इंदौर। शहर के कब्रिस्तानों में अचानक बढ़ी जनाजों की संख्या को लेकर सवाल उठना शुरू हो गए हैं। एक ओर यह बात सामने आ रही है कि इनमें से ज्यादातर मरीजों की मौत डायबिटीज और हाईपरटेंशन के चलते हुई है, वहीं दबी जुबान में लोग यह भी स्वीकार कर रहे हैं इनमें से बड़ी सख्या कोरोना संक्रमित लोगों की हो सकती है। हालांकि यह जांच का विषय है, लेकिन यह भी सच है कि मृतकों में ज्यादातर उन्हीं इलाकों के हैं, जहां कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा असर है।
ऐसा भी कहा जा रहा है कि लॉकडाउन और सख्ती के चलते कोरोना से इतर अन्य मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते इन मरीजों की मौत हुई है। स्वयं कलेक्टर मनीष सिंह ने भी कहा है कि ये मौतें कोरोना से नहीं हुई हैं, बल्कि हाईपरटेंशन और मधुमेह के चलते हुई हैं। क्योंकि लोकल क्लीनिक बंद हैं और लॉकडाउन के चलते लोगों का चलना-फिरना भी बंद है। ऐसे में डायबिटीज के मरीजों की मुश्किल और बढ़ जाती है। हालांकि सिंह ने कहा कि उन निजी डॉक्टर्स के खिलाफ भी सख्ती करने की जरूरत है, जो अपने फर्ज से मुंह फेर रहे हैं।
हालांकि कलेक्टर ने इस तरह की मौतों को कोरोना मौत मानने से स्पष्ट इंकार किया है, लेकिन शहर के कब्रिस्तानों में एक सप्ताह का जो आंकड़ा सामने आया है, वह चौंकाने वाला जरूर है। जानकारी के मुताबिक इंदौर में छोटे-बड़े मिलाकर 10 से ज्यादा कब्रिस्तान हैं। अल्पसंख्यक बहुल इलाकों के कब्रिस्तानों के आंकड़े पर नजर डालें तो सप्ताह भर के भीतर करीब 94 लोग दफन हो चुके हैं, जो कि महीने भर के आंकड़े के करीब है।
खजराना कब्रिस्तान में एक से 7 अप्रैल के बीच 24 लाशों को दफनाया गया, जबकि यहीं जनवरी माह में 30, फरवरी में 33 और मार्च में 20 शवों को दफन किया गया था। इसी तरह से महू नाका कब्रिस्तान और लुनियापुरा कब्रिस्तान में सबसे ज्यादा 46 जनाजे एक हफ्ते के दौरान पहुंचे हैं, यहां पूरे मार्च के महीने में जनाजों की संख्या 46 थी। वहीं, सिरपुर कब्रिस्तान में भी 1 से 7 अप्रैल के बीच 24 जनाजे पहुंचे। बताया जा रहा है कि इन मृतकों में ज्यादातर की उम्र 50 से 70 वर्ष के बीच रही है।
एक मृतक के पुत्र अरशद अंसारी ने मीडिया को बताया कि मेरे पिताजी मधुमेह के मरीज थे, उन्हें इलाज नहीं मिला जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। वहीं, कब्रिस्तान में काम करने वाले या फिर वहां की जिम्मेदारी संभालने वाले लोगों ने लाशों की बढ़ने की पुष्टि की है।
हालांकि जब हमने इंदौर के कुछ प्रमुख श्मशान घाटों से जानकारी जुटाई तो वहां के जिम्मेदार लोगों ने बताया कि अंतिम संस्कार के लिए पहुंचने वाले शवों की संख्या का औसत पहले की तरह ही रहा।
जिम्मेदार कौन? : यदि इन उम्रदराज लोगों की मौतें हाईपरटेंशन और डायबिटीज से हुई हैं तो सवाल यह भी उठता है कि आखिर इन्हें समय पर इलाज क्यों मिल पाया? यदि समय रहते इन्हें इलाज मिल जाता तो शायद इनकी मौत ही नहीं होती। यदि इस दिशा में विचार नहीं किया गया तो हो सकता है कोरोना से ज्यादा मौतों का आंकड़ा अन्य बीमारियों से मरने वाले मरीजों का हो सकता है। खैर! हकीकत जो भी हो फिलहाल तो यह 'राज' कब्रिस्तान की लाशों के साथ ही दफन हो गया है।