कोरोनावायरस (Coronavirus) के कारण लागू हुए लॉकडाउन ने लोगों का जीवन बदलकर रखा दिया था। जिंदगी वर्चुअल हो गई, ऑफिस का काम घर से हो रहा था। बच्चों को स्कूल के मित्रों एवं खेलकूद गतिविधियों की याद सता रही थी। वहीं, हम भी दफ्तर के सामाजिक मेल-जोल को नहीं भुला पाए।
कोलकाता में जन्मे भारतीय प्रवासी एवं लंदन में केपीएमजी कंपनी में एसोसिएट निदेशक के पद पर कार्यरत सौरभ चटर्जी ने वेबदुनिया से बातचीत में लॉकडाउन के अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि इस दौर बहुत कुछ बदला, लेकिन यहां सरकार ने बहुत अच्छा काम किया।
सौरभ कहते हैं कि यदि ईमानदारी से कहा जाए तो चीजें बहुत बदल गई हैं। लॉकडाउन से पहले मेरी सुबह 6 बजे शुरू होती थी। सुबह नाश्ता बनता था। अपने बेटे को स्कूल के लिए तैयार करता था। इसके बाद दफ्तर जाता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद सब बदल गया। शुरुआत में वर्क फ्रॉम होम भी नया अनुभव था।
मेरी पत्नी एवं बेटे के लिए यह अधिक मुश्किल था। बेटे को लॉकडाउन में व्यस्त रखना एक बड़ी चुनौती थी। नए गेम की डिवाइसिंग करना एवं बेटे के साथ अधिक समय बिताना भी लॉकडाउन का एक हिस्सा था। इस दौरान सप्ताह के अंत की गतिविधियां भी बदल गई थीं।
चटर्जी कहते हैं कि भारत सरकार की लॉकडाउन को लेकर उचित योजना नहीं होने से प्रवासी श्रमिकों को तकलीफें उठानी पड़ीं। वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार ने लॉकडाउन के दौरान लोगों को सहायता प्रदान करने एवं विभिन्न योजनाओं को बनाने में लंबा समय लगाया। हालांकि सरकार ने अच्छा काम किया। कर्मचारियों को 80 प्रतिशत वेतन एवं छोटे व्यापारियों की सहायता का एक अच्छा कदम सरकर ने उठाया।
कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। रोजगार पर भी इसका असर हुआ। कई कंपनियों ने नए लोगों को काम पर रखना बंद कर दिया। इसके साथ ही 75 प्रतिशत कंपनियों में कर्मचारियों को निकाला गया है।