कॉफ़ी टोबिल बुक - पाठ 1

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कॉफ़ी में सबसे महत्‍वपूर्ण घटक कॉफ़ी बीन्‍स होते हैं! ब्राउन पाउडर जिसे हम कॉफ़ी के नाम से जानते हैं, वास्‍तव में एक लंबी प्रक्रिया का अद्भुत परिणाम है।

खेती

अधिकांश फलों के पेड़ों की तरह ही कॉफ़ी के पेड़ भी वार्षिक चक्र के अनुसार फलते-फूलते हैं। कॉफ़ी की पैदावार वाले राज्‍यों में जनवरी से मार्च तक का समय व्‍यस्‍ततम होता है जब कॉफ़ी की चेरी पक जाती है और फिर उन्‍हें संसाधन के लिए भेज दिया जाता है। चेरीज़ को फ़ोड़ के अंदर के बीन्‍स निकाले जाते हैं।

क्‍यूरिंग

संसाधित की हुई कॉफ़ी को अंतिम रूप देने के लिए क्‍यूरिंग के लिए दिया जाता है। क्‍यूरिंग वह स्‍तर है जहाँ मशीनें और आधुनिक तकनीक अपनाई जाती है। क्‍यूरिंग कार्यों में भंडारण, संग्रहण, प्रीक्‍लीनिंग, बीन्‍स निकालना, पॉलिशिंग, ग्रेडिंग आदि शामिल होते हैं।

भारत में ग्रेडिंग अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए कॉफ़ी बोर्ड द्वारा तय मानकों के अनुसार होती है। ग्रेडिंग बीन के आकार और सघनता के आधार पर की जाती है। कुछ देश अपनी विधियों से बीन्‍स की ग्रेडिंग करते हैं और विभिन्‍न राष्ट्रीय और/या निजी संस्‍थाएँ और कंपनियाँ स्‍वयं ही परीक्षण या लिकरिंग और बाद में ग्रेडिंग करती हैं।

कॉफ़ी के विविध प्रकार

कॉफ़ी के पौधे मुख्‍य रूप से दो प्रजातियों में पाए जाते हैं - अरेबिका, जिसकी पैदावार ऊँचाई वाले स्‍थानों पर अधिक होती है और रोबस्‍टा, जिसकी पैदावार ज़मीन पर अधिक होती है। अरेबिका बीन्‍स कप में मुलायम हो जाते हैं और इसमें अपेक्षाकृत कम कैफ़ीन होती है, जबकि रोबस्‍ट कठोर होते हैं और कप में घुल जाते हैं। अरेबिका ऐसी प्रजाति है जिसमें कठोर स्‍वाद और बीन्‍स पैदा होते हैं, यह अधिक सुगंधित होता है इसलिए इसका बाज़ार मूल्‍य रोबस्‍टा बीन्‍स से अधिक होता है।

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