विदेश में शिक्षा के लिए वीज़ा में परेशानी

वेबदुनिया डेस्क

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अधिकतर भारतीय छात्रों की यह ख्वाहिश होती है कि वे हायर एजुकेशन के लिए विदेशों के संस्थानों में पढ़ने जाएं। अधिकतर भारतीय छात्रों की पसंद, ब्रिटेन, यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश होते थे, लेकिन अधिकतर भारतीय छात्रों के पढ़ाई करने के बाद वहीं नौकरी करने और बसने के डर से कुछ देशों ने अपने यहां पढ़ने आने वाले विदेशी छात्रों के लिए वीजा के नियम संशोधन कर उन्हें कठोर बना दिया।

इसका परिणाम यह हुआ कि वहां के शैक्षणिक संस्थानों में आने वाले विदेशी छा‍त्रों की संख्या में लगातार गिरावट आने लगी। एक खबर के ‍मुताबिक ब्रिटेन के विश्वविद्यालय अपने यहां आने वाले विदेशी छात्रों के लिए वीजा नियमों को शिथिल करने के लिए प्रधानमंत्री पर दबाव बना रहे हैं।

137 शिक्षण संस्थाओं के संगठन यूनिवर्सिटीज यूके के अलावा ब्रिटिश काउंसिल ऑफ इंस्टिट्‍यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी रिसर्च जैसे संगठनों ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून पर उच्च शिक्षा के लिए वीजा नियमों में छूट देने के लिए दबाव बनाया है।

पिछले दिनों कैमरून सरकार के वीजा नियमों को सख्त करने के ‍फैसले से भारतीय छात्र भी ब्रिटेन में जाकर पढ़ाई करने से कतरा रहे हैं। कड़े नियम करने के बाद छात्र में वीजा देने में 62 प्रतिशत की रिकॉर्ड की कमी आई है।

ब्रिटेन के बहुत से विश्वविद्यालय लगातार यह प्रयास करते रहे कि वीजा के नियमों में बदलाव से भारतीय एवं अन्य देशों से आने वाले छात्रों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़े, लेकिन इसके बाद भी गिरावट दर में गिरावट आई है।

ऑस्ट्रेलिया में नस्लभेद के बाद भारतीय छात्रों पर हुए हमलों से भी भारत के छात्र विदेशों में जाकर पढ़ाई करने में घबरा रहे थे। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भी 1500 भारतीय छात्रों के वीजा रद्द कर दिए थे। दूसरे देशों से आने वाले छात्रों की बढ़ती हुई संख्या को देखकर ही ब्रिटेन ने वीजा नियमों संशोधन किया था।

इसके तहत ही पढ़ाई के बाद दो साल नौकरी की सुविधा अप्रैल 2012 से खत्म कर दी गई। इस सुविधा का लाभ उठाकर भारतीय और अन्य देशों के छात्र अपनी पढ़ाई के खर्च की भरपाई करते थे। कई तो ब्रिटेन में ही रहने लगते थे।

दूसरी तरफ दक्षिणपंथी माने जाने वाले प्रभावशाली विशेषज्ञ संगठन माइग्रेशन वॉच ने भारत और अन्य गैर यूरोपीय देशों से आने वाले छात्रों को वीजा देने में ज्यादा प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है।

उसने दावा किया कि इस प्रकार के वीजा ब्रिटेन में प्रवेश करने का ‘पिछला दरवाजा’ है। इस समूह ने ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों और अन्य के उन प्रयासों के खिलाफ चेतावनी दी है जिसमें वे छात्र वीजा को आधिकारिक आंकड़े से हटाए जाने के लिए डेविड केमरून सरकार से पैरवी कर रहे हैं क्योंकि देश में उनका प्रवास अधिकतर अस्थायी होता है।

माइग्रेशन वॉच यूके ने इस विवादित विषय पर दी अपनी ताजा रिपोर्ट कहा कि आधिकारिक प्रवास आंकड़ों से छात्र वीजा को हटाने से सरकार की आव्रजन नीति से लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा।

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