रैगिंग : एक भयानक मज़ाक

- वेबदुनिया डेस्क

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रैगिंग, यह शब्द पढ़ने में सामान्य लगता है। इसके पीछे छिपी भयावहता को वे ही छात्र समझ सकते हैं जो इसके शिकार हुए हैं। आधुनिकता के साथ रैगिंग के तरीके भी बदलते जा रहे हैं। रैगिंग आमतौर पर सीनियर विद्यार्थी द्वारा कॉलेज में आए नए विद्यार्थी से परिचय लेने की प्रक्रिया। लेकिन अगर किसी छात्र को रैगिंग के नाम पर अपनी जान गंवाना पड़े तो उसे क्या कहेंगे।

रैगिंग के नाम पर समय-समय पर अमानवीयता का चेहरा भी सामने आया है। गलत व्यवहार, अपमानजनक छेड़छाड़, मारपीट ऐसे कितने वीभत्स रूप रैगिंग में सामने आए हैं। सीनियर छात्रों के लिए रैगिंग भले ही मौज-मस्ती हो सकती है, लेकिन रैगिंग से गुजरे छात्र के जहन से रैगिंग की भयावहता मिटती नहीं है।

स्कूल के अनुशासित जीवन के बाद जब एक छात्र उमंग, उत्साह के साथ कॉलेज में प्रवेश करता है, तब उसे रैगिंग की सचाई का भान नहीं होता। जब सीनियर्स रैगिंग लेकर उसे प्रता‍ड़ित करते हैं तो समझ पाता है कि रैगिंग होती क्या है। हंसी, मजाक, थोड़े से मनोरंजन, सीनियर छात्रों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार से प्रारंभ हुई रैगिंग अपशब्द बोलना, नशा कराना, यौन उत्पीड़न, कपड़े उतरवाना जैसे घृणित स्तर तक पहुंच चुकी है।

सीनियर्स द्वारा की जाने वाली रैगिंग का दर्द उन परिवारों से पूछ जाना चाहिए जिनके होनहार बच्चे इस रैगिंग के कारण डिप्रेशन में चले गए या उनका जीवन समाप्त हो गया। मार्च 2009 में हिमाचल प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज के छात्र अमन काचरू को रैगिंग के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

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एक ‍मेडिकल कॉलेज में एक छात्रा के साथ सीनियर्स ने रैगिंग ऐसी हरकत की जिसके सदमे से वह कई दिनों तक उबर नहीं पाई। सीनियर्स ने उसके रूम में मानव अंग फेंककर उसे ताला लगाकर बंद कर दिया। इससे लड़की के दिमाग पर प्रतिकूल असर पड़ा और वह पागल हो गई।

ऐसा नहीं है कि इस अभिशाप के विरुद्ध न्याय प्रणाली ने कोई कार्य नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग के संबंध में समय पर महत्वपूर्ण कानून बनाकर सख्त फैसले किए। 11 फरवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने स्पष्ट कहा कि रैगिंग में संलिप्त पाए गए छात्र के विरुद्ध क्रिमिनल केस दर्ज होना चाहिए।

रैगिंग मानवाधिकार को गाली है। 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग पर संज्ञान लेते हुए इसकी रोकथाम के लिए सीबीआई के पूर्व निदेशक ए. राघवन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय में अपने अधीन आने वाले शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के विरुद्ध कड़े निर्देश जारी किए। कई राज्यों ने भी इस पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए। 1997 में तमिलनाडु में विधानसभा में एंटी रैगिंग कानून पास किया गया।

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