नई दिल्ली, कोरोना के संपर्क से बचाव इस वायरस के संक्रमण को रोकने का एक प्रभावी तरीका है। इसलिए, सबसे पहले उसके दायरे को चिह्नित कर उसके प्रसार पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक हो गया है।
इस दिशा में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की प्रयोगशाला केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ) का प्रयास रंग लाता दिख रहा है। इसके लिए आवश्यक तकनीक को विभिन्न अंशभागियों के साझ करने की मुहिम शुरू हो गई है।
ऐसे कई प्रमाण सामने आए हैं कि एयरोसोल के माध्यम से सार्स-सीओवी-2 संक्रमण तेजी से फैल रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कणों और बूंदों के माध्यम से हवा के जरिये संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से लेकर आरईएचवीए, एएसएचआरएई जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इसकी पुष्टि की है। एयरबोर्न संक्रमण विशेषकर भीतरी स्थानों को बहुत जोखिम में डाल देता है।
सीएसआईआर और उससे संबंधित प्रयोगशालाओं ने अपने अध्ययनों में पाया है कि यदि कोई संक्रमित व्यक्ति किसी कमरे में कुछ समय बिताता है, तो कमरे से उस व्यक्ति के जाने के दो घंटे बाद भी वायरस वहां मौजूद रह सकता है। इन प्रयोगों में सीएसआईआर से संबद्ध संस्थानों - सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) और इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबायल टेक्नोलॉजी (इम्टेक) की सहभागिता रही। उन्होंने गत वर्ष सितबंर में इस आशय से जुड़े प्रयोग किए थे।
हवा के माध्यम से फैलने वाले संक्रमण को रोकने के लिए एक ऐसा संक्रमण-रोधी उपकरण विकसित करने की चुनौती थी, जो वायु के तेज प्रवाह में भी कार्य करने में सक्षम हो। सीएसआईआर-सीएसआईओ ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए एक यूवी-सी एयर डक्ट डिसइन्फेक्शन सिस्टम ईजाद किया। इस डिसइन्फेक्शन सिस्टम का उपयोग सभागार, बड़े सम्मेलन-कक्षों, कक्षाओं और मॉल्स आदि में उपयोग किया जा सकता है।
इस डिसइन्फेक्शन सिस्टम की मदद से महामारी के मौजूदा दौर में भीतरी स्थानों यानी इन्डोर जगहों को विसंक्रमित किया जा सकता है। विशेष रूप से सार्स सीओवी-2 वायरस पर अंकुश लगाने के लिए विकसित की गई इस तकनीक में सभी सुरक्षा पहलुओं के साथ वेंटिलेशन का भी खास ध्यान रखा गया है। इसे लेकर दावा किया गया है कि यह तकनीक 99 प्रतिशत वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और अन्य बायो एयरोसोल से मुक्ति दिलाने में सक्षम है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान विभिन्न प्रकार के फंगस वाले मामलों से निपटने में भी यह तकनीक मददगार साबित हो सकती है।
सीएसआईआर-सीएसआईओ ने इसे कई कसौटियों पर कसा है। इसे इमारतों की एयर हैंडलिंग यूनिट्स (एएचयू), परिवहन साधनों और अन्य घूमने वाले उपकरणों में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह तकनीक ऊर्जा खपत के लिहाज से किफायती बतायी जा रही है। कोइल्स के जरिये यह हवा की गुणवत्ता सुधारने में प्रभावी है, और इसका रखरखाव भी आसान है। किसी भी मौजूदा एएचयू डक्ट्स के साथ इसे आसानी से फिट किया जा सकता है। इसकी शुरुआती लागत बहुत कम है।
सीएसआईआर-सीएसआईओ ने देशभर की करीब 27 कंपनियों के साथ यह तकनीक साझा की है। सीएसआईआर-सीएसआईओ के निदेशक प्रो. एस आनंद रामकृष्णा ने कहा कि इन कंपनियों के माध्यम से देश में व्यापक स्तर पर इस तकनीक की उपलब्धता बढ़ेगी। संस्थान में फैब्रियोनिक्स प्रभाग के प्रमुख डॉ. हैरी गर्ग और उनकी टीम ने इस तकनीक को विकसित करने में अहम भूमिका निभायी है। इस तकनीक से लोगों का भरोसा बहाल करने में मदद मिलेगी ताकि कार्यस्थलों और अपने संस्थानों में लौटकर वे खुद को सुरक्षित महसूस करें। (इंडिया साइंस वायर)