व्यावहारिक समझ है जरूरी

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- डॉ. विजय अग्रवा ल
नई दिल्ली का श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स पिछले लगातार 11 वर्षों से कॉमर्स विषय में देश का सबसे बेहतर कॉलेज बना हुआ है। इस साल इस कॉलेज में पढ़ाई की शुरुआत 15 जुलाई को हो चुकी है।

हालाँकि 15 जुलाई को था तो इतवार, फिर भी इस दिन यहाँ फर्स्ट ईयर में दाखिला लेने वाले सभी सवा चार सौ विद्यार्थियों की पहले तो सामूहिक, फिर बाद में अलग-अलग क्लासेस लगीं। इसकी सामूहिक क्लास में बैठने वालों में मैं भी था, एक विद्यार्थी के रूप में न होकर विद्यार्थी के पैरेन्ट्स के रूप में।

इस कक्षा में विद्यार्थियों को कॉलेज से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण बातों के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बातें बताई गईं, उसकी चर्चा मैं यहाँ करना चाहूँगा। यहाँ के प्रिंसीपल प्रोफेसर जैन ने उस भव्य ऑडीटोरियम में बैठे लगभग 600 लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि 'मैं जानता हूँ कि आप सभी अपने-अपने यहाँ टॉपर रहे हैं- कोई कक्षा का टॉपर, कोई अपनी शाला का टॉपर, कोई जिले का टॉपर तो कोई अपने राज्य का टॉपर। आप सभी इटेंलीजेंट हैं और इसीलिए आप सभी आज यहाँ हैं।

मुझे आपकी बुद्धिमानी पर कोई शक नहीं है। फिर भी मैं आप लोगों से कहना चाहूँगा कि अब जबकि आप सभी देश के इस महत्वपूर्ण कॉलेज में आ चुके हैं, आपको अपनी पढ़ाई की तरकीब बदलना होगी। यहाँ भी कक्षाएँ लगेंगी और यहाँ भी पढ़ाई के लिए किताबें होंगी, लेकिन पढ़ने और पढ़ाने का तरीका बिलकुल अलग होगा। मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि अब आप किसी भी टॉपिक को रटने-रटाने की बात भूल जाएँ। आप उसे समझें तथा अधिक से अधिक गहराई तक जाकर समझें।

हमारे कॉलेज के प्रोफेसर आपको पढ़ाएँगे नहीं, बल्कि समझने में आपकी मदद करेंगे। आप सभी अपनी कक्षाओं में चुपचाप बिलकुल न बैठें। हमें सीधे-सादे और ईमानदार श्रोताओं की जरूरत नहीं है। हमें जरूरत है ऐसे लड़कों की, जो कक्षाओं में प्रश्न करें तथा बहस में जमकर हिस्सा लें।

आप किसी भी बात को केवल इसलिए सही न मान लें, क्योंकि वह बात आपके प्रोफेसर द्वारा कही जा रही है। मुझे लगता है कि अब तक आप लोगों को परीक्षा देने का अभ्यस्त हो जाना चाहिए। परीक्षाएँ तो आपके लिए खेल की तरह होना चाहिए। कॉलेज के इस परिसर में स्वीमिंगपुल है, जिम है, लाइब्रेरी है, खेल के मैदान हैं, एनएसएस है तथा अन्य कई तरह की सोसाइटियाँ हैं।

मैं चाहूँगा कि आप सभी पुस्तकों से ही चिपके न रहकर इन सारी सुविधाओं का भरपूर लाभ उठाएँ और इस प्रकार अपना चौतरफा विकास करें। इस चौतरफा विकास में मदद करने के लिए इस कॉलेज का संपूर्ण स्टाफ आप लोगों के साथ है। ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे। गुडलक गुडबाय।'

मित्रों, मैं पिछले लगभग 30 सालों से कॉलेज से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ हूँ। अभी तक मैंने कहीं भी इस तरह का अनौपचारिक उद्बोधन नहीं सुना, जिस प्रकार का मैंने नई दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में सुना और इसे सुनते ही मैं समझ गया कि आखिर क्यों यह कॉलेज देश का सर्वश्रेष्ठ कॉलेज है और क्यों यहाँ से पढ़कर निकले विद्यार्थी पूरी दुनिया में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं।

मुझे विश्वास हो गया कि यह कॉलेज तब तक पूरे देश में अपना प्रथम स्थान बनाए रखेगा, जब तक कि कोई दूसरा कॉलेज इसी प्रकार की विचारधारा कोलेकर सामने नहीं आता। मैं अपने इस अनुभव की जो बात आप सबसे शेयर करना चाह रहा हूँ, वह कुल मिलाकर यह है कि जिंदगी में किताबें ही सब कुछ नहीं होतीं। जिंदगी में परीक्षा में हासिल किए गए नंबर ही सब कुछ नहीं होते।

जो सबसे बड़ी बात होती है, वह होती है- आपकी व्यावहारिक समझ, जो व्यक्तित्व के बहुमुखी विकास से ही आती है। आप अपनी जिंदगी के चारों तरफ केवल पढ़ाई की ही लक्ष्मण-रेखा खींच देंगे तो आपके अनुभव का दायरा भी सिमटकर बहुत ही बौना रह जाएगा। अनेक शोधों में यह पाया गया है कि हमें जिंदगी में जितनी भी सफलता मिलती है, उसमें सिर्फ 20 प्रतिशत योगदान हमारे ज्ञान का होता है। शेष 80 प्रतिशत सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपके नैतिक मूल्य क्या हैं, आपका आचरण कैसा है, आपकी नेतृत्व क्षमता कैसी है, लोगों के साथ आपके संबंध कैसे हैं तथा आपमें बातचीत की दक्षता कितनी है। कुल मिलाकर यह कि आपके पास जिंदगी की व्यावहारिक समझ कितनी है।

धीरूभाई अंबानी ने मैट्रिक पास की थी। बिल गेट्स भी स्नातक तक ही पहुँच पाए। राजकपूर तो मैट्रिक भी पास नहीं कर पाए थे, लेकिन इन लोगों ने अपनी जिंदगी में आश्चर्यजनक सफलताएँ हासिल कीं। आप खुद सोचिए कि ऐसा कैसे हुआ।

लेखक पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के प्रभारी हैं।
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