नवरात्रि के आरंभ में अमावस्यायुक्त प्रतिपदा अच्छी नहीं होती। आरंभ में घटस्थापना के समय यदि चित्रा और वैधृति हो तो उनका त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि चित्रा में धन का और वैधृति में पुत्र का नाश होता है।
घटस्थापना का समय प्रातःकाल ही सबसे श्रेष्ठ होता है, अगर उस दिन चित्रा या वैधृति रात्रि तक रहें तो या तो वैधृत्यादि के आद्य तीन अंश त्यागकर चौथे अंश में स्थापना करें या मध्याह्न के समय (अभिजीत मुहूर्त में) स्थापना करें।
स्मरण रहे कि देवी का आह्वान, प्रवेशन, नित्यार्चन और विसर्जन यह सब प्रातःकाल में शुभ होते हैं। यदि नवरात्रि में घटस्थापना करने के बाद सूतक हो जाए तो कोई दोष नहीं, परंतु पहले हो जाए तो पूजनादि स्वयं न करें।
* नवरात्रि का प्रयोग प्रारंभ करने के पहले सुगंधयुक्त तेल से मंगल स्नान करके नित्यकर्म करें और स्थिर शांत पवित्र स्थान में शुभ मृत्तिका की वेदी बनाएं।
* उसमें जौ और गेहूं इन दोनों को मिलाकर बोएं।
* वहीं सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश को यथाविधि स्थापन करके गणेशादि का पूजन और पुण्याहन वाचन करें और पीछे देवी (या देव) के समीप शुभासन पर पूर्व या उत्तर मुख बैठकर '
मम महामायाभगवती वा मायाधिपति भगवत प्रीतये आयुर्बलवित्तारोयसमादरादिप्राप्तये वा नवरात्रिव्रतमहं करिष्ये' का वाचन करें।
शुभ संकल्प कर मंडल के मध्य में रखे हुए कलश पर सोने, चांदी, धातु, पाषाण, मृत्तिका या चित्रमय मूर्ति विराजमान करें और उसका आवाहन आसन, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, नीरांजन, पुष्पांजलि, नमस्कार और प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करें।
स्त्री हो या पुरुष, अपनी श्रद्धा-भक्ति अनुसार सभी को नवरात्रि व्रत करना चाहिए। नवरात्रि 9 रात्रि पूर्ण होने से पूर्ण होती है, इसलिए यदि इतना समय न मिले या सामर्थ्य न हो तो 7, 5, 3 या 1 दिन व्रत करें और व्रत में भी उपवास या जो बन सके यथासामर्थ्य वही कर लें।
यदि सामर्थ्य हो तो 9 दिन तक 9 और यदि सामर्थ्य न हो तो 7, 5, 3 या 1 कन्याओं को देवी मानकर उनका गंध पुष्पादि से पूजन करके उन्हें भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करें।
इस प्रकार 9 रात्रि व्यतीत होने पर 10वें दिन प्रातःकाल में घटविसर्जन करें। विधिवत पूजन करने से सब प्रकार के विपुल सुख-साधन सदैव प्रस्तुत रहते हैं और मां भगवती प्रसन्न होती हैं ।