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जितने दो युद्धों में नहीं मरे उससे ज्‍यादा भारत में सालभर में जान दे रहे हैं लोग

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नवीन रांगियाल

कोई ख़ुदकुशी की तरफ़ चल दिया, उदासी की मेहनत ठिकाने लगी आदिल मंसूरी का ये शेर जिंदगी से थके-हारे, निराश और उदास लोगों के लिए शायद सबसे मुफीद हो, बावजूद इसके कि जिंदगी एक हसीन शे है और ये खुदा की सबसे खूबसूरत नैमतों में से एक है, जिसके लिए ऊपर आसमान में बैठे तमाम देवता और अप्‍सराएं भी अपने पियालों के साथ तरसते हैं। शायद इसलिए ही जिंदगी के बारे में कोई शायर कभी लिख गया था— ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का नाम है, मुर्दा- दिल भी क्‍या ख़ाक जिया करते हैं।लेकिन जिंदगी के इस गीत को लोग भूलकर मौत को गले लगा रहे हैं, ऐसे में कैफी आजमी की बात याद आती है... रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई, तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई...

1981 में हरजाई फिल्‍म आई थी, जिसमें किशोर कुमार का एक गाना है। कभी पलकों पे आंसू हैं, कभी लब पे शिकायत है,मगर ऐ जिंदगी मुझे तुझसे मोहब्‍बत है। मरने वालों को यह गीत याद रखना चाहिए।

वहीं हिंदू दर्शन में जीवन में प्राप्‍त हुई देह को मुक्‍ति का सबसे बड़ा साधन माना गया है। कई योनियों से गुजरने के बाद एक बार यह जीवन और मनुष्‍य देह मिल जाए तो वो इस जीवन चक्र से मुक्‍त होने और मोक्ष के लिए लगाना चाहेगा।
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आत्‍महत्‍या का ये आंकड़ा डरा देगा! 
बहरहाल, बावजूद इसके जिंदगी के प्रति लोगों में उदासीनता लगातार बढ़ती जा रही है। घर, नौकरी, व्‍यापार, कर्ज की दुश्‍वारियां और जिंदगी में कामयाब होने के प्रेशर में बड़ी संख्‍या में आत्‍महत्‍याएं कर रहे हैं। एनसीआरबी (NCRB) ने जो आंकड़ा इस साल जारी किया है, उसका ग्राफ देखकर जिंदा लोगों की रूहें कांप रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में भारत में हर दिन 468 लोगों ने की आत्‍महत्‍या की। दुखद है कि जिंदगी को अलविदा कहने वाले इन हारे हुए लोगों में उनमें से एक तिहाई दैनिक वेतन भोगी, खेतिहर मजदूर और किसान या खेती करने वाले थे। रिपोर्ट से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले लगभग 26% पीड़ित दैनिक वेतन भोगी थे। यानी ऐसे लोग जो रोज कमाते और रोज खाते हैं।
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2022 : 10 हजार स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया
बहुत दुखद बात है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट में सामने आया है कि 2022 में 18 साल से कम उम्र के 10 हजार 295 बच्चों ने सुसाइड किया। इनमें लड़कों की संख्या 4 हजार 616 थी, जबकि लड़कियों की संख्या 5588 थी। 2 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने परीक्षाओं में फेल होने के कारण सुसाइड किया। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्‍चों पर सामान्‍य और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने का कितना प्रेशर रहा होगा।
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जितने रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास में नहीं मारे गए उससे ज्‍यादा आत्‍महत्‍या
बहुत हैरान करने वाली बात है कि इन दिनों चल रहे दो युद्धों में भी इतने लोग नहीं मारे गए, जितने भारत में लोग रोज आत्‍महत्‍या कर रहे हैं। बता दें कि रूस और यूक्रेन के बीच पिछले एक साल से ज्‍यादा समय से युद्ध चल रहा है, वहीं हाल ही में कुछ दिनों पहले शुरू हुए इजरायल और हमास की वॉर के दौरान भी उतने लोग नहीं मारे गए हैं, जितने लोगों ने पिछले साल हर रोज भारत में आत्‍महत्‍याएं की। अगर दोनों युद्ध में अब तक मारे गए लोगों की संख्‍या से तुलना करे तो भी भारत में आत्‍महत्‍या करने वाले लोगों की संख्‍या ज्‍यादा हो रही है। समझा जा सकता है कि यहां कितना अकेलापन, अवसाद और तनाव बढ़ रहा है।

2022: बाप रे! हर दिन 468 लोगों ने की आत्‍महत्‍या
इस ताजा सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में प्रतिदिन 468 लोगों ने अपनी जान ले ली। उनमें से एक तिहाई दैनिक वेतन भोगी, खेतिहर मजदूर और किसान या खेती करने वाले थे। रिपोर्ट से पता चलता है कि आत्महत्या करने वाले लगभग 26% पीड़ित दैनिक वेतन भोगी थे। बता दें कि पिछले साल यानी 2022 में 1.7 लाख आत्महत्याएं दर्ज की गईं। 2021 की तुलना में 4.2% का इजाफा और 2018 की तुलना में 27% का इजाफा दर्ज किया गया। डेटा यह भी दिखाता है कि प्रति लाख आबादी पर आत्महत्या की दर पांच साल पहले 10.2 की तुलना में 2022 में बढ़कर 12.4 हो गई है।
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आत्‍महत्‍या के मामले
राज्यों में, सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र (22,746) में दर्ज की गईं, इसके बाद तमिलनाडु में 19,834 और मध्य प्रदेश में 15,386 आत्महत्याएं हुईं। चार राज्य - महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल - देश में दर्ज की गई कुल आत्महत्याओं में से लगभग आधे के लिए जिम्मेदार हैं।

शहरों में इतने सुसाइड
दिल्ली (3,367), बेंगलुरु (2,313), चेन्नई (1,581), और मुंबई (1,501) में आत्महत्याओं की अधिक संख्या दर्ज की गई है। दिल्ली में 2021 की तुलना में पिछले वर्ष में सबसे अधिक 22% की बढ़त दर्ज की गई।

क्‍या हैं सुसाइड के प्रमुख कारण : पारिवारिक समस्याएं और बीमारी आत्महत्या का मुख्य कारण बनी हुई हैं। 9.3% आत्महत्याओं का कारण प्रेम प्रसंग और विवाह संबंधी मुद्दे थे, इसके बाद 4.1% मामलों में दिवालियापन और कर्ज वजह थे।​

आत्‍महत्‍या: टॉप 3 राज्‍य  
महाराष्ट्र : 22,746
तमिलनाडु : 19,834
मध्य प्रदेश : 15,386

इन शहरों में इतने सुसाइड
दिल्ली : 3,367
बेंगलुरु : 2,313
चेन्नई : 1,581
मुंबई : 1,501
सोर्स : NCRB
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दुखद है कि आत्‍महत्‍याओं के कारणों में पारिवारिक समस्याएं और बीमारी आत्महत्या का मुख्य कारण बनी हुई हैं। 9.3% आत्महत्याओं का कारण प्रेम प्रसंग और विवाह संबंधी मुद्दे थे, इसके बाद 4.1% मामलों में दिवालियापन और कर्ज वजह थे।​

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ : बतौर पुर्नवास मनोवैज्ञानिक पिछले करीब 18 सालों से इंदौर में काम कर रही माया वोहरा बताती हैं कि आत्‍महत्‍या करने से पहले लोग ऐसे लक्षण जाहिर करते हैं, जिन्‍हें हमें पहचानने की जरूरत है। उन्‍होंने बताया कि बहुत ज्‍यादा खाना, बहुत कम खाना, अकेले रहना, गुमसुम रहना, काम करने में मन नहीं लगना। निर्णय ले पाने की क्षमता में कमी आना आदि प्रारंभिक लक्षण को पहचाना जाना चाहिए। वे बताती हैं कि रिसर्च कहती है कि 70 प्रतिशत लोग अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त करते हैं, लेकिन हम लोग समझ नहीं पाते हैं, वो क्‍या कह रहे हैं। आत्‍महत्‍या करने वाले लोग आमतौर पर कहते हैं कि मैं बोझ हो गया हूं, अब मेरे रहने से कोई फर्क नहीं पडता।

सोशल मीडिया में नकारात्‍मक पोस्‍ट करना, नकारात्‍मक कविता और आलेख लिखना। जैसे मेरे जाने के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा। इस तरह के अलार्मिंग साइन होते हैं उन लोगों की जो आत्‍महत्‍या करने के बारे में सोच रहे होते हैं। ठीक इसी तरह से जो वयस्‍क हैं, वे अपनी संपत्‍ति और बैकअप की प्‍लानिंग के बारे में घरवालों को बताना। अगर सही समय पर इन लक्षणों को पहचान लिया जाए जो जान बचाई जा सकती है, लेकिन कई बार हम उन्‍हें हल्‍के में ले लेते हैं।

अभिभाषक और मनोवैज्ञानिक अनिल त्रिवेदी वेबदुनिया को बताते हैं आत्‍महत्‍या के कई कारण है। इनमें आर्थिक
कारण, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण भी शामिल हैं। इसके समाज एक ताकतवर मनुष्‍य बनाए,जिससे इसे रोका जा सके। आज का समाज बिना बात के प्रतिस्‍पर्धा कर रहा है, यह एक बड़ी वजह है। पिछले दिनों एक छठवीं कक्षा के बच्‍चे ने आत्‍महत्‍या कर ली, वो एक ऐसा बच्‍चा था, जो जीवन का अर्थ ही नहीं जानता। न जीवन देखा और न ही जीवन का संघर्ष नहीं देखा। उन्‍होंने बताया कि आमतौर पर अंर्तमुखी व्‍यक्‍ति आत्‍महत्‍या करता है, ऐसे लोगों को हमने टटोलने की कोशिश ही नहीं करते। भारतीय समाज मन, बुद्धि, श्रम और शरीर से चलने वाला समाज है, लेकिन अब ये धन आधारित समाज हो गया है। ऐसे में जीवन की छोटी-मोटी समस्‍याएं और अकेलेपन को झेल नहीं पा रहे हैं।

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