नवदुर्गा आराधना : ज्योतिष की नजर से

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
ND

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततंनम:।
नम: प्रकृत्यै भद्राये नियता: प्रणता: स्मताम्।

देवी को नमस्कार है, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भद्रा को प्रणाम है। हम लोग नियमपूर्वक जगदंबा को नमस्कार करते हैं।

शैद्रा को नमस्कार है। नित्या गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है। ज्योत्सनामयी चंद्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत प्रणाम है। इस प्रकार देवी दुर्गा का स्मरण कर प्रार्थना करने मात्र से देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करती है। देवी माँ दुर्गा अपनी शरण में आए हर शरणार्थी की रक्षा कर उसका उत्थान करती है। देवी की शरण में जाकर देवी से प्रार्थना करें, जिस देवी की स्वयं देवता प्रार्थना करते हैं। वह भगवती शरणागत को आशीर्वाद प्रदान करती है।

देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगत ो sखिलस्य।
पसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं
त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।

अर्थात् शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवी हम पर प्रसन्न होओ। संपूर्ण जगत माता प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरी! विश्व की रक्षा करो। देवी! तुम्ही चराचर जगत की अधिश्वरी हो।

सर्वमंगल-मांगल्ये शिवेसर्वार्थसाधिके!।
शरण्ये त्रयम्बके! गौरि! नारायणि! नमोऽस्तुते ॥

सृष्टिस्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तुते ॥

अर्थात् हे देवी नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरूषार्थों को सिद्ध करने वाली शरणागतवत्सला तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो, तुम्हें नमस्कार है।

तुम सृष्टि पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणी! तुम्हें नमस्कार है।

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इस प्रकार भगवती से प्रार्थना कर भगवती के शरणागत हो जाए। देवी कई जन्मों के पापों का संहार कर भक्त को तार देती है। वही जननी सृष्टि की आदि, अंत और मध्य है। देवी से प्रार्थना करें -

शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे!
सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते ॥

शरण में आए हुए दीनों एवं पीडि़तों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सब की पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है। देवी से प्रार्थना कर अपने रोग, अंदरूनी बीमारी को ठीक करने की प्रार्थना भी करें। ये भगवती आपके रोग को हरकर आपको स्वस्थ कर देगी।

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रूष्टा तु कामान सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता हाश्रयतां प्रयान्ति।

अर्थात देवी! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके है। उनको विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देने वाले हो जाते हैं।

इस प्रकार देवी की शरण में जाने वालों को इतनी शक्ति प्रदान कर देती है कि उस मनुष्य की शरण में दूसरे आने लग जाते हैं। देवी धर्म के विरोधी दैत्यों का नाश करने वाली है। देवताओं की रक्षा के लिए देवी ने दैत्यों का वध किया। वह आपके आतंरिक एवं बाह्य शत्रुओं का नाश करके आपकी रक्षा करेगी। आप बारंबार उसकी शरणागत हो एवं इस मंत्र से स्वरमय प्रार्थना करें -

सर्वबाधाप्रशमनं त्रेलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्यमस्यध्दैरिविनाशनम्।

हे सर्वेश्वरी ! तुम तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो। पुन: भगवती के शरणागत जाकर भगवती चरित्र को पढ़ना, उनका गुणगान करने मात्र से सर्वबाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्र से संपन्न होंगे। इसमें तनिक भी संदेह नहीं। भगवती के प्रादुर्भाव क‍ी सुंदर गाथाएँ सुनकर मनुष्य निर्भय हो जाता है। मुझे अनुभव है कि भगवती के माहात्म्य को सुनने वाले पुरुष के सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं। उन्हें कल्याण की प्राप्ति होती है तथा उनका कुल आनंदित रहता है।

भगवती का कहना है कि मेरी शरण में आया हर व्यक्ति दु:ख से परे हो जाता है। यदि आप संगणित है तथा और आपके बीच दूरियाँ हो गई है तो आप पुन: संगठित हो जाएँगे। बालक अशांत है तो शांतिमय जीवन हो जाएगा।

शांतिकर्मणि सर्वत्र तथा दु:स्वप्रदर्शने।
ग्रहपीडासु चोग्रासु महात्मयं शणुयात्मम।

सर्वत्र शांति कर्म में, बुरे स्वप्न दिखाई देने पर तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर माहात्म्य श्रवण करना चाहिए। इससे सब पीड़ाएँ शांत और दूर हो जाती है। मनुष्यों के दु:स्वप्न भी शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाते है। ग्रहों से अक्रांत हुए बालकों के लिए देवी का माहात्म्य शांतिकारक है। देवी प्रसन्न होकर धार्मिक बुद्धि, धन सभी प्रदान करती है।

स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगंधादिभिस्तथा
ददाति वित्तं पुत्रांश्च मति धर्मे गति शुभाम्।।ॐ।।
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