नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार से पूछा कि कोविड-19 की वजह से पिछले 18 दिनों में जिन लोगों ने अपनों को खोया है, क्या वे उन्हें इसका जवाब दे पाएंगे कि जब शहर में मामले बढ़ रहे थे तो प्रशासन ने क्यों नहीं कदम उठाए। अदालत ने दिल्ली सरकार से स्थिति को बड़े चश्मे से देखने की सलाह दी है।
दिल्ली सरकार की खिंचाई करते हुए न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ ने सवाल किया कि वह (दिल्ली सरकार) कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए अदालत के हस्तक्षेप का इंतजार क्यों करती रही, उसने कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए शादी समारोहों में अतिथियों की संख्या 50 तक क्यों नहीं सीमित की?
पीठ ने पूछा कि आपने (दिल्ली सरकार) एक नवंबर से ही यह देखना शुरू किया कि स्थिति किस ओर जा रही है। लेकिन जब हमने आपसे सवाल किया तो आप पलट गए। जब शहर में संक्रमितों की संख्या बढ़ रही थी तो स्पष्ट तौर पर कदम उठाने थे। आप तब क्यों नहीं जागे, जब आपने देखा कि स्थिति खराब हो रही है? हमें आपको 11 नवंबर को नींद से जगाने की जरूरत क्यों पड़ी? आपने एक नवंबर से 11 नवंबर तक क्या किया? आपने फैसला लेने के लिए 18 दिन तक (18 नवंबर तक) क्यों इंतजार किया? क्या आपको पता है कि इस बीच कितने लोगों की मौत हो गई? जिन लोगों ने अपनों को खोया है, क्या आप उन्हें जवाब दे पाएंगे?
अदालत सामाजिक दूरी बनाए रखने, थूकने से रोकने और मास्क पहनने को अनिवार्य बनाने से जुड़े नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी से उन जिलों में खुश नहीं है, जहां मामले ज्यादा हैं।
पीठ ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि कोविड-19 नियमों के पहली बार उल्लंघन पर 500 रुपए और इसके बाद के उल्लंघन पर 1,000 रुपए का जुर्माना लगाए जाने का भी कोई बहुत ज्यादा असर नहीं हो रहा है।
अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ जिलों की तुलना में कुछ अन्य जिलों में निगरानी और जुर्माना लगाने में पर्याप्त असमानताएं हैं।
अदालत ने कहा, 'आप किस तरह की निगरानी कर रहे हैं? आप चीजों को गंभीरता से बड़े चश्मे से देखें। आप न्यूयॉर्क और साउ पाउलो को भी पार कर चुके हैं।'
वकील राकेश मल्होत्रा की याचिका पर उच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही थी। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 जांच को बढ़ाने और जल्द से जल्द रिपोर्ट मिलने के संबंध में याचिका दायर की है। (भाषा)