अपधर्म विशेषकर आधुनिकतावाद

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अपधर्म उस ईश्वर प्रकाशित सत्य की अस्वीकृति है जो एक स्नान संस्कार प्राप्त रोमन काथलिक कलीसिया का सदस्य करता है। कलीसिया के लगभग पूरे इतिहास में किसी न किसी प्रकार का अपधर्म था।

लगभग बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में 'आधुनिकतावाद' कलीसिया में दिखाई देने लगा। इसने काथलिक कलीसिया के सिद्धांतों पर प्रकृतिवादी विकासात्मक दर्शन और निरंकुश ऐतिहासिक आलोचनाओं के प्रयोग द्वारा आमूल परिवर्तन का बीज बोया। संत पिता पीयूष दसवें ने आधुनिकतावाद को समस्त अपधर्म का 'संश्लेषण' की तरह वर्णन किया है। इसकी बहुत-सी त्रुटियों में ये भी है।

व्यक्तिगत ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित नहीं किया जा सकता।
बाइबिल ईश्वर प्रेरित नहीं है।
ख्रीस्त दैविक नहीं है।
ख्रीस्त ने कलीसिया की स्थापना नहीं की।
ख्रीस्त ने संस्कारों की स्थापना नहीं की।

हमारे आधुनिकतम युग में यह अपधर्म बहुत व्यापक रूप से फैला है। इसका उद्देश्य है समस्त धर्मों का जड़ से नाश। और संत पिता पीयूष दसवें ने उपरोक्त भ्रांतियों एवं करीब 58 दूसरी भ्रांतियों को दोषी ठहराया है।
  यह सत्य है कि एक भटके हुए मनुष्य को ईश्वर के घर की ओर जाने वाले रास्ते की पुनः तलाश करनी चाहिए और घुटनों के बल दरवाजे से प्रवेश करना चाहिए (पश्चाताप करना चाहिए) और एक बार प्रवेश हो जाने पर कितना महान पुरस्कार मिलता है।      


जोन एल. स्टोडार्ड ने अपनी पुस्तक रीविल्डिंग ए लॉस्ट फेथ में ये बातें लिखी हैं- जब मैं कलीसिया की लंबी, अखंड निरन्तरता पर प्रेरितों के दिनों से विचार करता हूँ, जब मैं उसकी महान, ईश्वर प्रेरित परम्पराओं को, उसके पवित्र संस्कारों को उसकी अति प्राचीन भाषा, अपरिवर्तनशील धर्मसार, उसकी प्रभावशाली धर्मविधि, उसके भव्य समारोहों, उसके अमूल्य कला के कार्यों, उसके सिद्धांतों की आश्चर्यमय एकता, उसके प्रेरितिक अधिकारों, उसके संतों और शहीदों की दिव्य भूमिका, हमारे प्रभु की माता मरिया की याचनाओं का स्मरण करता हूँ और अंतिम परन्तु कम नहीं, जब मैं हमारे मुक्तिदाता की वेदी पर चिरस्थायी उपस्थिति पर विचार करता हूँ, तब मुझे यह प्रतीत होता है कि यह एक पवित्र, काथलिक तथा प्रेरितिक कलीसिया ने मुझे दुविधा के लिए निश्चय, उलझनों के लिए नियम, अंधकार के लिए प्रकाश और धूमिलता के लिए वास्तविकता दी है।

यह असंतोषजनक भूसा नहीं, जीवन की रोटी और आत्मा की मदिरा है। पिता ईश्वर हमें उलझनों के झंझावात में ही नहीं छोड़ देते हैं बल्कि अँगूठी और मूल्यवान वस्त्रों के साथ हमारा स्वागत करते हैं।

यह सत्य है कि एक भटके हुए मनुष्य को ईश्वर के घर की ओर जाने वाले रास्ते की पुनः तलाश करनी चाहिए और घुटनों के बल दरवाजे से प्रवेश करना चाहिए (पश्चाताप करना चाहिए) और एक बार प्रवेश हो जाने पर कितना महान पुरस्कार मिलता है।

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