महिलाएँ कर रहीं नौकरियों पर कब्जा

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अगले कुछ महीनों में अमेरिका में कुल कामकाजी लोगों की संख्या में महिलाओं की संख्या पचास प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगी। अमेरिका में पेप्सिको हो या फ्रांस की अरिवा कंपनी हो, इन्हें सफलतापूर्वक चलाने वाली महिलाएँ ही हैं।

दरअसल संपूर्ण विश्वभर में महिलाओं की भागीदारी न केवल कंपनी के निचले बल्कि प्रबंधन के क्षेत्र में भी तेजी से बढ़ती जा रही है। महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के काफी अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। महिलाओं का प्रतिनिधित्व वैसे अभी और भी बढ़ने की काफी संभवानाएँ हैं।

20 में नौकरी पर 30 में नहीं

संपूर्ण विश्वभर में महिलाओं को लेकर यह तथ्य देखने में आ रहा है कि वे पढ़ाई करने के बाद नौकरी करती हैं पर शादी होने के बाद नौकरी और घर के बीच क्या चुने, इसे लेकर वे पशोपेश की स्थिति में रहती हैं। इस कारण होता यह है कि महिलाएँ 20 वर्ष की उम्र में कॉर्पोरेट वर्ल्ड में जो भी बातें सीखती हैं उनका उपयोग बहुत ही अच्छी तरह से करती हैं परंतु ये ही महिलाएँ शादी करने के बाद दस वर्षों बाद वापस काम करने के लिए आती हैं तो उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

मंजिल अभी दूर

अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में भले ही महिलाओं की कॉर्पोरेट वर्ल्ड में भागीदारी तेज गति से बढ़ रही है, परंतु भारत सहित अन्य एशियाई देशों में इस मामले में प्रगति होना बाकी है। आज भी बमुश्किल काफी कम महिलाएँ ऊँचे ओहदों पर पहुँच पाती हैं। इस कारण भारत जैसे देश में कॉरपोरेट वर्ल्ड में महिलाओं की पचास प्रतिशत भागीदारी के लिए अभी थोड़ा और समय लग सकता है।

अभी भी अमेरिका की शीर्ष कंपनियों में से मात्र २ प्रतिशत में सबसे उच्च पद पर महिलाएँ हैं। ब्रिटेन में यह आँकड़ा 5 प्रतिशत है।

जर्मनी व स्वीडन में कई प्रतिभाशाली महिलाएँ पारिवारिक कारणों से नौकरी छोड़ देती हैं। इसका उपाय वहाँ की कंपनियों ने ढूँढ निकाला और इन दोनों देशों की 90 प्रतिशत कंपनियाँ महिलाओं को फेल्क्सी वर्किंग करने देती हैं। यानी महिलाएँ अपने समय अनुसार ऑफिस का कार्य निपटा सकती हैं और ऑफिस का कार्य कैसे डिजाइन करना है, इसमें भी उनकी दखल होती है।

महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले गत दशक में काफी अच्छा काम किया है। योरपीयन यूनियन देशों की बात करें तब वर्ष 2000 से कुल 8 मिलियन नई नौकरियों का सृजन किया गया जिसमें से 6 मिलियन महिलाओं के पास हैं। आर्थिक मंदी के बाद अमेरिका में नौकरियों से निकाले गए लोगों में हर 4 में से 3 पुरुष हैं और वहाँ पर भी महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा नौकरी पर रखने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।

अमेरिका में वर्ष 2011 तक यूनिवर्सिटीज में लड़कों के मुकाबले 2.6 मिलियन लड़कियाँ ज्यादा प्रवेश लेने की संभावना है।

स्केनडेनेवियन क्षेत्र के देशों में सरकार स्वयं नर्सरी चलाती है। इसका नतीजा यह हुआ है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएँ नौकरियों पर जा पाती हैं। इसका इतना अच्छा असर हुआ है कि उन देशों की संसद में चालीस प्रतिशत से ज्यादा महिलाएँ हैं। इन देशों में महिलाओं के इतनी बड़ी संख्या में नौकरी करने से किसी भी प्रकार के सामाजिक बिखराव वाली बात नजर नहीं आती।

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