नई दिल्ली। भारत में कोरोनावायरस के एक्सबीबी 1.5 (XBB 1.5) वैरिएंट का एक नया मामला पाया गया है जिससे देश में विषाणु के इस स्वरूप से संबंधित मामलों की कुल संख्या 8 हो गई है। कोरोनावायरस के एक्सबीबी 1.5 वैरिएंट के कारण से अमेरिका में संक्रमण के मामलों में वृद्धि देखी गई है।
भारतीय सार्स कोव-2 जिनोमिकी संगठन (इंसाकोग) ने कहा कि पिछले 24 घंटे में संबंधित स्वरूप का नया मामला उत्तराखंड में मिला, जबकि इससे पहले एक्सबीबी 1.5 स्वरूप से जुड़े तीन मामले गुजरात में और एक-एक मामला कनार्टक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में मिला था।
एक्सबीबी.1.5 स्वरूप, ओमीक्रोन एक्सबीबी स्वरूप से संबंधित है, जो ओमीक्रोन बीए.2.10.1 और बीए.2.75 उपस्वरूपों का पुनःसंयोजन है। संयुक्त रूप से एक्सबीबी और एक्सबीबी.1.5 अमेरिका में संक्रमण के 44 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार हैं।
पश्चिम बंगाल में ओमीक्रोन उपस्वरूप बीएफ.7 के 4 मामले, गुजरात और हरियाणा में 2-2 तथा ओडिशा में एक मामला दर्ज किया गया है। इंसाकोग देशभर में सार्स-कोव-2 की जिनोमिक निगरानी की रिपोर्ट देता है।
324 सेंपल में ओमीक्रोन वैरिएंट का पता चला : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि 29 दिसंबर, 2022 और 7 जनवरी, 2023 के बीच समुदाय से लिए गए 324 कोविड पॉजिटिव नमूनों की सेंटिनल सीक्वेंसिंग से पता चला है कि इनमें सभी में ओमीक्रोन स्वरूपों की मौजूदगी मिली जिनमें बीए.2 और इसके उप-वंश 2.75, एक्सबीबी (37), बीक्यू.1 और बीक्यू.1.1 (5) तथा अन्य शामिल हैं।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि जिन क्षेत्रों में इन स्वरूपों का पता चला है, वहां मृत्यु दर या संक्रमण के मामलों में वृद्धि की सूचना नहीं है।
इसके अलावा, एक्सबीबी (11), बीक्यू.1.1 (12) और बीएफ7.4.1 (1) पचास अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के पॉजिटिव नमूनों में पाए गए मुख्य स्वरूप थे, जिनके नमूनों का अब तक जीनोम अनुक्रमण किया गया है।
बयान में कहा गया कि गत 29 दिसंबर और 7 जनवरी के बीच 324 पॉजिटिव नमूने अनुक्रमण के लिए 22 इंसाकोग प्रयोगशालाओं में भेजे गए जिनमें सभी में बीए.2 और इसके उप-वंश 2.75, एक्सबीबी (37), बीक्यू.1 और बीक्यू.1.1 (5) जैसे ओमीक्रोन स्वरूपों की मौजूदगी मिली।
महामारी से दूर हुईं असमानताएं : भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 से देश में असमानताएं कम हुई हैं और वैश्विक महामारी ने तो एक तरह से सबको एक स्तर पर लाने का काम किया है।
विशेषज्ञों ने इस आलोचना को नकार दिया कि भारत में असमानताएं बढ़ रही हैं जिसमें अमीर और भी अमीर हो रहा है जबकि गरीब और ज्यादा गरीबी में धंस रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार गरीबों को जो पैसा भेज रही है वह प्रत्येक घर के लिए प्रतिवर्ष 75,000 रुपये पड़ता है।
दरअसल कोविड-19 महामारी का प्रकोप शुरू होने के कुछ महीनों बाद ऐसी चिंता व्यक्त की गईं थीं कि देश में अमीर लोगों की सम्पन्नता बढ़ रही है जबकि गरीब लोग गरीबी में डूबते जा रहे हैं। इसे के-आकार का पुनरुद्धार नाम दिया गया था।
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों और अध्ययनों के विश्लेषण के बाद कहा, देखा जाए तो वैश्विक महामारी एक प्रकार से समानता लाने वाली रही है जिसमें खाद्यान्न दिये जाने जैसे कदमों के जरिए गरीबों की रक्षा हुई।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 के बाद भारत ने तीव्र पुनरुद्धार हासिल किया, बावजूद इसके आलोचक अब भी इसे भारत के लिए के-आकार का पुनरुद्धार बता रहे हैं।
अनाज खरीद के जरिए असमानता को कम करने में मिली मदद से संबंधित एक अध्ययन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के संदर्भ में बात की जाए तो यह मानना गलत है कि महामारी के दौरान असमानता बढ़ी है। बल्कि अधिक अनाज खरीद से नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण के रूप में बेहद गरीब लोगों को फायदा हो रहा है। साथ ही इससे छोटे और सीमांत किसानों को भी लाभ मिल रहा है क्योंकि उनके जेब में पैसे आए।
रिपोर्ट में कहा गया कि जैसा कि जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) से स्पष्ट है, राज्यों में उत्पादन में प्रगतिशील वृद्धि हुई है और इस तरह की वृद्धि का परिणाम एक समावेशी वृद्धि के रूप में सामने आया है। भाषा Edited By : Sudhir Sharma