विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के प्रदर्शन के बाद कश्मीरी पंडित समुदाय एक बार फिर चर्चा में है। एक तरफ कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों की चर्चा है, वहीं उनके पुनर्वास को लेकर सरकारों की नीयत और नीतियों पर भी हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। कश्मीर घाटी की हिंसा ने यूं तो समूची कश्मीरियत को ही गहरे जख्म दिए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान कश्मीरी पंडितों का हुआ है। लेकिन, 32 सालों बाद अब भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर कश्मीरी पंडितों की मुकम्मल वापसी कैसे होगी? यदि वे वापस लौटते हैं तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?
क्योंकि जब-जब कश्मीरी पंडितों की वापसी की बात होती है, आतंकवादी इस समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर खौफ पैदा करने की कोशिश करते हैं। अक्टूबर 2021 में ही श्रीनगर में जाने-माने फार्मासिस्ट माखन लाल बिंद्रू समेत 5 लोगों की हत्या कर दी, जिन्होंने 90 के दशक में चरमपंथी घटनाओं में उभार के बावजूद घाटी में ही रहने का फैसला किया था। हाल के दिनों में भी कई लोगों को निशाना बनाया गया है। इस तरह की घटनाओं ने न सिर्फ घाटी में लौटने की इच्छा रखने वाले पंडितों को बल्कि वर्तमान में रह रहे हिन्दुओं को भी चिंता में डाल दिया है।
दरअसल, 90 के दशक में घाटी में आतंकवादी वारदातें तेज होने और स्थानीय अलगाववादी संगठनों का हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के साथ ही वहां रहने वाले हजारों पंडित परिवार अपने घर-बार छोड़ने को मजबूर हो गए थे। उन्होंने जम्मू समेत देश के अलग-अलग हिस्सों और शहरों में शरण ली थी। उसी दौर से पंडितों की कश्मीर घाटी में वापसी एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। भाजपा ने लोकसभा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान पंडितों की वापसी का वादा किया था। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने एक योजना प्रस्तुत की थी कि कश्मीर के विभिन्न शहरों मे पंडितों के लिए अलग बस्तियां बसाकर उन्हें वापस लाया जाए, लेकिन घोषणा के साथ ही इस योजना का विरोध शुरू हो गया।
सरकार की इस योजना का राजनीतिक दलों के साथ ही अलगाववादी संगठनों ने यह कहकर एक सुर में विरोध किया था कि कश्मीरी पंडितों की वापसी उसी रूप में होनी चाहिए जैसे कि वे निर्वासन से पहले रहते थे। अर्थात उन्हें अलग बस्तियां बनाकर नहीं बसाना चाहिए। इसके लिए अलगाववादी गुट जेकेएलएफ ने 30 घंटों की भूख हड़ताल की थी। सईद अली गिलानी के नेतृत्व वाले कट्टरपंथी गुट, मीरवायज उमर फारूक के नेतृत्व वाले उदारवादी गुट जैसे अलगाववादी गुटों ने कश्मीरी पंडितों के लिए अलग बस्ती बसाने के प्रस्ताव का विरोध किया था।
आंकड़ों पर मतभेद : 1989 के शुरू में आतंकी हिंसा में तेजी ने कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 32 सालों में हजारों परिवारों के तकरीबन 3.5 लाख लोगों ने कश्मीर घाटी को छोड़ दिया। एक अन्य जानकारी के मुताबिक 44 हजार 167 परिवार घाटी से भागने के लिए विवश हुए थे।
घाटी छोड़कर जाने वालों में से 39 हजार 782 परिवार हिंदुओं के थे, जबकि बाकी सिख, बौद्ध और मुस्लिम समुदाय से थे। इन कश्मीरी हिन्दुओं में सबसे ज्यादा संख्या पंडितों की थी। सुप्रीम कोर्ट के वकील एजी नूरानी के मुताबिक, घाटी को छोड़ने वाले कश्मीरियों की संख्या कभी भी सही तौर पर सामने नहीं आई। यह आंकड़ा 7 से 8 लाख के करीब भी हो सकता है। हालांकि जम्मू-कश्मीर में सत्तारूढ़ मुफ्ती सरकार ने उस समय यह भी शगूफा छोड़ा था कि कश्मीरी पंडित अपनी मर्जी से कश्मीर से गए थे और किसी ने उन्हें नहीं निकलने पर मजबूर नहीं किया।
370 हटने के बाद बढ़ी उम्मीद : जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटने और राज्य के दो टुकड़े (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। उस समय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि सरकार की प्राथमिकता घाटी को आतंकवाद से मुक्त कराना है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की बात भी कही थी। हालांकि 32 साल बाद भी कश्मीरी पंडितों की वापसी को लेकर किए जा रहे प्रयासों में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई नहीं दी।
...और यह सरकारी वादे : मोदी सरकार की ओर से ही वादा किया गया था कि 2022 के अंत तक कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाया जाएगा। साथ ही विस्थापित लोगों को कश्मीर घाटी में ही सरकारी नौकरी उपलब्ध करवाई जाएगी। इसके अलावा कश्मीरी विस्थापितों के लिए घाटी में फ्लैट बनाए जाएंगे और घरों के निर्माण के लिए भी सरकार देगी मदद।
क्या किया सरकारों ने : कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के 18 साल बाद कांग्रेस सरकार एक योजना लेकर आई थी। इसके लिए बजट में 1618.4 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। कांग्रेस के कार्यकाल में 2008 में प्रत्येक परिवार को घर के निर्माण या मरम्मत के लिए 7.5 लाख रुपए की मदद का वादा किया गया था, लेकिन यह योजना लंबी नहीं चल पाई। हालांकि कांग्रेस ने शेखपुरा में 200 फ्लैट्स और कुछ अन्य स्थानों पर घरों का निर्माण जरूर कराया।
2015 में नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए प्रधानमंत्री विकास पैकेज का एलान किया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 80 हजार 68 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। सरकारी दावे के मुताबिक 2015 के पीएम राहत पैकेज के 3800 कश्मीरी प्रवासियों को नौकरी दी गई। ये फिलहाल कश्मीर के श्रीनगर समेत विभिन्न स्थानों पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा मोदी सरकार ने विस्थापितों परिवारों के लिए आर्थिक मदद की राशि को 500 से बढ़ाकर 13000 रुपए कर दिया।
एक जानकारी के मुताबिक 2017 से 2022 के बीच 610 कश्मीरी पंडितों को उनके कश्मीर स्थित घर लौटाए जा चुके हैं। सरकार का यह भी कहना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से ही अब तक 1700 कश्मीरी पंडितों को सरकारी नौकरियां मिली हैं।
ये हैं पंडितों की मांगें : वापसी की बाट जोह रहे पंडितों का कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश के सालाना बजट में से 2.5 प्रतिशत राशि प्रवासियों के पुनर्वास के लिए खर्च होना चाहिए। परिवारों ने मिलने वाली राहत राशि को भी 13000 से बढ़ाकर 25000 किया जाना चाहिए। जल्द से जल्द डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने की भी कश्मीरी पंडितों की ओर से मांग की गई है, ताकि उन्हें घाटी में अपना हक मिले और वे मुख्यधारा में लौट सकें। हालांकि यह प्रश्न अभी भी वैसा का वैसा ही कि कश्मीरी पंडितों की वापसी कब और कैसे होगी।