ओमिक्रॉन वेरिएंट के म्यूटेशन की उत्पत्ति, उसके प्रभाव आदि पर अध्ययन किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमिक्रॉन के म्यूटेशन होकर इस स्तर तक पहुंचने में समय लगता है, इसलिए ऐसा हो सकता है कि इसकी उत्पत्ति काफी समय पहले हो गई हो।
ओमिक्रॉन वेरिएंट पिछले महीने के अंत में ही जानकारी में आया था जब दक्षिण अफ्रिका में इसके होने की पुष्टि हुई थी, जहां टीकाकरण पर्याप्त स्तर पर नहीं हो पाया है।
अभी तक 60 से भी ज्यादा देशों में फैल चुका है और इसके प्रसार को रोकने के जोरों से प्रयास चल रहे हैं। लेकिन इस पर काबू करने के लिए इसे पूरी तरह से समझना जरूरी होगा।
वैज्ञानिकों के लिए हैरानी की बात यह ही है कि अभी तक के अध्ययनों में ओमिक्रॉन के जेनेटिक गुणों में पिछले साल फैल रहे बहुत सारे वेरिएंट के गुणों के साथ समानताएं दिखा रही हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक ओमिक्रॉन वेरिएंट में बीटा और डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा मिलता जुलता है।
ओमिक्रॉन के म्यूटेशन के बारे में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के संरचना जीवविज्ञानी के प्रोफेसर डेविड स्टुअर्ट बताते हैं कि इसका रहस्य इस सवाल पर है कि पूरा म्यूटेशन ही कैसे विकसित हुआ। वहीं ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी की इवोल्यूशनरी बायोलॉजी की प्रोफेसर सारा ओटो कहती हैं कि ऐसा लगता है कि यह एक साल पहले से छिपा हुआ था।
पिछले साल दक्षिण अफ्रीका की एक शोध टीम ने एक एचआईवी संक्रमित मरीज, जो छह महीने से कोविड-19 से पीड़ित था, खोजा. टीम ने पाया कि इस व्याक्ति में ऐसे म्यूटेशन थे जो स्पाइक प्रोटीन को प्रभावित कर सकते थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि यूके के इसी तरह के लक्षण एक ब्लड कैंसर के मरीज में पाए गए।