डेनिस चार्ल्स स्कॉट कॉम्प्टन

Webdunia
मिडिलसेक्स, होलकर, इंग्लैंड

दाएँ हाथ के बल्लेबाज, लेफ्ट आर्म स्पिन गेंदबाज, श्रेष्ठ क्षेत्ररक्ष क

डेनिस कॉम्प्टन एक बहुत ही उत्तम, हरफनमौला खिलाड़ी थे, जिन्हें अपने युग में इस खेल का एक आदर्श खिलाड़ी माना जाता था। द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत वह क्रिकेट की दुनिया में एक विशिष्ट क्राउड पुलर माने जाते थे। शारीरिक तौर पर वह बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे। दोस्ताना व्यवहार और मस्तीभरा जीवन उनके विशिष्ट पहलू थे।

कॉम्प्टन का गेंद से एक अलग ही रिश्ता था। फुटबॉल में उन्होंने ऑर्सनल के लिए खेलते हुए लीग चैंपियनशिप मैडल जीता और इंग्लैंड का भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 14 बार प्रतिनिधित्व किया। उनकी वॉलीइंग विश्वविख्यात्‌ थी। इसी तरह वह क्रिकेट में भी एक नैसर्गिक खिलाड़ी रहे। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने मिडिलसेक्स का प्रतिनिधित्व किया और पहले ही सत्र में 1000 रन बनाने का सबसे युवा खिलाड़ी का रिकॉर्ड भी कायम किया।

1947 में उन्होंने 90.86 के औसत से 1 ही वर्ष में 18 शतकों की मदद से कुल 3816 रन बनाए। अगले वर्ष 48-49 में उन्होंने नॉर्थ ईस्टन ट्रांसफॉल के विरुद्ध बिनौनी में एमसीसी के लिए खेलते हुए 300 रनों की अविस्मरणीय पारी खेली, जो कि बाद में उस समय की सर्वाधिक तेज त्रिशतकीय पारी मानी गई।

हालाँकि कॉम्प्टन को उनके प्रदर्शन में निरंतरता के अभाव के कारण अक्सर आलोचना का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर भी उन्होंने केवल उतार-चढ़ावभरे स्कोरों के कारण 552 पारियों में 100 शतक बनाने का रिकॉर्ड कायम किया। वह ऐसा करने वाले महान डॉन ब्रेडमैन के बाद दूसरे बल्लेबाज थे।

कॉम्प्टन जो कि हमेशा ही कुछ न कुछ नया और भिन्न करने में माहिर थे, उनके राष्ट्रीय हीरो होने की एक बार फिर तब पुष्टि हुई जब ऑस्ट्रेलिया के विख्यात्‌ तेज गेंदबाज कीथ मिलर की एक बहुत तेज गेंद को हुक करने गए, गेंद उनके बल्ले का ऊपरी किनारा लेकर सीधी मुँह पर लगी। वह तुरंत अपना उपचार कराकर क्रीज पर वापस लौटे। वह अभी भी लहूलुहान थे, लेकिन उसके बावजूद ओल्ड ट्रेफर्ड के उस टेस्ट में उन्होंने 145 रनों की नाबाद अविस्मरणीय पारी खेली।

उसके उपरांत 1948-49 में उनकी एक पुरानी फुटबॉल खेलने से उभरी चोट उन्हें बेहद परेशान करने लगी और फिर वह अपनी नैसर्गिक चपलता कभी पुनः हासिल नहीं कर पाए। उन्होंने बिल एड्रिच के साथ मिलकर इंग्लैंड को 20 वर्षों बाद ऐशेज जीतने में भी सफलता दिलवाई, लेकिन चोट ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उन्हें अपने एक घुटने की नी-केप हमेशा के लिए हटवानी पड़ी और इस प्रकार एक शानदार क्रिकेट कॅरियर का अंत 1956 में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध ओवल टेस्ट मैच में 94 और 35 के व्यक्तिगत स्कोर के साथ खत्म हुआ, जिसे आज भी कोई उस समय का क्रिकेटप्रेमी नहीं भूला है।

कॉम्प्टन का व्यक्तित्व दुनिया के प्रत्येक क्रिकेट खेलने वाले देश में जाना-पहचाना घरेलू नाम था और उनकी मनमोहिनी मुस्कान उस युग में प्रत्येक युवा महिला की पहली पसंद भी हुआ करती थी।

टेस्ट रिकॉर्ड : टेस्ट 78, पारी 131, नॉट-आउट 15, उच्चतम स्कोर 278, रन 5807, औसत 50.06, शतक 17, अर्द्धशतक 28, कैच 49, गेंदे 2716, रन 1410, विकेट 25, औसत 56.40, सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी 5/17, 5 विकेट पारी में 1 बार।

प्रथम श्रेणी रिकॉर्ड 1936-1964 : मैच 516, पारी 839, नॉट-आउट 88, उच्चतम स्कोर 300, रन 38942, औसत 51.85, शतक 123, कैच 415, रन 20074, विकेट 622, औसत 32.27, सर्वश्रेष्ठ 7-36, 5 विकेट 19 बार, 10 विकेट 3 बार।

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