माताजी ऐसे होंगी प्रसन्न

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इस बार नवरात्रि पर्व की शुरुआत सोमवार 7 अप्रैल से हो रही है। पहले दिन को गुडी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। मराठी लोग घर के बाहर गुडी बनाकर टाँगते हैं। इन 9 दिनों तक कन्याओं और महिलाओं को बुलाकर नियमपूर्वक उनका पूजन करना चाहिए और उपयुक्त भेंट देने से मार्ग में आने वाली अनेक बाधाएँ दूर होती हैं और कार्य सिद्ध होते हैं।

इन 9 दिनों में यदि आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकें तो कम से कम बीज मंत्र का 108 बार जाप कर भी आदिशक्ति को प्रसन्न कर सकते हैं। यह बीज मंत्र है : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य नीचे एक श्लोक दिया जा रहा है, जो सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि के प्रथम दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। ।
  इस बार नवरात्रि पर्व की शुरुआत सोमवार 7 अप्रैल से हो रही है। पहले दिन को गुडी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। मराठी लोग घर के बाहर गुडी बनाकर टाँगते हैं। इन 9 दिनों तक कन्याओं और महिलाओं को बुलाकर नियमपूर्वक उनका पूजन करना चाहिए।      


अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शैलपुत्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसी प्रकार रक्षा कवच भी है, जिसकी आराधना से आपकी दसों दिशाओं से रक्षा होती है और अनेक दुर्घटनाओं और बलाओं से आप बचे रहेंगे।

माँ दुर्गा का पहला स्वरूप 'शैलपुत्री' है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका यह नाम पड़ा था। वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। पूर्व जन्म में माता ने प्रजापति दक्ष के घर में कन्या 'सती' के रूप में जन्म लिया था। इनका विवाह भोलेनाथ से हुआ था।

एक बार दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को तो निमंत्रण दिया लेकिन शंकरजी को बुलावा नहीं भेजा। सती को जब पिताजी द्वारा कराए जा रहे यज्ञ की जानकारी मिली तो वह भी इसमें शामिल होने के लिए लालायित हो उठीं।

शंकरजी के मना करने पर भी सती की इच्छा कम नहीं हुई क्योंकि भगवन् का कहना था कि जब हमें निमंत्रण नहीं मिला है तो हमारा जाना उचित नहीं। लेकिन सती तो सती ठहरीं, वह तो अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुईं। अंतत: महादेव ने उन्हें जाने की आज्ञा दे दी।

पिता के घर पहुँचने पर सती का ठीक से आदर-सत्कार भी नहीं किया गया। इसके विपरीत उनके पिता प्रजा‍पति दक्ष ने शंकरजी को अनाप-शनाप बकना शुरू कर दिया। इससे सती बहुत दु:खी हुईं। उनका हृदय दु:ख और विशाद से भर गया। अत्यंत क्रोध भी आया और मन ही मन उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ कि आखिर उन्होंने शंकरजी की बात क्यों नहीं मानी और क्यों यहाँ आईं।

सती ने क्रोध और दु:ख की अग्नि में जलते हुए वहाँ हो रहे यज्ञ की अग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया। इसके बाद शंकरजी ने क्रोधित होकर यज्ञ का पूरी तरह से विध्वंस कर दिया। अगले जन्म में सती ने शैलराज हिमालय की पुत्री 'पार्वती' के रूप में जन्म लिया और तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न कर उन्हें अपने पति के रूप में पाने का वर माँगा।

शैलपुत्री, हेमवती नाम से भी उन्हें जाना गया। नवरा‍त्रि पर्व में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन ऐसी महिलाओं की जिनकी नई-नई शादी हुई हो उनका घर बुलाकर पूजन करने के बाद वस्त्र, आभूषण और सुहाग आदि की वस्तुएँ भेंट करना चाहिए।

कैसे करें माताजी का पूज न
नवरात्रि वर्ष में दो बार आती है। एक तो चैत्र की नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि। शारदीय नवरात्रि में चौराहे-चौराहे पर और घरों में माताजी की मूर्तियाँ विराजित होती हैं। गरबे होते हैं और काफी चहल-पहल होती है। जबकि चैत्र की नवरात्रि में कतिपय लोग माताजी की मूर्ति घर में बैठाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।

माँ दुर्गा के भक्त नित्य कर्मों से निवृत्त हो, साफ वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को सजाते हैं। मंडप में माँ की मूर्ति की स्थापना करते हैं। मूर्ति के दाईं ओर कलश की स्थापना कर ठीक कलश के सामने मिट्‍टी और रेत मिलाकर जवारे बोते हैं। माता की ज्योत जलाते हैं जो सतत् 9 दिनों तक प्रज्वलित रहती है।

पूजन सामग्री : देवी प्रतिमा, गंगा जल, पंचामृत, पंचमेवा, दूध, दही, घी, शहद, नारियल, शर्करा, रेशमी वस्त्र, रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, सुपारी, पान, लौंग, इलायची, सिंदूर, कलश, रेत-मिट्‍टी, यज्ञोपवीत, आसन।

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