॥ दुर्गासिद्धमन्त्रस्तोत्रम्‌ ॥

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विश्वेश्वरि! त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीह विश्वम्‌।
विश्वेशवन्धा भवती भवन्ति
विश्वाश्चया ये त्वयि भक्तिनम्राः॥1॥

देवि! प्रपन्नार्ति हरे! प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि! पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि! चराऽचरस्य॥2॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्य्र-दुःखभय हारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥3॥

विद्याः समस्तास्तव देवि! भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैत्‌
का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः॥4॥

त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमाऽसि माया।
सम्मोहितं देवि! समस्तमेतत्‌
त्वं वै प्रसन्ना भुविमुक्तिहेतुः॥5॥

सर्वमंगल-मांगल्ये शिवेसर्वार्थसाधिके!।
शरण्ये त्रयम्बके! गौरि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥6॥

शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे!
सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥7॥

॥ इति श्रीमती पुष्पामिश्रासंकलित-दुर्गासिद्धमन्त्रस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥

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