उच्च शिक्षा में बदलाव की जरूरत

Webdunia
- अशोक मित्तल

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देश की अर्थव्यवस्था बिलकुल सही दिशा में जा रही है और 8 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जा सकती है, जो कि हमारे जैसे बड़े देश के लिए काफी महत्वपूर्ण है। विश्व अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर आ रही है जिससे घरेलू माँग भी बढ़ने की पूर्ण उम्मीद है और इसका असर सभी सेक्टर्स पर पड़ेगा।

सामाजिक व अधोसंरचनात्मक क्षेत्र में सरकार की तरफ से ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाना और विभिन्न योजनाओं के आने से भी आगे आने वाले दिनों में सकारात्मक असर पड़ेगा। चीन के बाद भारत ही तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था मानी जाती है। परंतु जिस प्रकार से देश प्रगति कर रहा है और विभिन्न प्रोजेक्ट्स आ रहे हैं उससे यह बात निश्चित है कि वर्ष 2018 तक हम चीन को पीछे छोड़ देंगे।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी बढ़ रहा है। इस प्रकार अगले 4 वर्षों में ही हम विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। ऑटोमोबाइल व इससे जुड़े अन्य उद्योग, इस्पात, खनिज, अधोसंरचना, निर्माण के क्षेत्र में काफी तेजी देखने में आएगी। टेलीकॉम, बैंकिंग, कमोडिटी तथा शिक्षा के क्षेत्र में भी फैलाव होगा।

सुपर पावर बनने के लिए अच्छी शिक्षा जरूरी
देश को अगर 2020 तक सुपर पावर बनना है तो उसके लिए पढ़े-लिखे तथा दक्ष कर्मियों की जरूरत है। हमें काफी बड़ी संख्या में इनकी जरूरत और इसके लिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सख्त परिवर्तनों की जरूरत है। हमें ज्ञान को दूसरों से लेना नहीं है बल्कि हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि हम स्वयं कैसे ज्ञानवान बनें।

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दुर्भाग्य से देश में जो उच्च शिक्षा का स्तर है वह सही नहीं है अगर इसे समय रहते नहीं बदला गया तब इसके देश को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार सभी विकास सूचकांकों में हम शिक्षा के क्षेत्र में अंतिम 15 देशों की सूची में आते हैं। सरकार ने देश में ऐसे संस्थानों को काली सूची में डालना आरंभ कर दिया है, जो एक निर्धारित स्तर की शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं।

यह हमारी असफलता ही है कि हम उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षा केंद्रों को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं और साथ ही विदेशी संस्थाओं को भी हमने देश में आने से रोके रखा। अगर हम गुणवत्ता वाली शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं, तब विद्यार्थी विदेश शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाएँगे ही। इससे देश का कितना नुकसान हो रहा है।

हाल ही में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में आने की अनुमति देने वाला जो बिल आया है उससे गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा प्राप्त करने में निश्चित रूप से आसानी होगी, परंतु इसके साथ ही विश्वविद्यालयों को और अधिक स्वायतत्ता देनी होगी। नेशनल कमिशन फॉर हायर एजुकेशन एंड रिसर्च (एनसीएचईआर) एक अच्छी पहल है, परंतु डर यही है कि यह भी कहीं नौकरशाही संस्कृति में फँसकर न रह जाए, जो कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अब तक आड़े आती रही है।

देश में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप आधारित शिक्षा मॉडल को ही आगे लाया जाना चाहिए और इसे उद्योग का दर्जा देना चाहिए। इसके अलावा रिसर्च के क्षेत्र में भी काफी काम किया जाना है। वोकेशन एजुकेशन के क्षेत्र की ओर भी ध्यान देना जरूरी है। अगर इन बातों पर ध्यान दिया जाता है, तब उच्च शिक्षा का क्षेत्र काफी तेजी से आगे बढ़ेगा।

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