए और आप सफलता के सोपान चढ़ जाएँ।
इसका मतलब कहीं आप यह न लगा लें कि भाग्य के भरोसे होकर बैठ जाएँ कि भाग्य में होगी तो अपने आप ही आ जाएगी तो फिर मेहनत करके क्या करना है। क्योंकि गुफा में पड़े-पड़े जंगल के राजा के पास भी शिकार नहीं आता उनको भी पेट की भूख शांत करने के लिए शिकार करने जाना पड़ता है। ठीक है ना दोस्तों।