भारतीय क्रिकेट की नर्सरी है मुंबई

Webdunia
सोमवार, 4 जून 2007 (03:49 IST)
भारत का एक आदमी जीवन में कुछ बनने और कुछ कर गुजरने की चाहत मं अ पने सपनों को साकार करने मुंबई आता है, लेकिन सफलता बहुत कम लोगों के हिस्से में आती है।

इस मायावी नगरी में फिल्मी कलाकार बनने से लेकर क्रिकेट का सितारा खिलाड़ी बनने की चाहत में सैकड़ों-हजारों की दादात में युवा आते हैं और फिर गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। तमाम स्थितियों के बावजूद मुंबई आज भी भारतीय क्रिकेट की नर्सरी बना हुआ है।

एक जमाना था, जब भारतीय क्रिकेट टीम के अधिकांश खिलाड़ी मुंबई के ही हुआ करते थे। वक्त गुजरने के साथ-साथ यहाँ के खिलाड़ियों की संख्या में कमी जरूर हुई, लेकिन आज भी मुंबई का प्रतिनिधित्व भारतीय क्रिकेट टीम में बेहद सम्मानजनक है। सचिन तेंडुलकर, समीर दिघे, अजीत आगरकर, मुंबई का नाम चमका रहा है यही कारण है कि भारतीय क्रिकेट की यह नर्सरी लगातार खिलाड़ियों की फसल पैदा कर रही है।

मुंबई ने भारतीय क्रिकेट में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नाम का सिक्का जमाया है। पॉली उम्रीगर, विजय मर्चेन्ट, विजय मांजरेकर, वीनू मांकड, रमाकांत देसाई, दिलीप सरदेसाई, अजीत वाडेकर, सुनील गावसकर, संदीप पाटिल, दिलीप वेंगसकर, शास्त्री जैसे दिग्गज क्रिकेटर इसी जमीन ने दिए, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बूते पर विश्व क्रिकेट पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की।

कुछ क्रिकेटर ऐसे भी हुए, जो भले टेस्ट न खेले हों, लेकिन उन्होंने भारतीय क्रिकेट विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है। मसलन पद्माकर शिवलकर जिनसे समूचा हिंदुस्तान वाकिफ है।

स्वदेश की धरती पर जहाँ कहीं भारत अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैच खेल रहा होता है तो मुंबई वासियों को लगता है आज मैच देखने से बड़ा कोई काम नहीं है, लिहाजा क्रिकेट के ये दीवाने वापस घर लौटने की जुगत में रहते हैं। मैच के दिन दोपहर एक बजे से चर्चगेट से विराट और वीटी से कल्याण की तरफ जा रही लोकल गाड़ियाँ इस कदर भरनी शुरू हो जाती हैं जैसे कि आम दिनों में शाम के वक्त भरती हैं।

दिन-रात के मैच वाले दिन तो रात भर चलती रहने वाली सड़कों पर वीरानी छा जाती है। ऑफिस के ये हाल रहते हैं कि यदि वहाँ टीवी है तो बचे-खुचे कर्मचारी उससे जोंक की तरह चिपक जाएँगे, या फिर ट्रांजिस्टर कान से चिपकाए रखेंगे। जब टीवी ने भारत में पैर नहीं पसारे थे तब यही ताजा स्कोर जानने का एकमात्र जरिया होता था।

क्रिकेट के प्रति ऐसी दीवानगी पूरे हिंदुस्तान के किसी शहर में नहीं मिलेगी, लेकिन यह मुंबई है। क्रिकेट के दीवानों का शहर। क्रिकेट को पागलपन की हद तक चाहने वाला शहर। मुंबई की संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है क्रिकेट।

सच तो यह है कि मुंबई को कोई आंधी या तूफान बंद नहीं कर सकता। किसी राजनीतिक दल द्वारा बंद का भी मामूली असर हो सकता है, लेकिन यदि मुंबई में क्रिकेट मैच है तो मान लीजिए कि आज मुंबई बंद है। क्रिकेट के अलावा कोई काम नहीं।

फिल्मी ग्लैमर की चकाचौंध, मौज मस्ती और फैशन मुंबई के क्रिकेट की पहचान है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस महानगर के लोगों का क्रिकेट के प्रति जितना लगाव है, उतनी ही गहराई से समझ भी है।

जरा सी चर्चा छेड़िए फिर देखिए की कैसी तर्कसंगत बहस छिड़ जाएगी और होड़ इस बात की लग जाएगी कि किसे कितनी अहम जानकारी है। बेहतरीन स्ट्रोक, बेहतरीन गेंदबाजी, क्षेत्र रक्षण, अंपायरिंग का स्तर आदि पर मुंबई के ये क्रिकेट रसिक दाद देने से भी नहीं चूकते। फिर चाहे खिलाड़ी अपने देश का हो या विदेशी।

मुंबई में क्रिकेट की जड़ें कितनी मजबूत हैं इसका अंदाजा आप उन आँकड़ों से लगा सकते हैं, जो रिकॉर्ड पुस्तकों में दर्ज हैं। मुंबई ने 1958-59 से 72-73 तक 15 बार रंजी ट्राफी जीती। किसी राष्ट्रीय स्तर की इस क्रिकेट स्पर्धा को इतनी अधिक बार जीतने का यह एक कीर्तिमान है।

1958-59 में जब मुंबई में भारत-वेस्ट इंडीज के मध्य टेस्ट खेला गया तो मैदान में उतरे 11 में से 9 खिलाड़ी मुंबई के थे। मुंबई किक्रेट खिलाड़ियों की खान है। यह भारतीय क्रिकेट की नर्सरी है। दो उम्दा किस्म के स्टेडियमों के अलावा आजाद मैदान पर छुट्टी के दिन 60 टीमें तक अपने-अपने तरीके से क्रिकेट मैचों का रोमांच जीती हैं। ऐसा अद्भुद नजारा भला विश्व में कहाँ दूसरा मिलेगा। आजाद मैदान पर होने वाली इस दीवानगी का विस्डन में भी उल्लेख है।

मुंबई में क्रिकेट के सितारे चमकते हैं और देखते ही देखते अस्त हो जाते हैं। फिर नए सितारों का जन्म होता है और वे धूमकेतु की तरह छा जाते हैं। इन सितारों से तो सब वाकिफ रहते हैं, लेकिन राजेन्द्र नार्वेकर और शशिकांत झारापकर जैसे क्रिकेट के दीवाने भी हैं जो क्रिकेट के आँकड़ों और ऑटोग्राफ्स इकट्ठे करने में ऐसे रमे कि शादी करने का विचार तक दिमाग में न ला सके।

मुंबई में कांगा लीग का भी एक अपना अलग आकर्षण है। मुंबई में क्रिकेट एसोसिएशन के प्रथम अध्यक्ष डॉ. एच. डी. कांगा की स्मृति में आयोजित होने वाले इस टूर्नामेंट की खासियत यह है कि इसका संयोजन बारिश के दिनों में ही होता है। समूचे विश्व में यही एकमात्र ऐसा क्रिकेट टूार्नामेंट है जो बारिश की फुहारों के बीच खेला जाता है।

लंबी घास से भरे मैदान कीचड़ से सने रहते हैं जिन पर दौड़कर गेंद रोकना और बार-बार फिसलना एक अलग ही आनंद देता है। विकेट भी गीले रहते हैं और इन पर गेंद फेंकना काफी मशक्कत भरा काम होता है। इधर बल्लेबाज के लिए भी चुनौती रहती है।

क्रिकेट की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हर बंबइया क्रिकेटर की दिली तमन्नाा कांगा लीग में खेलने की रहती है, क्योंकि यही स्पर्धा इन खिलाड़ियों को चमकाने में महत्वपूर्ण पुल का काम करती है।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

लीड्स की हार का एकमात्र सकारात्मक पहलू: बल्लेबाजी में बदलाव पटरी पर

ICC के नए टेस्ट नियम: स्टॉप क्लॉक, जानबूझकर रन पर सख्ती और नो बॉल पर नई निगरानी

बर्फ से ढंके रहने वाले इस देश में 3 महीने तक फुटबॉल स्टेडियमों को मिलेगी 24 घंटे सूरज की रोशनी

The 83 Whatsapp Group: पहली विश्वकप जीत के रोचक किस्से अब तक साझा करते हैं पूर्व क्रिकेटर्स

क्या सुनील गावस्कर के कारण दिलीप दोषी को नहीं मिल पाया उचित सम्मान?