चैत्र नवरात्रि को बनाएँ स्वास्थ्य नवरात्रि

नीम रस से रहे स्वस्थ

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नीम को संस्कृत में निम्ब तथा वनस्पति शब्दावली में आजाडिरिक्ता-इंडिका कहते हैं। नीम के बारे में हमारे ग्रंथों में कहा गया है-

निम्ब शीतों लघुग्राही कटुकोडग्रि वातनुत।
अध्यः श्रमतुट्कास ज्वरारुचिकृमि प्रणतु॥

अर्थात्‌ नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वात, परिश्रम, तृषा, ज्वर अरुचि, कृमि, व्रण, कफ, वमन, कुष्ठ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है। नीम में कई तरह के लाभदायी पदार्थ होते हैं। रासायनिक तौर पर मार्गोसिन निम्बिडीन एवं निम्बेस्टेरोल प्रमुख हैं। नीम के सर्वरोगहारी गुणों के कारण यह हर्बल, ऑर्गेनिक पेस्टीसाइड, साबुन, एंटिसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, एंटीएलर्जिक, कॉस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग होता है।

चैत्र नवरात्रि पर नीम के कोमल पत्तों को पानी में घोलकर सिल-बट्टे या मिक्सी में पीसकर इसकी लुगदी तैयार की जाती है। इसमें थोड़ा नमक और कुछ काली मिर्च डालकर उसे ग्राह्म बनाया जाता है। इस लुगदी को कपड़े में रखकर पानी में छाना जाता है। छाना हुआ पानी गाढ़ा या पतला कर प्रातः खाली पेट एक कप से एक गिलास तक सेवन करना चाहिए।

पूरे नौ दिन इस तरह सेवन करने से वर्षभर के स्वास्थ्य की गारंटी हो जाती है। सही मायने में चैत्र नवरात्रि स्वास्थ्य नवरात्रि है। यह रस एंटीसेप्टिक, एंटीबेक्टेरियल, एंटीवायरल, एंटीवर्म, एंटीएलर्जिक, एंटीट्यूमर आदि गुणों का खजाना है। ऐसे प्राकृतिक सर्वगुण संपन्न अनमोल नीम रूपी स्वास्थ्य-रस का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। वैसे तो आप प्रतिदिन पाँच ताजा नीम की पत्तियाँ चबा लें तो अच्छा है। मधुमेह रोगियों द्वारा प्रतिदिन इसका सेवन करने पर रक्त सर्करा का स्तर कम हो जाता है।

नीम की महत्ता पर एक किंवदंति प्रसिद्ध है कि आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि एवं यूनानी हकीम लुकमान समकालीन थे। भारतीय वैद्यराज की ख्याति उस समय विश्व प्रसिद्ध थी। हकीम लुकमान ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक व्यक्ति को यह कहकर भेजा कि इमली के पेड़ के नीचे सोते जाना। भारत आते-आते वह व्यक्ति बीमार पड़ गया।

महर्षि धन्वंतरि ने उसे वापस यह कहकर भेज दिया कि रात्रि विश्राम नीम के पेड़ के नीचे करके लौट जाना। वह व्यक्ति पुनः स्वस्थ हो गया। नीम का रस एक निःशुल्क उपचार पद्धति है। इसका व्यापक उपयोग जनसाधारण में हो, इस हेतु हमें इसकी उपादेयता के बारे में जनमानस को समझाना होगा। नीम जैसे सर्व-सुलभ वृक्ष की पत्तियों के रस के स्टॉल हमें गली, मोहल्लों और कॉलोनियों में लगाने चाहिए। स्वास्थ्य जागरण में नीम रस जीवन रस बने, यही मानवता पर उपकार होगा, आयुर्वेद और मानवता की जय होगी तथा रोगों की पराजय होगी।

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