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चीन के कोरोनावैक वैक्सीन के नतीजे उतार-चढ़ाव वाले, लेकिन दुनिया इसकी अहमियत को नकार नहीं सकती

हमें फॉलो करें चीन के कोरोनावैक वैक्सीन के नतीजे उतार-चढ़ाव वाले, लेकिन दुनिया इसकी अहमियत को नकार नहीं सकती
, शनिवार, 24 जुलाई 2021 (17:41 IST)
साउथम्पटन (ब्रिटेन)। चीन का टीका विकास तंत्र महामारी के दौरान बेहद व्यस्त था। चीन के दो टीकों- साइनोफार्म टीका और कोरोनावैक टीका- का फिलहाल दुनियाभर में उपयोग किया जा रहा है। कोरोनावैक टीके को साइनोवैक बायोटेक कंपनी ने विकसित किया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा आपात इस्तेमाल के लिए अधिकृत किया गया यह नवीनतम टीका है। इस वजह से, महामारी का रुख पलटने में कोरोनावैक टीका एक बड़ी भूमिका अदा कर सकता है।
 
डब्ल्यूएचओ की मंजूरी मिलने का मतलब है कि अब इस टीका का इस्तेमाल ‘कोवैक्स’ में आपूर्ति के लिए किया जा सकता है। कोवैक्स पहल को दुनिया भर में टीकों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया है। इसके अलावा 37 देशों ने भी इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी है। करोड़ों लोग इस टीके को प्राप्त करने के लिए कतार में हैं तो करोड़ों लोगों को यह लग चुका है।
 
हालांकि कोरोनावैक टीकों के नैदानिक परीक्षणों के नतीजे मिली-जुली तस्वीर पेश करते हैं। और जैसा की पश्चिमी कोविड-19 टीकों के साथ है अब क्योंकि काफी संख्या में खुराक लोगों को दी जा चुकी हैं, तो हमें यह समझ में आना शुरू हो गया है कि वास्तविक परिस्थितियों में यह टीके कितने प्रभावी हैं।
 
एक परंपरागत दृष्टिकोण
कोविड-19 के अन्य चीनी टीकों की तरह साइनोफार्म द्वारा उत्पादित, कोरोनावैक एक निष्क्रिय टीका है। इसका मतलब है कि इसमें कोरोनावायरस का वह पूर्ण संस्करण है जिसका इलाज किया गया, जिससे शरीर के अंदर इसे दोहरा न सकें। ये मृत वायरस हैं जिनके लिए शरीर प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया तैयार करता है।
 
यह पश्चिम के मुख्य टीकों में इस्तेमाल होने वाले तरीके से बेहद अलग रुख है। पश्चिम के टीके शरीर के अंदर कोरोनावायरस के कुछ आनुवंशिक लक्षण डालते हैं, जिससे वह प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए कोरोना वायरस के खिलाफ उनके एक विशिष्ट व पहचाने जाने योग्य भाग का निर्माण कर सकें। निष्क्रिय टीका प्रणाली टीके बनाने का एक ज्यादा अच्छी तरह से स्थापित तरीका है। निष्क्रिय टीकों का बड़े पैमाने पर निर्माण करना आसान है और उनका सुरक्षा रिकॉर्ड भी शानदार रहा है। हालांकि ये दूसरे तरीके से बनने वाले टीके के मुकाबले एक कमजोर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बनाते हैं।
 
यह विभिन्न देशों में चलाए गए कोरोनावैक के तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षणों के नतीजों में कुछ हद तक सामने आया। ब्राजील में हुए एक परीक्षण में यह टीका लोगों में लक्षणयुक्त कोविड-19 को विकसित होने से रोकने में 51 प्रतिशत प्रभावी दिखा। इंडोनेशिया में हुए एक अन्य परीक्षण में इसकी प्रभावशीलता 65 प्रतिशत थी। तुलना की बात करें तो मॉडर्ना और फाइजर एमआरएनए टीकों की प्रभावशीलता इन परीक्षणों में 90 प्रतिशत से ज्यादा थी।
 
कोरोनावैक हालांकि परीक्षणों में कोविड-19 की वजह से अस्पताल में भर्ती होने के मामलों से सुरक्षा के मामले में बेहद प्रभावी रहा और महामारी से मौत के मामलों से सुरक्षा में यह लगभग शत-प्रतिशत कारगर रहा। इन्हीं नतीजों के आधार पर डब्ल्यूएचओ ने इसके इस्तेमाल की अनुशंसा की है। इसके बाद से तुर्की में हुए तीसरे चरण के एक और परीक्षण के नतीजे सामने आए और इसमें पता चला कि कोरोनावैक सुरक्षित है और इसकी प्रभावशीलता 83 प्रतिशत है।
 
एक अलग दुश्मन : आखिर नतीजों के प्रतिशत में इतनी भिन्नता क्यों? हालांकि उस समय कोरोना वायरस के विभिन्न स्वरूपों की मौजूदगी और अलग-अलग जगहों का नैदानिक परीक्षणों में सामने आई प्रभावशीलता पर असर हो सकता है। दक्षिण अफ्रीका में हुए अध्ययन में वायरस का बीटा स्वरूप था जबकि ब्राजील में मुकाबला गामा स्वरूप से था। कुछ ऐसे साक्ष्य हैं कि ये स्वरूप वायरस के कुछ अन्य रूपों की तुलना में मौजूदा टीकों के प्रभाव के प्रति कम संवेदनशील है।
 
ऐसे समय में 'असल-दुनिया' (वास्तविक टीकाकरण) के अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाते हैं। टीकों का किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है इसके आकलन से आप बड़ी संख्या में लोगों पर इसकी प्रभावशीलता व सुरक्षा को देखते हैं जो नैदानिक परीक्षण में इस स्तर पर संभव नहीं होता। इतना ही नहीं यह तस्वीर भी आपके सामने आ जाती है कि असल में वायरस के बदलने के साथ ही यह टीका उसके खिलाफ कितना कारगर बना रह रहा है। उदाहरण के लिए चिली में हाल में 1.02 करोड़ लोगों पर कोरोनावैक टीकाकरण के वास्तविक आंकड़ों का अध्ययन किया गया। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि टीका लक्षण वाले मरीजों की सुरक्षा में 66 प्रतिशत प्रभावी है और अस्पताल में भर्ती होने से उनकी 88 प्रतिशत तक सुरक्षा करती है।
 
उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि चिली में वायरस के अल्फा और गामा स्वरूप मिल रहे हैं। हालांकि, उनके अध्ययन में इस लिहाज से पर्याप्त आंकड़े नहीं थे कि यह पता चलता कि इन स्वरूपों का टीके पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। यह अच्छे आंकड़े हैं लेकिन इसके बावजूद यह पश्चिमी देशों के टीकों के मुकाबले उसे थोड़ा पीछे छोड़ देते हैं। मॉडर्ना और फाइजर के टीके वास्तविक टीकाकरण पर अल्फा स्वरूप के मामले में अस्पताल में भर्ती होने से जहां लगभग 100 प्रतिशत सुरक्षा देते हैं जबकि डेल्टा स्वरूप को देखें तो टीकों को दो खुराक के बाद करीब अस्पताल में भर्ती होने से 90 प्रतिशत तक सुरक्षा रहती है। कोरोनावैक पर डेल्टा के प्रभाव को लेकर अध्ययन करने के लिये आंकड़ें अभी पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
 
कारगर टीका ही उपयोगी टीका है
संभवत: इन कारकों के कारण कुछ सरकारें कोरोनावैक की कुल मिलाकर उपयोगिता पर थोड़ा अनिश्चित नजर आती हैं। उदाहरण के लिये थाईलैंड में उन लोगों को अब दूसरी खुराक के तौर पर एस्ट्राजेनेका का टीका लगाने की तैयारी है, जिन्हें पहली खुराक के तौर पर कोरोनावैक टीका लगाया गया था। कोरोनावैक टीका लगवाने के बावजूद स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद यह कदम उठाया गया है।
 
डब्ल्यूएचओ की 19 जुलाई 2021 की स्वास्थ्य रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि पिछले हफ्ते दुनियाभर में सामने आने वाले संक्रमण के मामलों में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अभी महामारी बढ़ रही है। उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र में भी महामारी के फैलने को लेकर व्यापक चिंता जताई जा रही है।

इस क्षेत्र में अधिकतर देशों में अधिकांश आबादी को टीका नहीं लगा है और ऐसे में उनके महामारी की चपेट में आने की गुंजाइश बहुत ज्यादा है। इस साल भारत में महामारी की त्रासद परिस्थितियों ने दिखाया कि कैसे कोविड-19 अतिसंवेदनशील आबादी पर कहर बरपा सकता है।
 
इसलिए, ऐसे महामारी के संदर्भ में जिसके कमजोर पड़ने के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे, कोरोनावैक के लिये क्या भविष्य है? असल में दुनिया को जितने भी टीके मिल सकें उन सभी की जरूरत है और इन्हें लेकर अपनी पसंद या नापसंद जाहिर करने की स्थिति में नहीं हैं। इस बात के अच्छे संकेत हैं कि डब्ल्यूएचओ द्वारा स्वीकृत सभी टीके लक्षण वाली बीमारी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं और महामारी का आगे प्रसार रोकने में भी सहायक हैं। (द कन्वर्सेशन) (भाषा)

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