ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल शिक्षा

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- डॉ. भरत छापरवाल

स्वास्थ्य शिक्षा व प्रशिक्षण शहरों तक सीमित रहने और डॉक्टर केंद्रित तकनीक से चलने वाली व्यवस्था बन चुकी है। चिकित्सा शिक्षा पूरी शिक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है, जो कि आज संकट की स्थिति में है और हम स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में अपर्याप्त निवेश की कीमत चुका रहे हैं। यदि हम चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति व उनकी गुणवत्ता की बात करें तो ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में एक स्पष्ट विभाजन दिखाई देता है।

रॉयल कॉलेज ऑफ जनरल प्रेक्टिशनर्स (ब्रिटेन) एक जनरल प्रेक्टिशनर को इस प्रकार परिभाषित करता है- 'वह डॉक्टर जो व्यक्तियों व परिवारों को निजी तौर पर प्राथमिक एवं सतत चिकित्सा प्रदान करता है। वह अपने मरीजों को उनके घरों में, सलाह कक्ष में या अस्पतालों में देखता है। उसका मरीज जो भी समस्या लेकर आता है, जब वह ठीक समझता है तो वह विशेषज्ञों से सलाह लेता है। वह अन्य जनरल प्रेक्टिशनरों के साथ समूह में एक भवन से काम करता है, जो इस उद्देश्य से बनाया या बदला गया हो। चाहे वह अकेला काम करता हो तो भी आवश्यकता पड़ने पर वह दल बनाकर काम करेगा।' जनरल प्रेक्टिशनर या पारिवारिक चिकित्सक का यह रूप भारत में नहीं दिखाई देता।

आधुनिक मेडिसिन डॉक्टरों की संख्या (7 लाख) और भारतीय पद्धति के डॉक्टरों की संख्या (7 लाख से ज्यादा) एक विकासशील देश के लिहाज से बहुत कम तो नहीं है किंतु इनमें से मात्र 28 प्रतिशत ही ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत हैं। स्वास्थ्य पर होने वाला 83 प्रतिशत व्यय निजी क्षेत्र में होता है इसलिए स्वास्थ्य प्रणाली पर निजी क्षेत्र का दबदबा है।

भारत में अधिकतर जनरल प्रेक्टिशनर या पारिवारिक चिकित्सक अपना निजी क्लिनिक चला रहे हैं। दरअसल हमारे देश की मौजूदा चिकित्सा शिक्षा सुयोग्य जनरल प्रेक्टिशनर और पारिवारिक चिकित्सक बनाने में सक्षम नहीं है। भारत में मेडिसिन कोडिफाइड एवं नॉन कोडिफाइड मेडिसिन में विभाजित है। कोडिफाइड मेडिसिन में पाश्चात्य व भारतीय प्रणाली शामिल हैं। नॉन कोडिफाइड मेडिसिन के प्रेक्टिशनर बहुत बड़ी संख्या में हैं जो घरेलू दवाएँ या जड़ी बूटियाँ बेचते हैं।

चिकित्सा के पेशे को पिरामिड की तरह बनाना होगा जिसका मूल आधार विशेष रूप से प्रशिक्षित किए गए जनरल प्रेक्टिशनर /पारिवारिक चिकित्सक होंगे। 300 मेडिकल कॉलेज (145 सरकारी व 155 प्राइवेट) शहरों में स्थित हैं जहाँ पर केवल 25 से 30 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। हम हर साल 30000 डॉक्टर व 20000 नर्सें तैयार करते हैं। इस बार पैरामेडिकल ट्रेनिंग सुविधाओं के बारे में कोई प्रामाणिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

हैल्थ इन्फॉरमेशन ऑफ इंडिया (2005-06) की सूचना के अनुसार 2001 में 3,181 डॉक्टरों को पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री दी गई लेकिन इनमें से सिर्फ 57 कम्यूनिटी मेडिसिन में थे। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पास फैमिली मेडिसिन/जनरल प्रैक्टिस स्पेशलिटी में कोई स्नातकोत्तर उपाधि कार्यक्रम नहीं है। सभी विषयों को मिलाकर हमारे देश में लगभग 12000 पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनिंग सीटें हैं।

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