नई दिल्ली। आगरा के पेठे से लेकर मथुरा के पेड़े तक बच्चों के लिए ट्रेन यात्राओं का पूरी तरह एक अलग मतलब होता है जो अपने सफर के दौरान न केवल स्टेशनों को गिनते हैं बल्कि स्थानीय व्यंजनों का मजा लेते हुए चलते हैं। हालांकि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन की वजह से ट्रेनों की रफ्तार भी थम गई और बच्चे ट्रेन यात्रा को याद कर रहे हैं।
बच्चे अक्सर गर्मियों की छुट्टियों का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। 8 साल का सितांशु हर साल मई का इंतजार करता है जब वह दिल्ली से मध्य प्रदेश में ग्वालियर तक की यात्रा करता है। लेकिन इस साल उसे थोड़ी निराशा हाथ लगी।
सितांशु ने कहा, ‘मैं छुट्टियों के बारे में सोचकर मन से पढ़ाई कर रहा था लेकिन यह छुट्टियां खराब है। मैं उम्मीद करता हूं कि कोरोना वायरस जल्द ही मर जाए।‘
उसने कहा, ‘मैं हर साल अपनी मामी से मिलने के लिए बिलासपुर (छत्तीसगढ़) जाता हूं। ट्रेन की अपनी यात्रा में मेरे पापा चम्पक और चाचा चौधरी जैसी कॉमिक्स खरीदते थे तथा मैं रास्ते भर में उन्हें पढ़ता जाता था।‘
बाल मनोचिकित्सक राबिया हसन ने बताया कि कई बच्चे अपनी ट्रेन यात्रा को याद करते हैं जिसे वे नई -नई चीजें देखते हैं तथा अपने रिश्ते के भाई-बहन और दादा-दादी, नाना-नानी से मिलते हैं।
उन्होंने कहा, ‘कई मामलों में चाहे वे रास्ते में जो खाए या जो कॉमिक्स पढ़े, ये अनुभव ताउम्र उनके जहन में बस जाते हैं। अभी माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों पर ध्यान दिया जाए और उन्हें इसके हर्जाने के बदले वीडियो गेम्स न खेलने दिए जाए।‘
वहीं दिल्ली के मयूर विहार में रहने वाली गृहणी शशि हर साल गर्मियों की छुट्टियों का इंतजार करती हैं। उन्होंने कहा, ‘गर्मियों की छुट्टियों में अपनी बहन के घर जाती हूं और अपने लिए थोड़ा वक्त निकालती हूं।‘
वर्षा राजोरा (48) मई से जून के समय को ‘अपना समय’ बताती हैं। उन्होंने कहा कि यह साल का ऐसा वक्त होता है जब मैं अपने लिए जीती हूं। गृहणी होना फुल टाइम नौकरी है और हमें भी छुट्टियों की जरूरत होती है। (भाषा)