भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में कर्क लग्न तथा मकर नवांश में हुआ था। आपकी जन्म कुण्डली में लग्नेश चन्द्रमा लग्न में ही स्थित है, परन्तु लग्न एवं लग्नेश दोनों ही पापकर्त्तरी योग से ग्रस्त होने के कारण आपने बैरीस्टर की डिग्री होते हुए भी इसका उपयोग नहीं किया अपितु स्वतंत्रता की लड़ाई में सदा संघर्ष ही करते रहे।
आपको इस अवधि मे कई बार जेल यात्राएँ भी करनी पड़ीं। यद्यपि कुण्डली में चन्द्रमा स्वराशिगत होने से बली है फिर भी इतना संघर्ष करना पड़ा। इसी चन्द्रमा के प्रभाव से आपका आत्मबल बहुत सशक्त रहा। आप सदा अपने सिद्धान्तों में अटल रहे। यह चन्द्रमा यहाँ पर 'पारिजात योग' भी बना रहा है।
कर्क लग्न की कुण्डली में मंगल सर्वाधिक योगकारी ग्रह होता है। इस कुण्डली में मंगल तृतीय भाव में स्थित होकर भाग्य एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। षष्ठभाव में स्वराशिगत गुरु के साथ केतु के होने से इस भाव संबंधित फल का विशेष सुख मिलता है। इसी के कारण आपके प्रबल शत्रु ब्रिटिश सरकार से आपने टक्कर ली तथा उसे देश से बाहर निकलवाने में सफलता प्राप्त की। केतु यहाँ पर अपनी उच्च राशि में स्थित है। षष्ठभाव में उच्च का केतु शत्रु पर विजय दिलाता है।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में कर्क लग्न तथा मकर नवांश में हुआ था। आपकी जन्म कुण्डली में लग्नेश चन्द्रमा लग्न में ही स्थित है।
चतुर्थ भाव में स्वराशि का शुक्र 'मालव्य पंचमहापुरुष योग' की रचना कर रहा है। इस भाव में बुध एवं शुक्र के होने से इस भाव का शुभफल में वृद्धि होती है। राजनीतिज्ञों का इस भाव का प्रबल होना उत्तम रहता है क्योंकि चतुर्थ भाव जनता में प्रिय बनाता है। दशम भाव में बुध, गुरु एवं शुक्र का प्रभाव इस भाव के फल की वृद्धि कर रहा है। गुरु पर मंगल का प्रभाव है तथा गुरु की पूर्ण दृष्टि दशमभाव तथा राहु एवं शनि पर होने से राजनीति के क्षेत्र में बहुत नाम कमाने के योग बनते हैं।
शुक्र की महादशा में आपका विवाह हुआ तथा इसी महादशा में पुत्री भी हुई। सूर्य की महादशा में आप संघर्ष ही करते रहे। इसकी अंतर्दशा में 28 फरवरी 1936 को पत्नी का देहान्त भी हुआ। चन्द्रमा जन्म लग्नेश भी है। इसकी महादशा में आप स्वंतत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने।
मई 1948 से मई 1955 तक आप मंगल की दशा भोग रहे थे। इस अवधि में आपको अति सफलता प्राप्त हुई। राहु की महादशा में जब शनि की अंतर्दशा चल रही थी तो चीन ने भारत में आक्रमण कर दिया था। इसमें भारत की हार को आप झेल न पाए तथा फरवरी 1963 से आप रोगग्रस्त हो गए। राहु में बुध की अंतर्दशा में 27 मई 1964 में आपका निधन हुआ।