घर-घर बनेंगे क्रिसमस क्रिब

क्रिसमस क्रिब का महत्व

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क्रिसमस के त्योहार में क्रिसमस क्रिब यानी गौशाला का काफी महत्व रहता है। गौशाला यानी क्रिब जहाँ प्रभु यीशु का जन्म हुआ था। जैसे कन्हैया के स्वागत के लिए उनका पालना सजाया जाता है, यीशु मसीह के स्वागत में गौशाला बनाई और सजाई जाती है। घर के किसी अच्छे से कोने में या आँगन में किसी सुरक्षित जगह जहाँ क्रिसमस के दिन सभी आकर प्रभु यीशु के दर्शन कर सकें, क्रिब सजाया जाता है।

यूँ तो बाजार में बने बनाए क्रिब मिल जाते हैं, जिसमें माता मरियम, संत जोसफ, बालक यीशु के साथ भेड़ और चरवाहे रहते हैं। कुछ लोग घर पर ही क्रिब तैयार करना पसंद करते हैं। अमूमन लकड़ी की गौशाला बनाई जाती है। इसमें पुआल रखकर माता मरियम को बिठाया जाता है, जिसमें बालक यीशु को उनकी गोद में प्रतिष्ठित किया जाता है। संत जोसफ को पास में खड़ा कर, चरवाहों और भेड़ों को बालक यीशु के ईद-गिर्द सजाया जाता है।

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क्रिब को सुनहरे कपड़ों, झिलमिल सितारों से सजाया जाता है। क्रिब में बल्ब, ट्यूब लाइट के साथ बिजली की झालरें भी लगाई जाती हैं, ताकि गौशाला पवित्र आभा से भर उठे। क्रिसमस के दिन सुबह से ही एक-दूसरे के घर आने-जाने वाले लोग हर घर के क्रिब के दर्शन जरूर करते हैं।

ऐतिहासिक पारम्परिक रूप से क्रिब के चार डिजाइन होते हैं- कोस्टनर क्रिब, बारोक्यू क्रिब, सेंट ओसवाल क्रिब, ऑस्टिरोलर क्रिब, लिटिल ऑस्टिरोलर क्रिब। हालाँकि ये कम ही देखने को मिलते हैं। आजकल लोग डिजाइनर तरीके से भी क्रिब सजाने लगे हैं। उसमें अमन और शांति के संदेश वाले पटल भी लगाए जाते हैं।

इस दिन कई ईसाई परिवारों के घरों में बेथलेहम की उस रात के परिदृश्य का छोटा-सा कोना सुरुचि से सजाया जाता है।

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