बचपन हर गम से बेगाना होता है

मुक्त करो 'बचपन' को...

Webdunia
विशाल मिश्रा

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बच्चे इस जमीं के तारे हैं। इस जमीं के फूल हैं। आपने इन फूलों को नहीं खिलने दिया तो फिर कौन इन्हें खिलने देगा? माली बन कर बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन और दुनिया को जानने की उसकी जिज्ञासा को जिंदा बनाए रखने के लिए उन्हें सिंचित करते रहना होगा। बागवान बनना होगा। देखना होगा कि कहीं यह बचपन मुरझा न जाए।

आज बच्चों का विकास जिस रूप में होगा। वही हमें कल के आने वाले अपने घर, परिवार, समाज और देश के रूप में दिखेगा। आज यदि ये लड़ाई-झगड़े की ओर प्रवृत्त हो गए तो आगे जाकर हमें हिंसा ही देखने को मिलेगी। वर्तमान इनके आसपास यदि धुएँ के छल्ले उड़ ाते हुए माहौल में बीता तो बहुत अधिक संभावना इस बात की रहेगी कि भविष्य में ये नशेड़ी बन जाएँ।

भ्रष्टाचार यदि इनके बचपन की जड़ों में उतर गया तो भारत का भविष्य भी हम आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा ही पाएँ। अतएव यदि हमें एक शिक्षित, सुखी और समृ्द्ध भारत की परिकल्पना को साकार करना है तो उसका रास्ता इसी बचपन से होकर ही गुजरेगा।

आज हमारी जिम्मेदारी बनती है कि कहीं न कहीं हम इन बच्चों के प्रति ईमानदार बनें। हम समाज के किसी भी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हों। चाहे शिक्षक हों, चिकित्सक हों, पत्रकार हों, शासकीय प्रतिनिधि हों। इन बच्चों के प्रति ईमानदार बनें।

इन बच्चों को बात-बात में झिड़कियाँ देना या डाँट कर समझाना। एक तरह से प्रताड़ित करना है। ये मत करो, वह मत करो। छोटी-छोटी बातों में टोका-टाकी करना मानो माता-पिता के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।
माता-पिता अपने बच्चों को ‍अपनी सुविधाओं में कमी करके भी अच्छा पढ़ाना चाहते हैं, अच्छा इलाज कराना चाहते हैं और उनके लिए कुछ बेहतर करना चाहते हैं। इनके प्रति उदार बनें। उनके इलाज में, शिक्षा में, मनोरंजन और अन्य सुविधाओं को 'टैक्स फ्री फिल्मों' की भाँति सुविधा दी जाए। सेवा शुल्क यदि सरकार स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थानों से लेती है तो ये छात्रों से वसूल ली जाती है।

इनमें रियायत मिले तो एक काफी बड़ा वर्ग इससे प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होगा। भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा इन बच्चों के रूप में है और यही देश का भविष्य हैं। जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाओं में विशेष छूट सरकारी से लेकर निजी और सभी बड़े अस्पतालों में समान रूप से दी जाए।

इन बच्चों को बात-बात में झिड़कियाँ देना या डाँट कर समझाना। एक तरह से प्रताड़ित करना है। ये मत करो, वह मत करो। छोटी-छोटी बातों में टोका-टाकी करना मानो माता-पिता के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। कभी सोचा है इस तरह के काम करते समय हम खुद कितना इन बातों का ध्यान रखते हैं। बच्चे से अपेक्षा की जाती है कि वह हर चीज को जितनी जल्दी हो सके जस-की-तस समझ ले और बन जाए परफेक्ट। स्वयं किसी चीज को पढ़कर या टीवी ‍में देखकर कितना समझ में आ जाता है, इस पर तो शायद ही कोई माता-पिता कभी गौर करते होंगे। बेटा रैंकिंग में पिछड़ा नहीं कि गिल्टी फील करने लग जाते हैं। मानो औलाद नहीं हो कोई स्वाइन फ्लू जैसा वायरस हो।

बच्चे देश का भविष्य हैं। इनके पौधे रूपी जड़ों में यदि आपने सही ढंग से खाद-पानी डालकर इन्हें सींचा तो समृद्धि का वृक्ष बनकर परिवार और देश का नाम रोशन करेंगे। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कराए जा रहे गरीब की बेटी का विवाह और गरीब कन्याओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं जैसा लाभ देश के सभी बच्चों को मिले। बचपन को इन सब तनावों से मुक्त रखने की जिम्मेदारी परिवार, शिक्षक, समाज अपने ऊपर लें क्योंकि इन बच्चों को तो आगे जाकर काफी कुछ सहन करना है। अनेक परिस्थितियों से जूझना है।

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