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12 September मोरयाई छठ, आज सूर्य पूजा और इन मंत्र जाप से मिलेंगे शुभ फल

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Shashti Vrat
 
भारत में भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को ललिता षष्ठी या मोरयाई छठ व्रत किया जाता है। इस वर्ष यह पर्व आज, 12 सितंबर को मनाया जा रहा है। इसे सूर्य षष्ठी व्रत या मोर छठ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान सूर्य को समर्पित यह दिन सूर्य उपासना एवं व्रत रखने के लिए विशेष महत्व रखता है।

इस दिन सूर्यदेव को प्रसन्न भगवान सूर्यदेव को लाल रंग अधिक प्रिय है, अत: इस दिन उन्हें गुलाल, लाल चंदन, लाल पुष्प, करने के लिए केसर, लाल कपड़ा, लाल फल, लाल रंग की मिठाई अर्पित करना चाहिए। पुराणों के अनुसार हर महीने में आने वाली शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हर मनुष्य को सूर्य देव का यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान का भी महत्व है। षष्ठी के दिन सूर्य प्रतिमा की पूजा किया जाना चाहिए।

भाद्रपद महीने में सूर्य का नाम 'विवस्वान' है। षष्ठी के दिन भगवान सूर्यदेव का विधिवत पूजन करना चाहिए तथा एक समय का बिना नमक का भोजन ग्रहण करना चाहिए। खास कर भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के दिन यह व्रत करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ जितना फल प्राप्त होता है। आज करें सूर्यदेवता को प्रसन्न-
 
* मोरयाई छठ व्रत हर व्रतधारी को पूर्ण श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक रखना चाहिए।
 
* इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है, लेकिन अगर किसी कारणवश गंगा स्नान संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में कुछेक मात्रा में गंगा जल डालकर स्नान किया जा सकता है।
 
* इस दिन सूर्य के उदय होते ही भगवान सूर्यदेव की उपासना करना चाहिए।
 
* इस दिन पंचगव्य का सेवन अवश्य करना चाहिए।
 
* दिन भर में एक बार नमक रहित भोजन करना चाहिए।
 
* भाद्रपद शुक्ल षष्ठी तिथि को जब तक सूर्य देवता प्रत्यक्ष रूप दिखाई न दें, तब तक सूर्य उपासना नहीं करना चाहिए।
 
* इस दिन सूर्य देव के विभिन्न नाम तथा सूर्य मंत्रों का जप अवश्य करना चाहिए।
 
* सूर्य षष्‍ठी के 'ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य: श्रीं ह्रीं मह्यं लक्ष्मीं प्रयच्छ' इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

* 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:'।  
 
* ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
 
* ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
 
* ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।
 
* ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य: मंत्र जपें ।
 
यह जाप पूर्ण होने के पश्चात सूर्यदेव को तांबे के कलश से अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। अर्घ्य चढ़ाने के जल में रोली, शकर और अक्षत डालने से भगवान सूर्यदेव प्रसन्न होकर आयु, धन-धान्य, यश-विद्या सभी तरह के सुख, ऐश्वर्य तथा अश्वमेध यज्ञ का फल देते हैं।

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