नई दिल्ली, भारत जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का दूसरा बड़ा देश है। इस बढ़ती जनसंख्या के कारण समाज का एक बड़ा हिस्सा मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रति एक हजार लोगों पर केवल 0.7 बेड हैं।
इस वक्त देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। जहां दिन-प्रतिदिन लाखों की संख्या में कोरोना संक्रमित मरीज सामने आ रहे हैं। जो एक चिंता का विषय है। जिसके कारण अस्पतालों में बेड, दवाई और अन्य चिकित्सा उपकरणों की भारी कमी उत्पन्न हो गई है।
प्रशासन लगातार इस कमी को दूर करने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मद्रास के स्टार्ट-अप 'मोड्यूल्स हाउसिंग' ने एक ऐसी तकनीक का विकास किया है जिससे एक तरफ तो स्वास्थ्य सेवाओं के बोझ को कम करने में मदद मिलेगी तो वहीं, दूसरी तरफ कोरोना संक्रमित मरीजों का समय पर इलाज संभव हो सकेगा।
आईआईटी मद्रास के इनक्यूबेटेड स्टार्टअप 'मोड्यूल्स हाउसिंग' ने कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए 'मेडिकेब' नामक एक पोर्टेबल अस्पताल इकाई विकसित की है। जिसे केवल चार आदमी मिलकर मात्र 2 घंटे में कहीं भी स्थापित कर सकते हैं। इसलिए इसे 'मेडिकेब' नाम दिया गया है। इसे हाल ही में केरल के वायनाड जिले में लॉन्च किया गया है।
'मेडिकेब' नामक इस पोर्टेबल माइक्रो स्ट्रक्चर के जरिए स्थानीय स्तर पर कोरोना संक्रमितों की पहचान, जांच, आइसोलेशन और इलाज आसानी से किया जा सकेगा। मॉड्यूल हाउसिंग ऐसे कई माइक्रो अस्पताल विकसित कर रहा है, जिन्हें देशभर में तेजी से स्थापित किया जा सकता है। कोरोना महामारी को हराने के लिए इस प्रकार के बुनियादी ढांचे बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में 'मेडिकेब' जैसे सार्थक प्रयास कोरोना के खिलाफ लड़ाई में निश्चित रूप से काफी मददगार साबित होंगे
मॉड्यूल हाउसिंग स्टार्ट-अप को आईआईटी मद्रास के दो छात्रों राम रविचंद्रन और डॉ तमस्वती घोष ने वर्ष 2018 में शुरू किया था जिसे आईआईटी मद्रास के इंक्यूबेशन सेल का सहयोग प्राप्त रहा है। इसके साथ ही प्रोजेक्ट के सर्टीफिकेशन और बेहतर परिचालन के लिए स्टार्टअप ने श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी के साथ साझेदारी भी की है। (इंडिया साइंस वायर)