ईश्वर की चौथी आज्ञा- अपने कर्तव्य को निभाएं...

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हमारे प्रभु ने कहा 'यदि तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे।' (योहन 14:15)
 
चौथी आज्ञा कहती है- अपने माता-पिता का आदर कर (निर्ग.20:12)
 

चौथी आज्ञा हमसे कहती है कि पाप को छोड़ हर हालत में हमें अपने माता-पिता और दूसरे अधिकारियों को प्यार और आदर करना एवं उनकी आज्ञा माननी चाहिए।
 
('सारे हृदय से अपने पिता का सम्मान करो, अपनी मां की प्रसव पीड़ा को मत भूलो। याद रखो कि इन्हीं माता-पिता से तुम्हारा जन्म हुआ है, जो कुछ उन्होंने दिया बदले में क्या दे सकते हो?') (प्रवक्ता 3:1-15)
 
बच्चों के कर्तव्य
 
बच्चे अपने माता-पिता से प्यार करें, उनके लिए प्रार्थना करके, घर में उन्हें मदद देकर व घर को खुशी एवं शांतिमय स्थान बनाकर प्यार करें। जब माता-पिता बूढ़े हो जाएं तो आवश्यकताओं में उनकी सहायता करें, देखने जाएं, अकेलेपन में सांत्वना दें, यदि वे गिरजा जाने में असमर्थ हो गए हों तो इस बात को ध्यान रखकर इसकी सूचना अपने पल्ली पुरोहित को दें कि वह समय-समय पर पवित्र परम प्रसाद लाकर दे सकें।
 
बच्चे-माता-पिता का आदर करें, वे तुम्हारे माता-पिता हैं और अपने बच्चों से आदर चाहते हैं। उनसे कभी शर्म का अनुभव न करें। उनका कभी तिरस्कार न करें। बच्चे-माता-पिता की आज्ञा मानें, नहीं तो वे तुम्हारी भौतिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते हैं। पाप को छोड़ सब बातों में उनकी आज्ञा मानें।
 
बच्चे अपने माता-पिता से सलाह लें कि उनका जीवन वैवाहिक हो या एक पुरोहित, धर्मभाई या धर्म बहन का हो.... परन्तु यदि उनकी सलाह उचित न हो तो मानने को बाध्य नहीं हैं।
 
बच्चों के प्रति माता-पिता के कर्तव्य
 
'प्रभु के अनुरूप शिक्षा और उपदेश द्वारा उनका पालन पोषण करें।' (एफे 6:4)
 
विवाह का प्रथम उद्देश्य बच्चों का प्रजनन और उनका पालन-पोषण करना है। पालकों को यह जान लेना चाहिए कि धार्मिक बंधन या कर्त्तव्य बड़े त्याग की आशा करता है। उन्हें स्वयं को बच्चों के लिए अर्पित होना चाहिए और इस प्रकार वे यहाँ और स्वर्ग में मन और हृदय की शांति का आनंद ले सकें। उन्हें अपने बच्चों के लिए आवश्यक आहार, कपड़ा, आवास और ख्रीस्तीय शिक्षा उपलब्ध कराना चाहिए।
 
माता-पिता को अच्छा उदाहरण देना चाहिए, उदाहरण सबसे उत्तम शिक्षक है और बच्चे सबसे अच्छे अनुकरण करने वाले। पल्ली में रहने वाले पुरोहित और धर्म बहन की अपेक्षा वे अपने माता-पिता का अधिक अनुकरण करेंगे।
 
माता-पिता को अपने बच्चों के लिए अच्छे काथलिक घर का वातावरण देना चाहिए, बच्चे घर में, उचित स्थानों पर क्रूस, हमारी माता-मरिया एवं संतों की तस्वीरें देखें। घर में सामान्यतः प्रार्थना होनी चाहिए जैसे सुबह-शाम भोजन के पूर्व व पश्चात और पारिवारिक माला बिनती और स्मरण रखें कि ख्रीस्त जयंती पर एक अच्छी सी चरनी भी हो। बच्चे यह देखें कि उनके माता-पिता विश्वास के साथ धर्म मानते हैं।
 
एक अधार्मिकता, मूर्तिपूजक और लापरवाह घर में कभी काथलिक धर्म की शिक्षा पनप नहीं पाती है।
 
माता-पिता को यह देखना है कि उनके बच्चे संस्कार ग्रहण करते हैं या नहीं। बच्चों के जन्म के एक या दो सप्ताह बाद उन्हें बपतिस्मा दिलाना चाहिए।
 
धर्म माता-पिता के चुनाव में सावधानी बरतें, वे अच्छे काथलिक हों, धर्म पर चलने में इतने योग्य हों कि तुम्हारे बच्चों को एक भला काथलिक उदाहरण दे सकें और तुम्हारे मरने पर उन्हें धर्म का शिक्षण मिल सके। इतना स्मरण रखें कि तुम्हारे बच्चे को उसका प्रथम परमप्रसाद 6-7 वर्ष की उम्र में मिल जाए। उन्हें बारम्बार संस्कार लेने पर प्रोत्साहित करें। जब बच्चा समझदार हो जाए तो उसे दृढ़ीकरण संस्कार दिलाएं। तुम्हारे बच्चे की ऐसी शिक्षा हो कि यदि घर में कोई बीमार हो जाए तो वह पुरोहित को बुलाकर ला सके।
 
माता-पिता अपने बच्चों को विवाह के लिए तैयार करें, उन्हें 'जीवन की वास्तविकता से अवगत करना चाहिए। उनके मानसिक विकास को देखते हुए उन्हें सेक्स और विवाहित जीवन की उचित शिक्षा एवं जानकारी देनी चाहिए। माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी पत्रिकाएं एवं पुस्तक पढ़ने एवं बुरी किताबों से बचे रहने के लिए प्रोत्साहित करें। इसी तरह चलचित्र और टी.वी. दर्शन भी सिर्फ अच्छे चलचित्र देखें और बुरे चलचित्रों से दूर रहें।
 
माता-पिता अपने बच्चों को शासन का आदर एवं आज्ञा मानना सिखलाएं, बच्चों के सामने राज्याधिकारियों की अनुचित आलोचना न करें। यदि कोई बालक पुरोहित, धर्म भाई या धर्म बहन बनने की इच्छा रखता हो तो माता-पिता को स्वयं को धन्य समझना चाहिए। कलीसिया को बहुत से और अच्छे पुरोहितों, धर्म भाइयों और धर्म बहनों की आवश्यकता है और किसी बच्चे को इन बातों से दूर रखना माता-पिता की गलती है।
 
शासन के प्रति हमारे कर्त्तव्य
 
जरा सोचो कि सार्वजनिक अधिकारियों, पुलिस, न्यायाधीश आदि के बिना कितनी गड़बड़ी हो जाएगी। समस्त सत्ता ईश्वर से है। ईश्वर जैसे पैतृक अधिकारी है, वैसे ही शासन का अधिकारी भी है। उनके बिना हम उचित जीवन नहीं जी सकते। यदि कोई नगरीय, राज्य या केन्द्र का अधिकारी अपनी कानूनन शक्ति से शासन करता है, तो उनके प्रति अनादर या आज्ञा उल्लंघन करना पाप होता है।
 
तुम्हें अपने देश, राज्य और शहर से प्यार करना चाहिए। यह सब तुम सबों की आर्थिक सम्पन्नता के लिए प्रयास करके, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए और मधुर ख्रीस्तीय नैतिकता एवं सामाजिक न्याय के लिए अधिकारियों की सहायता कर करते हो। तुम्हें अपना वोट देना चाहिए और नगर, राज्य एवं संघीय शासन के शासकों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
 
फिर भी जब ईश्वर के नियम और सरकार के नियम में विरोध हो तो ईश्वर को नियमों का पालन करना है।
 
कलीसिया के धर्माधिकारियों के प्रति हमारे कर्तव्य
 
स्वयं येसु ख्रीस्त के द्वारा काथलिक कलीसिया की स्थापना की गई है। जब हम विश्वास की घोषणा करते हैं, तो हम सबों पर यह दर्शाते हैं कि हम स्वयं को कलीसिया के धर्माधिकारियों के अधीन कर रहे हैं। यह अधिकार संत पिता, धर्माध्यक्षों और हमारे पल्ली पुरोहित के अधीन है। धर्म के कार्यों में हमें उनकी आज्ञा माननी चाहिए यद्यपि उन आदेशों को हम नापसंद करते हैं।
 
(क) संत पिता के प्रति कर्तव्य
संत पिता के प्रति प्यार, आदर और आज्ञाकारिता द्वारा हम ख्रीस्त को अपना प्यार, आदर और आज्ञाकारिता दिखाते हैं, क्योंकि संत पिता पृथ्वी पर ख्रीस्त के प्रतिनिधि और संत पेत्रुस के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं। संत पिता जब ईश्वर की कलीसिया के प्रधान होकर पूरे संसार को ख्रीस्त की कोई शिक्षा की घोषणा करता है, तो हमें बिना हिचक उस शिक्षा को ग्रहण करना चाहिए।
 
(ख) धर्माध्यक्ष के प्रति कर्तव्य
धर्माध्यक्ष प्रेरितों का वास्तविक उत्तराधिकारी है। उसे ईश्वर की कलीसिया से अपने धर्मप्रांत के लिए नियम और कानून बनाने की शक्ति मिली है, ताकि वह हमें मुक्ति की राह पर ले चले।
 
जैसे कि संत पौलुस हमसे कहते हैं, 'अपने प्रधानों की बात मानिए और उनके अधीन रहिए। ये लोग आपकी आत्मा की चौकसी करते हैं, क्योंकि उन्हें उनके लिए हिसाब देना पड़ेगा। आपका आचरण ऐसा हो कि ये लोग अपना कार्य सहर्ष पूरा करें, आहें भरते हुए नहीं, क्योंकि आपको इससे कोई लाभ नहीं होगा।' (इब्रानियों 13:17)
 
(ग) पल्ली-पुरोहित के प्रति कर्तव्य
प्रेरितों के उत्तराधिकारी धर्माध्यक्ष से तुम्हारे पल्ली पुरोहित, अपनी पल्ली पर शासन करने का अधिकार और कर्त्तव्य पाता है। अच्छे काथलिक, पुरोहित को ईश्वर प्रदत्त शक्ति और अधिकार के प्रति अपने वचन और कार्यों द्वारा सम्मान देते हैं।
 
अपने पल्ली पुरोहित के समर्थन में हम न्याय से बंधे हैं। जैसे संत पौलुस कहते हैं, 'क्या आप नहीं जानते कि मंदिर में सेवा कार्य करने वाले मंदिर से भोजन पाते हैं। जो वेदी की परिचर्या में लगे रहते हैं, वे बलि भोजों के साझेदार होते हैं? इसी प्रकार प्रभु ने यह व्यवस्था की है कि सुसमाचार के प्रचारक सुसमाचार से जीविका प्राप्त करें।' (1 कुरिंथयों 9:13-14)

 

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